पीएम मोदी का लिंगायत कार्ड, लंदन में भी कर्नाटक की फिक्र
डिजिटल डेस्क, लंदन। कर्नाटक में अगले महीने विधानसभा चुनाव होना है। इन चुनावों में जीत का रास्ता लिंगायत समुदाय से होकर गुजरता है। यही वजह है कि कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार ने लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देने का प्रस्ताव पास किया है तो वहीं बीजेपी भी अपने परंपरागत लिंगायत वोट को साधने की कोशिशों में लगी है। पीएम मोदी ने बुधवार को सात समंदर पार लंदन से लिंगायत का कार्ड खेला। पीएम ने यहां लिंगायत समुदाय के दार्शनिक और सबसे बड़े समाज सुधारक संत बसवेश्वर की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
पीएम मोदी का ट्वीट
पीएम मोदी ने लंदन से ट्वीट कर कहा, मैं भगवान बसवेश्वर की जयंती के मौके पर नमन करता हूं। हमारे इतिहास और संस्कृति में उनका विशेष स्थान है। सामाजिक सद्भाव, भाईचारा, एकता और सहानुभूति पर उनका जोर हमेशा हमें प्रेरणा देता है। भगवान बसवेशेश्वर ने हमारे समाज को एक किया और ज्ञान को महत्व दिया। बता दें कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पांच दिवसीय विदेश दौरे पर हैं। वह आज कॉमनवेल्थ समिट में शिरकत करने के लिए लंदन पहुंचे हैं। लंदन के टेम्स नदी के पास लिंगायत समुदाय के समाज सुधारक बासवन्ना (उन्हें भगवान बसवेशेश्वर भी कहा जाता है) की मूर्ति पर पीएम ने श्रद्धांजलि अर्पित की।
On his Jayanti, I bow to Bhagwan Basaveshwara. He has a special place in our history and culture. His emphasis on social harmony, brotherhood, unity and compassion always inspires us.
— Narendra Modi (@narendramodi) April 18, 2018
Bhagwan Basaveshwara brought our society together and gave importance to knowledge. pic.twitter.com/akJPVyuH5D
100 सीटें लिंगायत समुदाय के हाथ में
लिंगायत समुदाय की स्थापना 12वीं सदी में महात्मा बसवेश्वर ने की थी। लिंगायत समाज पहले हिन्दू वैदिक धर्म का ही पालन करता था, लेकिन कुछ कुरीतियों से दूर होने, उनसे बचने के लिए इस नए सम्प्रदाय की स्थापना की गई। यह समुदाय कर्नाटक में सबसे प्रभावशाली है। कर्नाटक में लिंगायत समुदाय का लगभग 17 फीसदी वोट है। इस वजह से बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के लिए ये वोट मायने रखता है। 224 सीटों में से 100 सीटों पर हार जीत यह समुदाय तय करता हैं। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब साल 2013 के चुनाव के वक्त बीजेपी ने येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाया था तो लिंगायत समाज ने बीजेपी को वोट नहीं दिया था क्योंकि येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से हैं।
कौन है महात्मा बसवेश्वर?
बसवेश्वर 12वीं सदी के वो संत है जिसने 800 साल पहले नारी प्रताड़ना को खत्म करने की लड़ाई लड़ी। शिव का उपासक एक संत जिसने मठों, मंदिरों में फैली कुरीतियों, अंधविश्वासों और अमीरों की सत्ता को चुनौती दी। एक संत जिसके नाम से कन्नड़ साहित्य का एक पूरा युग जाना जाता है। एक संत जो 12वीं सदी के कलचुरी साम्राज्य में "प्रधानमंत्री" भी बना। एक संत जो आज कर्नाटक में लिंगायत ही नहीं बल्कि सर्व समाज के प्रिय हैं।
- संत बसवेश्वर का जन्म 1131 ईसवी में बागेवाडी (कर्नाटक के संयुक्त बीजापुर जिले में स्थित) में हुआ था।
- 8 साल की उम्र में बसवेश्वर या उपनयन संस्कार (जनिवारा- पवित्र धागा) हुआ, लेकिन लेकिन उनका मन इस परंपरा में नहीं टिका और उन्होंने उस धागे को तोड़ घर त्याग दिया।
- बसवेश्वर यहां से कुदालसंगम (लिंगायतों का प्रमुख तीर्थ स्थल) पहुंचे, जहां उन्होंने सर्वांगिण शिक्षा हासिल की।
- बसवेश्वर के लेखन और दर्शन ने समाज में क्रांतिकारी बदलाव की शुरुआत की।
- उन्होंने अपने अनुभवों को एक गद्यात्मक-पद्यात्मक शैली में "वचन" (कन्नड़ की एक साहित्यिक विधा) के रूप में लिखा।
- बसवेश्वर ने वीर शैव लिंगायत समाज बनाया, जिसमें सभी धर्म के प्राणियों को लिंग धारण कर एक करने की कोशिश की।
- बसवेश्वर ने सबसे पहले मंदिरों में व्याप्त भ्रष्टाचार और कुरीतियों को निशाना बनाया, जहां ईश्वर के नाम पर अमीर गरीबों का शोषण कर रहे थे।
- उनके महत्वपूर्ण कार्यों के लिए उनके युग को "बसवेश्वर युग" का नाम दिया गया। बसवेश्वर को "भक्तिभंडारी बसवन्न", "विश्वगुरु बसवण्ण" और "जगज्योति बसवण्ण" के नाम से भी जाना जाता है।
Created On :   18 April 2018 12:41 PM GMT