2 अगस्त को है नाग पंचमी , नाग देवता की कृपा पाने के लिए करें इन मत्रों का जाप, कालसर्प योग से मिलेगा छुटकारा

डिजिटल डेस्क, भोपाल। हर साला सावन के महीने में नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। नाग पंचमी का त्योहार हर साल सावन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस बार यह त्योहार 2 अगस्त को मनाया जाएगा। इस दिन नाग देवता की पूजा की जाती है। माना जाता है, कि इस दिन नाग पूजन करने से कालसर्प दोष से छुटकारा मिलता है। इस दिन श्री सर्प सूक्त का पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से कालसर्प दोष से पीड़ित व्यक्ति को बहुत लाभ मिलता है। इस दिन सभी जातकों को अपनी राशि के अनुसार मंत्रों से नाग देवता की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से आप सभी को शुभ फल प्राप्त होता है, और नाग देवता अति प्रसन्न होते हैं।
राशि के अनुसार नाग मंत्र
मेष राशि: ॐ गिरी नम:
वृषभ राशि: ॐ भूधर नम:
मिथुन राशि: ॐ व्याल नम:
कर्क राशि: ॐ काकोदर नम:
सिंह राशि: ॐ सारंग नम:
कन्या राशि: ॐ भुजंग नम:
तुला राशि: ॐ महिधर नम:
वृश्चिक राशि: ॐ विषधर नम:
धनु राशि: ॐ अहि नम:
मकर राशि: ॐ अचल नम:
कुंभ राशि: ॐ नगपति नम:
मीन राशि: ॐ शैल नम:
नाग पंचमी का शुभ मुहूर्त
पंचमी तिथि प्रारम्भ: 2 अगस्त, को सुबह 05 :14 मिनट से.
पंचमी तिथि समापन: 3 अगस्त, को सुबह 05 :42 मिनट पर.
नाग पंचमी पूजा मुहूर्त: 2 अगस्त को प्रात: 05 :42 मिनट से 08 बजकर 24 मिनट तक.
मुहूर्त की अवधि: 02 घण्टे 41 मिनट.
राशि अनुसार नाग मंत्र द्वारा पूजा के लाभ
बताया जाता है, की नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा करने से जीवन के संकटों से मुक्ती मिलती हैं। अगर आप इस दिन अपनी राशि हिसाब से मंत्रों का जाप करते हैं, तो मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
।। श्री सर्प सूक्त पाठ ।।
ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा शेषनाग परोगमा: ।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखाद्य: ।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा
कद्रवेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा ।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखाद्य ।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ।।
सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता ।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ।।
मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखाद्य ।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ।।
पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता ।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ।।
सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता ।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ।।
ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पप्रचरन्ति ।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ।।
समुद्रतीरे ये सर्पाये सर्पा जंलवासिन: ।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ।।
रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला: ।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ।।
इति श्री सर्प सूक्त पाठ समाप्त
डिसक्लेमरः ये जानकारी अलग अलग किताब और अध्ययन के आधार पर बताई गई है। भास्कर हिंदी इसकी पुष्टि नहीं करता है।
Created On :   23 July 2022 12:04 PM IST