क्या है अशोकाष्टमी व्रत और इसका महत्त्व ?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को अशोकाष्टमी व्रत रखा जाता है। अशोकाष्टमी व्रत के दिन पुनर्वसु नक्षत्र हो तो अधिक शुभ होता है। जो इस बार 13 अप्रैल 2019 को पड़ रहा है और बहुत ही खास है। इस दिन अशोक वृक्ष के पूजन का विधान बताया गया है। इसमें अशोक-कलिका-प्राशन की प्रधानता होने के कारण इसे अशोकाष्टमी कहते हैं। अशोकाष्टमी व्रत का वर्णन गरुड़ पुराण में भगवान ब्रह्मा जी के मुखारविन्द से हुआ है, इसलिए इसकी बहुत ही विशिष्ठ महत्ता है।
अशोकाष्टमी व्रत विधि :-
इस दिन प्रातः स्नानिदि से निवृत्त होकर अशोक-वृक्ष का पूजन करें। फिर अशोक-वृक्ष की मञ्जरी की आठ कलिकायें लेकर निम्नलिखित मंत्र पड़ते हुए जल पान करें :-
त्वामशोक हराभीष्ट मधुमाससमुद्भव। पिबामि शोकसन्तप्तो मामशोकं सदा कुरु।।
व्रत का माहात्म्य :-
इस व्रत को करने से मनुष्य सदैव शोकमुक्त रहता है। इस व्रत के सम्बन्ध में एक प्राचीन कथा है कि रावण की नगरी लंका में अशोक वाटिका के नीचे निवास करने वाली जानकी माता को इसी दिन हनुमानजी द्वारा श्रीराम का संदेश एवं मुद्रिका प्राप्त हुई थी। जिस कारण इस दिन अशोक वृक्ष के नीचे माता जानकी तथा हनुमानजी की प्रतिमा स्थापित कर विधिवत पूजन करना चाहिए। हनुमानजी द्वारा सीता माता की खोज की कथा रामायण से सुननी चाहिए। ऐसा करने से स्त्रियों का सौभाग्य अचल होता है। इस दिन अशोक वृक्ष की कलिकाओं का रस निकालकर पीना चाहिए, जिससे शरीर के रोग विकास का समूल नाश हो जाता है।
अशोकाष्टमी व्रत विधि :-
इस दिन व्रत रखकर अशोक वृक्ष की पूजा करने तथा अशोक के आठ पत्ते डले पात्र का जल पीने से व्यक्ति को समस्त दुखों से छुटकारा मिल जाता है। व्रत रखने की इच्छा वाले स्त्री व पुरुष को सवेरे निवृत होने के बाद स्नानादि कर अशोक वृक्ष की पूजा करनी चाहिए तथा अशोक की पत्तियों का पान करते हुए इस मन्त्र का उच्चारण करना चाहिए।
त्वामशोक हराभीष्ट मधुमाससमुद्भव। पिबामि शोकसन्तप्तो मामशोकं सदा कुरु।।
ऐसी धार्मिक मान्यता है कि इस दिन अशोक वृक्ष के नीचे बैठने से कोई शोक नहीं होता हैं। साथ ही अशोक वृक्ष की छाया में स्त्रियों के बैठने से उनके समस्त कष्टों का निवारण हो जाता है। अशोक वृक्ष को एक दिव्य औषधि माना गया है। संस्कृत में इसे हेम पुष्प व ताम्रपपल्लव भी कहा गया है।
अशोकाष्टमी की व्रत कथा
एक बार ब्रह्माजी ने कहा चैत्र माह में पुनर्वसु नक्षत्र से युक्त अशोकाष्टमी का व्रत होता है। इस दिन अशोकमंजरी की आठ कलियों का पान जो जन भी करते हैं वे कभी दुःख को प्राप्त नहीं होते है। अशोकाष्टमी के महत्व से जुड़ी कथा कहानी रामायण में भी मिलती है जिसके अनुसार रावण की लंका में सीताजी अशोक के वृक्ष के नीचे बैठी थी और वही उन्हें हनुमानजी मिले थे और भगवान श्रीराम की मुद्रिका और उनका संदेश उन्हें यही प्राप्त हुआ था।
Created On :   9 April 2019 5:23 PM IST