इस दिन श्रीहरि के शरीर से प्रकट हुई थीं एकादशी माता, जानें क्या है मान्यता और महत्व

Utpanna Ekadashi: Know what is the importance and story of this day
इस दिन श्रीहरि के शरीर से प्रकट हुई थीं एकादशी माता, जानें क्या है मान्यता और महत्व
उत्पन्ना एकादशी इस दिन श्रीहरि के शरीर से प्रकट हुई थीं एकादशी माता, जानें क्या है मान्यता और महत्व

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का महत्वपूर्ण स्थान है। वहीं मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। एकादशी व्रत के दौरान 24 घंटे तक कुछ भी खाया पिया नहीं जाता। इस बार यह व्रत 20 नवंबर, रविवार को है। मान्यता है कि जो व्यक्ति एकादशी का व्रत करता है उसके पूर्वज या पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

यह भी मान्यता है कि उत्पन्ना एकादशी के दिन एकादशी माता श्रीहरि के शरीर से प्रकट हुई थी। इस दिन उपवास करने से मन निर्मल निर्मल होने के साथ शरीर भी स्वस्थ होता है। वहीं जो मनुष्य जीवन पर्यन्त एकादशी को उपवास करता है, वह मृत्युपरांत वैकुण्ठ जाता है। एकादशी के समान पापनाशक व्रत दूसरा कोई नहीं है।

पूजा विधि
एकादशी के दिन सुबह उठकर व्रत का संकल्प कर शुद्ध जल से स्नान करना चाहिए। इसके बाद धूप, दीप, नैवेद्य आदि सोलह सामग्री से भगवान श्रीकृष्ण का पूजन, और रात को दीपदान करना चाहिए।उत्पन्ना एकादशी की रात भगवान विष्णु का भजन-कीर्तन करना चाहिए। व्रत की समाप्ति पर श्री हरि विष्णु से अनजाने में हुई भूल या पाप के लिए क्षमा मांगनी चाहिए। अगली सुबह यानी द्वादशी तिथि पर पुनः भगवान श्रीकृष्ण की पूजा कर ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए। भोजन के बाद ब्राह्मण को क्षमता के अनुसार दान देकर विदा करना चाहिए।

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा
पद्मपुराण में धर्मराज युधिष्ठिर के द्वारा भगवान श्रीकृष्ण से पुण्यमयी एकादशी तिथि की उत्पत्ति के विषय पर प्रश्न किए जाने पर बताया कि सत्ययुग में मुर नामक भयंकर दानव ने देवराज इन्द्र को पराजित करके जब स्वर्ग पर अपना आधिपत्य जमा लिया था। तब समस्त देवी-देवता महादेव जी की शरण में पहुंचे। महादेव जी देवगणों को साथ लेकर क्षीरसागर गए। जहां शेषनाग आसन पर योग-निद्रालीन भगवान विष्णु को देखकर देवराज इन्द्र देव ने उनकी स्तुति की। देवताओं के अनुरोध पर श्रीहरि विष्णु ने उस अत्याचारी दैत्य पर आक्रमण कर दिया। सैकड़ों असुरों का संहार कर नारायण बदरिकाश्रम चले गए। 

वहां वे बारह योजन लम्बी सिंहावती गुफा के भीतर निद्रा में लीन हो गए। दानव मुर ने भगवान विष्णु को परहास्त करने के उद्देश्य से जैसे ही उस गुफा में प्रवेश किया, वैसे ही श्रीहरि के शरीर से दिव्य अस्त्र-शस्त्रों से युक्त एक अति रूपवती कन्या उत्पन्न हुई। उस कन्या ने अपने हुंकार मात्र से दानव मुर को भस्म कर दिया। श्री नारायण ने जगने पर पूछा तो कन्या ने उन्हें सूचित किया कि आतातायी दैत्य का वध उसी ने किया है। इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने एकादशी नामक उस कन्या को मनोवांछित वरदान देकर उसे अपनी प्रिय तिथि घोषित कर दिया। श्रीहरि के द्वारा अभीष्ट वरदान पाकर परम पुण्यप्रदा एकादशी बहुत प्रसन्न हुई। 

Created On :   18 Nov 2022 10:50 PM IST

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