आईआईटी मद्रास की वैज्ञानिक को बेंजोथियोफिन रसायन बनाने में हरित प्रक्रिया विकसित करने के लिए पेटेंट मिला

IIT Madras scientist gets patent for developing green process for making benzothiophene
आईआईटी मद्रास की वैज्ञानिक को बेंजोथियोफिन रसायन बनाने में हरित प्रक्रिया विकसित करने के लिए पेटेंट मिला
औषधी में हरित क्रांति आईआईटी मद्रास की वैज्ञानिक को बेंजोथियोफिन रसायन बनाने में हरित प्रक्रिया विकसित करने के लिए पेटेंट मिला
हाईलाइट
  • डॉ ई. पून्गुझली ने पेटेंट हासिल किया

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मद्रास के रसायन विज्ञान विभाग की एक वैज्ञानिक को बेंजो [बी] थियोफीन नामक एक औषधीय यौगिक के उत्पादन में हरित पद्धति विकसित करने के लिए एक पेटेंट प्रदान किया गया है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय की एक विज्ञप्ति में शुक्रवार को कहा गया कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की महिला वैज्ञानिक योजना (डब्ल्यूओएस-ए) के तहत कार्यरत डॉ ई. पून्गुझली ने पेटेंट संख्या 384111 (प्राप्ति तिथि: 10 दिसंबर, 2021) पेटेंट भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मद्रास के साथ हासिल किया है।

यौगिक बेंजो [बी] थियोफीन रालोक्सिफेन (ऑस्टियोपोरोसिस में प्रयुक्त), जि़ल्यूटन (अस्थमा में प्रयुक्त), और सेरटार्कोनाजोल (एंटीफंगल दवा) और प्रतिस्थापित बेंजो के एक-चरण संश्लेषण जैसी दवाओं की एक श्रृंखला में मौजूद है। इस समय इसे बनाने के मौजूदा तरीके अच्छे से लेकर उत्कृष्ट स्तर तक उत्पाद प्रदान करने में सक्षम हैं, लेकिन ये पर्यावरण के अनुकूल नहीं हैं और इनमें बहुत अधिक तापमान का उपयोग शामिल है।

इसके अलावा,इसे बनाने वाली रासायनिक अभिक्रियाएं पूरी तरह से बंद उपकरणों में की जाती है जिनमें विस्फोट की आशंका रहती है । इस प्रतिक्रिया में आवश्यक ओएलईडी रोशनी के उपयोग से प्रक्रिया की लागत में वृद्धि होती है और इसमें शामिल विभिन्न चरणों की सटीक निगरानी की आवश्यकता होती है। इसमें एक धातु उत्प्रेरक की आवश्यकता होती है जो प्रकृति में विषैला होता है। डॉ पून्गुझली ने वाण्ििज्यक तौर पर उपलब्ध सामग्री को पानी के माध्यम और कमरे के तापमान पर खुली हवा में कॉपर एसीटेट और टेट्राब्यूटाइलमोनियम क्लोराइड उत्प्रेरक की उपस्थिति में औषधीय रूप से महत्वपूर्ण 2-एसिलबेन्जो [बी] थियोफीन में सफलतापूर्वक परिवर्तित कर दिया है।

डॉ पूंगुझाली ने इस प्रक्रिया के बारे में बताया किे चूंकि पानी माध्यम है, इसलिए इसमें कार्बनिक विलायक की कोई आवश्यकता नहीं है। इसमें कोई वायु प्रदूषण भी नहीं है। कमरे के तापमान से ऊर्जा की बचत होती है, और व्यावसायिक रूप से उपलब्ध सामग्री को सीधे औषधीय रूप में स्थानांतरित करने से कार्यबल, ऊर्जा और स्थान की बचत होती है।

उन्होंने कहा मेरे परिवार ने मुझे खतरनाक तरीकों के बजाए हरित पद्धति का आविष्कार करने के लिए प्रोत्साहित किया था। जब मैंने डीएसटी के सहयोग से अपना शोध करियर शुरू किया, तो मैंने प्रो जी शेकर और प्रो रमेश एल गार्डास की मदद से हरित पद्धति को डिजाइन किया था। यह औषधीय रूप से महत्वपूर्ण यौगिकों का संश्लेषण करने में सफल साबित हुई है। वह एक वैज्ञानिक के अलावा एक माँ की जिम्मेदारी भी बखूबी निभा रही हैं। वह आगे कहती है: मेरा जीवन मेरे बेटे और मेरे शोध के इर्द-गिर्द घूमता है। मेरे बेटे के सहयोग से मुझे अपने रास्ते में आने वाली कठिनाइयों को दूर करने और अपने शोध पर ध्यान केन्द्रित करने में मदद मिली है।

 

(आईएएनएस)

Created On :   12 Feb 2022 12:30 AM IST

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