जानें इस व्रत का महत्व, लाभ और पूजा विधि
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को ऋषि पंचमी के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष यह व्रत 11 सितंबर यानी कि शनिवार को है। इस दिन महिलाएं सप्त ऋषि का आशीर्वाद प्राप्त करने और सुख शांति एवं समृद्धि की कामना से यह व्रत रखती हैं। वहीं माहेश्वरी समाज में राखी इसी दिन बांधी जाती है। बहन भाई की दीर्घायु के लिए व्रत रखती है, पूजा करती है उसके बाद ही खाना खाती है। ऐसे में ऋषि पंचमी को भाई पंचमी के नाम से भी जाना जाता है।
महिलाओं की माहवारी के दौरान अनजाने में हुई धार्मिक गलतियों और उससे मिलने वाले दोषों से रक्षा करने के लिए यह व्रत महत्वपूर्ण माना जाता है। यही नहीं यह व्रत ऋषियों के प्रति श्रद्धा, समर्पण और सम्मान की भावना को प्रदर्शित करने का महत्वपूर्ण आधार बनता है। आइए जानते हैं इस व्रत के बारे में...
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शुभ मुहूर्त
अभिजित मुहूर्त- 11 सितंबर, दोपहर 11:53 बजे से दोपहर 12:42 बजे तक
विजय मुहूर्त- 11 सितंबर दोपहर 02:22 बजे से दोपहर 03:12 बजे तक
क्यों रखा जाता है व्रत
हिन्दू धर्म में किसी स्त्री के रजस्वला (माहवारी) होने पर रसोई में जाना, खाना बनाना, पानी भरना तथा धार्मिक कार्य में शामिल होना और इनसे सम्बंधित वस्तुओं को छूना वर्जित माना जाता है। यदि भूलवश इस अवस्था में इसका उल्लंघन होता है तो इससे रजस्वला दोष उत्पन्न हो जाता है। इस रजस्वला दोष को दूर करने के लिए ऋषि पंचमी का व्रत किया जाता है। कुछ स्त्रियां हरतालिका तीज से इस व्रत का पालन ऋषि पंचमी के दिन तक कराती हैं।
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पूजा विधि
- इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्यक्रमादि से निवृत्त होकर स्नान करें।
- साफ वस्त्र धारण करें और भगवान सूर्य को जल चढ़ाने के साथ व्रत का संकल्प लें।
- घर के स्वच्छ स्थान पर हल्दी, कुमकुम, रोली आदि से चौकोर मंडल (चोक) बनाकरक उस पर सप्तऋषि की स्थापना करें।
- शुद्ध जल एवं पंचामृत से स्नान कराएं।
- चन्दन का टीका, पुष्प माला व पुष्प अर्पित कर यग्योपवीत (जनेऊ) पहनाएं।
- श्वेताम्बरी वस्त्र अर्पित करें। शुद्ध फल, मिठाई आदि का भोग लगाएं।
- अगरबत्ती, धूप, दीप आदि जलाएं। पूर्ण भक्ति भाव से प्रणाम करें।
Created On :   11 Sept 2021 9:58 AM IST