शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांत चीन, भारत व म्यांमार के ज्ञान की उपलब्धियां हैं
- इन 5 सिद्धांतों पर चीन और भारत के पूर्व पीएम जता चुके है सहमति
- निष्पक्ष और उचित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की स्थापना को बढ़ाने के लिये अहम
डिजिटल डेस्क, बीजिंग। शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांत चीन, भारत और म्यांमार की पुरानी पीढ़ियों के नेताओं के ज्ञान की उपलब्धियां हैं। वे अंतरराष्ट्रीय संबंधों के महत्वपूर्ण मानदंड बन चुके हैं, जिन्होंने निष्पक्ष और उचित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की स्थापना को बढ़ाने के लिये महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अंतरराष्ट्रीय कानून के समावेशी और खुले सिद्धांत के रूप में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांत संप्रभुता, न्याय, लोकतंत्र और कानूनी शासन के मूल्यों के प्रतीक हैं।
ये सिद्धांत अंतरराष्ट्रीय संबंधों के बुनियादी मानदंड और अंतरराष्ट्रीय कानून के बुनियादी सिद्धांत बने हैं। ये सिद्धांत न केवल विकासशील देशों के अधिकारों और हितों की दृढ़ रक्षा करते हैं, बल्कि एक और अधिक न्यायसंगत व उचित अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था की स्थापना को बढ़ाने के लिये सकारात्मक भूमिका निभाते हैं। शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों का प्रस्ताव करने की 68वीं वर्षगांठ के मौके पर चीनी राज्य परिषद के विकास अनुसंधान केंद्र के शोधकर्ता और थिंक टैंक संस्थान के वरिष्ठ शोधकर्ता तिंग यीफान ने चाइना मीडिया ग्रुप (सीएमजी) के संवाददाता को दिए एक खास इंटरव्यू में यह बात कही।
तिंग यीफान ने कहा कि आधुनिक चीन और भारत के बीच कई चौराहे भी हैं और वे कई समान हित साझा करते हैं। अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर चीन ने शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों पर जोर दिया। वास्तव में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांत चीन ने अकेले स्थापित नहीं किए, बल्कि चीन और भारत के बीच इस बारे में एक आम-सहमति बनी। वर्ष 1955 बांडुंग सम्मेलन में चीन ने एशियाई-अफ्रीकी देशों की एकता और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने का प्रस्ताव रखा। उस समय उभरते एशियाई-अफ्रीकी-लैटिन अमेरिकी देश बढ़ रहे थे। इन देशों ने औपनिवेशिक शासन से छुटकारा, जातीय स्वतंत्रता की खोज और राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन शुरू किया था। लेकिन उदय होने के साथ-साथ एशियाई, अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों ने ज्यादा विरोधाभास और बाधाओं का सामना किया था।
विकासशील देशों के बीच एकता कैसे बनाए रखी जा सकती थी? विकासशील देशों को क्या करना चाहिए कि उनका कूटनीतिक रवैया बनाए रखने के साथ-साथ उन्हें बाहरी ताकतों से संदेह और हस्तक्षेप नहीं मिले? इस सवाल का जवाब देने के लिये उस समय चीनी प्रधानमंत्री चोउ एनलाई ने शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों का पालन करने का प्रस्ताव रखा था। इन पांच सिद्धांतों का पालन करने से विकासशील देश संबंधों को सामान्य रूप से विकसित कर सकते हैं। चीन और भारत के नेताओं के बीच बैठक के बाद संयुक्त बयान में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांत पहली बार प्रस्तावित हुए। चीनी प्रधानमंत्री चोउ एनलाई और भारतीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इन पांच सिद्धांतों पर आम-सहमति जताई।
उन्होंने आगे कहा कि पूरी दुनिया गहन और जटिल परिवर्तनों का सामना कर रही है। शांति, विकास, सहयोग और आम-जीत की प्रवृत्ति और मजबूत बनी है। विश्व शांति की रक्षा करने और संयुक्त विकास को बढ़ाने की प्रक्रिया को पूरा करने के लिये एक लंबी अवधि की जरूरत है। जटिल व अस्थिर अंतरराष्ट्रीय स्थिति और वैश्विक महामारी के सामने पूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों की भावना, अर्थ और भूमिका अधिक समय तक चलेगी।
गौरतलब है कि 31 दिसंबर 1953 को पेइचिंग में चीन की यात्रा करने वाले भारतीय प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात के दौरान चीनी प्रधानमंत्री चोउ एनलाई ने शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों का पहली बार पूरा प्रस्ताव रखा था। शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों के अनुसार सभी देशों को एक-दूसरे देश की संप्रभुता का आपसी सम्मान, एक-दूसरे से गैर-आक्रामकता, एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में गैर-हस्तक्षेप, समानता व पारस्परिक लाभ और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व करना चाहिए। 29 अप्रैल 1954 को चीन और भारत ने विज्ञप्ति प्रकाशित की कि दोनों देशों ने संबंधित विज्ञप्ति और समझौतों में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों को शामिल किये जाने पर सहमति जताई है। इसके बाद शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांत सभी देशों के बीच सामान्य संबंध स्थापित करते समय और आदान-प्रदान व सहयोग करते समय बुनियादी सिद्धांत बने हैं।
(आईएएनएस)
Created On :   30 Dec 2021 7:30 PM IST