MP का MLA : ग्वालियर पूर्व विधानसभा में ज्योतिरादित्य सिंधिया की होगी अग्नि परीक्षा

  • इस सीट से ग्वालियर-चंबल रीजन की सियासत होती है तय
  • 2008 में हुआ सीट का परिसीमन

Bhaskar Hindi
Update: 2023-06-16 16:00 GMT

डिजिटल डेस्क, ग्वालियर। ग्वालियर पूर्व विधानसभा सीट ग्वालियर की सबसे हॉट विधानसभा सीट मानी जाती है। क्योंकि यहीं से पूरे ग्वालियर-चंबल रीजन की सियासत तय की जाती है। अगर पिछले 12 विधानसभा चुनावों का विश्लेषण करें तो यह पता चलता है कि इस विधानसभा सीट से 8 बार भाजपा ने जीत हासिल की है तो 4 बार यहां से कांग्रेस ने जीत हासिल की।

लेकिन जब से ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा ज्वाइन की है, तब से यह सीट सिंधिया के लिए प्रतिष्ठा का विषय बना हुआ है। ग्वालियर के बड़े नेताओं के साथ-साथ इसी विधानसभा में सिंधिया परिवार का महल भी आता है। इस समय यहां के विधायक कांग्रेस के सतीश सिकरवार हैं जिन्होंने बीजेपी के मुन्ना लाल गोयल को यहां हुए उपचुनाव में जबरदस्त पटखनी दी थी। उपचुनाव के नतीजे भाजपा के लिए तो चिंता का सबब बने ही उससे भी ज्यादा यह सिंधिया के लिए झटका साबित हुए। उसके बाद रही सही कसर शोभा सिकरवार ने 57 साल बाद नगर निगम में कांग्रेस को जिताकर पूरा कर दी। 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव में जहां भाजपा के लिए कई प्रत्याशी मैदान में हैं तो वहीं कांग्रेस की तरफ से केवल एक ही चेहरा सतीश सिकरवार मैदान में दिखाई दे रहे हैं।

जनसमस्याएं और राह देखता विकास

विकास और जनसमस्याओं को लेकर नेता हमेशा मुखर रहते हैं। उनकी हर रैली में मंच से ये दोनों शब्द बार-बार बोले जाते हैं। कुछ ऐसी ही स्थिति यहां भी देखने को मिल जाती हैं। यहां के विधायक सतीश सिंह सिकरवार का कहना है कि, 'क्षेत्र में विकास के काम के लिए मैं लगातार प्रयास कर रहा हूं। समस्याओं के समाधान के लिए मैं हमेशा अपने मतदाताओं के लिए उपलब्ध हूं। कुछ बड़े काम क्षेत्र में होना जरूरी हैं, इसके लिए मैंने हर स्तर पर अपनी मांग रखी है। लेकिन मैं कांग्रेस का विधायक हूं, इसलिए मेरी मांगों पर गौर नहीं किया जा रहा।' वहीं भाजपा नेता मुन्ना लाल गोयल कहते हैं कि, 'अगर उपचुनाव में यहां से भाजपा जीती होती तो इस विधानसभा की सूरत और सीरत कुछ और होती।मुरार में नमामि गंगे प्रोजेक्ट से मुरार नदी का पूरा स्वरूप बदल जाता। इसी तरह स्वर्णरेखा नदी भी स्वर्ण जैसी होती हुई दिखती।'

विकास और जनसमस्याओं को लेकर जनता भी बहुत नाराज दिखाई देती है। लोगों का कहना है कि गंदगी और उफनते हुए सीवर टैंक कहीं भी देखने को मिल जाती है। सडक़ें दुरुस्त नहीं हो सकी हैं। समस्याओं का अंबार है। कुछ लोगों का यहां तक कहना है कि जनसुनवाई में समस्याओं के निराकरण के निर्देश भी दिए जा रहे हैं। लेकिन समाधान कितनों का होता है ये देखने वाली बात है। सड़क और पानी की समस्या तो यहां जस की तस बनी हुई है। अगर इन दोनों समस्याओं का सुधार लिया जाए तो शहर की आधी समस्या का समाधान हो जाएगा।

उपचुनाव में नेता नहीं दल की जीत हुई

2018 के विधानसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस के टिकट पर मुन्ना लाल गोयल विधायक बने। अभी कांग्रेस को सरकार बनाए 15 महीने ही बीते थे कि सिंधिया ने सरकार से बगावत कर दी और सरकार गिर गई। मुन्ना लाल गोयल सिंधिया गुट के विधायक थे । उन्होंने इस सीट से इस्तीफा दे दिया। फिर हुए उपचुनाव में भाजपा ने मुन्ना लाल गोयल को अपना कैंडिटेट घोषित किया तो वहीं कांग्रेस ने सतीश सिकरवार को अपना प्रत्याशी बनाया,कांटे की टक्कर में सतीश सिकरवार ने मुन्ना लाल गोयल को शिकस्त दे दी। मुन्ना लाल गोयल की हार भाजपा के साथ -साथ उनके लिए नई कठिनाइयां पैदा कर रही हैं। क्योंकि यहां से भाजपा के कई नेता चुनाव में अपनी ताल ठोकनें के लिए तैयार हैं।

परिसीमन के बाद से क्या हैं सियासी माहौल

ग्वालियर पूर्व विधानसभा सीट का परिसीमन 2008 में हुआ। इससे पहले यह मुरार विधानसभा सीट का हिस्सा थी। 1957 के चुनाव में ग्वालियर की शहरी इलाके की तीन सीटें थी । लश्कर, मुरार और ग्वालियर। 1957 के चुनाव में कांग्रेस की चंद्रकला ने मुरार सीट जीती थी इसके बाद कांग्रेस ने 1962, 1972. 1980 और 1993 के चुनाव में इस सीट पर कब्जा जमाया लेकिन 1985 से बीजेपी ने यहां जीत की पारी शुरू की । 1990 के चुनाव में भी बीजेपी जीती इसके बाद 1998 और 2003 में मुरार सीट पर ध्यानेंद्र सिंह जीते। ध्यानेंद्र सिंह चार बार यहां से विधायक रहे। 2008 में अटल जी के भांजे अनूप मिश्रा ने लश्कर ईस्ट की बजाए ग्वालियर ईस्ट से चुनाव लड़ा और 2013 में भी जीत दर्ज की। लेकिन, 2018 के चुनाव में कांग्रेस के मुन्नालाल गोयल ने इस सीट से चुनाव जीता। जबकि 2020 में भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े गोयल का कांग्रेस के सतीश सिकरवार ने हरा दिया।

यहां नेता होते हैं उलटफेर के शिकार

3 लाख 12 हजार 946 मतदाताओं वाली ग्वालियर पूर्व विधानसभा सीट कई मायनों में बहुत अनोखी सीट है। यहां पर कब किसके साथ उलटफेर हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता है। जनता किसको राजा बना दे और किसको रंक यह सियासी पंडित भी नहीं भांप पाते हैं। ग्वालियर पूर्व सीट पर जातिगत राजनीति कारगर साबित नहीं होती है लेकिन सिंधिया का गढ़ माने वाले इस इलाके में ब्राह्मण, ओबीसी और वैश्य समुदाय के वोटर्स निर्णायक भूमिका में होते हैं। विधानसभा क्षेत्र में वैश्य, क्षत्रिय, गुर्जर, बघेल, कुशवाह, आदिवासी, सिंधी, पंजाबी, क्रिस्चियन, मुस्लिम मतदाता भी हैं।

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