मध्य प्रदेश: गोंड राजाओं के शासन, मध्यकालीन स्मारकों के दर्शन का अनूठा अवसर, छायाचित्रों की प्रदर्शनी का शुभारंभ, 16 जुलाई तक खुली रहेगी, प्रवेश नि:शुल्क

  • छायाचित्रों की प्रदर्शनी का शुभारंभ
  • 16 जुलाई तक खुली रहेगी, प्रवेश नि:शुल्क
  • मध्यकालीन स्मारकों के दर्शन का अनूठा अवसर

Bhaskar Hindi
Update: 2024-07-09 15:54 GMT

डिजिटल डेस्क, भोपाल। संचालनालय पुरातत्व अभिलेखागार एवं संग्रहालय द्वारा श्यामला हिल्स स्थित राज्य संग्रहालय में मध्यप्रदेश की गोंड कालीन रियासतों से संबंधित स्मारकों की छायाचित्र प्रदर्शनी का शुभारंभ प्रमुख सचिव संस्कृति एवं पर्यटन शिवशेखर शुक्ला ने किया। इसमें गोंड कालीन राजनैतिक घटनाओं, प्रशासनिक निर्णयों तथा अन्य विषयों से संबंधित ऐतिहासिक दस्तावेज के साथ ही गोंड कालीन रियासतों के शासकों के छायाचित्र, मानचित्र प्रतीक एवं वंशावली भी प्रदर्शित किये जा रहे है। प्रदर्शनी 16 जुलाई तक खुली रहेगी। प्रवेश नि:शुल्क है।

भारत के मध्य कालीन इतिहास में गोंड शासकों का महत्वपूर्ण योगदान है। गढ़ेशनृपवर्णनम् अकबर नामा एवं 1667 ई. के रामनगर शिलालेख तथा संग्राम शाह के सिक्कों से इस राजवंश के संबंध में जानकारी उपलब्ध होती है। इस राजवंश का प्रथम शासक यादवराय या जादोराय था तदनन्तर खरजी, गोरक्षदास, संगिनदास (सुखनदास) एवं अर्जुनदास इस राजवंश के शासक हुए। अर्जुनदास के पुत्र आम्हणदास (अमानदास), जो संग्रामशाह के नाम से गोंड रियासत का अधिपति बना, इस राजवंश का प्रतापी राजा था। दिल्ली के लोदी सुल्तान एवं गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह का समकालीन होने के कारण संग्राम शाह की मध्यकालीन इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका रही।

गढ़ेशनृपवर्णनम् के अनुसार संग्रामशाह के क्षेत्राधिकार में 52 गढ़ थे। इन किलों में गढ़ा, मारूगढ़, सिगोंरगढ़, अमोदा, टीपागढ़, अमरगढ़, देवहार, पाटनगढ़, फतेहपुर, चौरई दियागढ़, पवाई करही (पन्ना), दमोह, घमौनी, हटा, मड़ियादी, गढ़ाकोटा, शाहगढ़, गढ़पहरा, रहली खिमलासा, गिन्नौरगढ़, बारीगढ़, चौकीगढ़, राहतगढ़, मकड़ई, कारूबाग, कुरवाई, भोपाल, ओपदगढ़ (भोपाल के समीप) देवरी, जगदीशपुर और गौर झामर महत्वपूर्ण गढ़ थे, कालान्तर में देवगढ़ (छिन्दवाड़ा) खेरला (बैतूल) एवं सांवलीगढ़ (बैतूल) पर भी गोंड राजाओं के किले थे। रानी दुर्गावती के समय में ये किले उनके आधिपत्य में बने रहे। वीर रानी दुर्गायती लोकप्रिय शासिका थी। वह संग्रामशाह की पुत्रवधु एवं दलपतिशाह की पत्नी थी। उसने बड़ी बहादुरी से अपने दायित्वों का सफलतापूर्वक निर्वहन कर मुगलों से लोहा लिया था। आयुक्त पुरातत्व उर्मिला शुक्ला और वरिष्ठ विभागीय अधिकारी उपस्थित थे। 

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