मध्य प्रदेश: हॉस्पिटल में गई बच्ची की जान, न्याय पाने मां ने आरटीआई को बनाया हथियार, अब दायरे में आए मप्र के सभी क्लिनिक-अस्पताल
- स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही पर आवेदक को हर्जाना
- अस्पतालों की जानकारी को रोकना अवैध: आयोग
डिजिटल डेस्क, भोपाल। अब सूचना के अधिकार के तहत आप 30 दिन के भीतर राज्य के किसी भी क्लिनिक और अस्पताल के रजिस्ट्रेशन एवं संचालन के अप्रूवल संबंधी जानकारी ले सकते हैं। लेकिन इसके पीछे एक मां की लड़ाई है जिसने अपनी बच्ची खोने के बाद न्याय पाने के लिए आरटीआई को अपना हथियार बनाया।
दरअसल जबलपुर की सुनीता तिवारी ने जबलपुर में मालवीय चौक स्तिथ स्टार हास्पिटल डॉ. राजीव जैन, के वर्ष 2020 से 2021 व वर्ष 2022 के रजिस्ट्रेशन से संबंधित सम्पूर्ण दस्तावेज आरटीआई में मांगे थे। सुनीता ने ऑनलाईन सुनवाई में बताया गया कि उन्हें आवेदन में चाही गई जानकारी अप्राप्त है। सुनीता का आरोप है कि चिकित्सा में लापरवाही से उनकी बच्ची की मृत्यु हो गई थी और उक्त चिकित्सालय डॉ० राजीव जैन द्वारा अवैधानिक रूप से चलाया जा रहा है। लेकिन इस जानकारी को जबलपुर के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी ने सुनीता तिवारी को उपलब्ध नहीं कराई वही सुनीता तिवारी की प्रथम अपील पर संचालक स्वास्थ्य ने जानकारी देने के लिए मुख्य चिकित्सा अधिकारी को आदेशित किया लेकिन उसके बावजूद सुनीता तिवारी को कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं कराई। सुनवाई के दौरान मुख्य चिकित्सा अधिकारी एवं स्वास्थ्य अधिकारी आयोग में ना तो उपस्थित हुए ना ही कोई जवाब प्रस्तुत किया।
स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही पर आवेदक को हर्जाना
जबलपुर मुख्य चिकित्सा अधिकारी एवं स्वास्थ्य अधिकारी की लापरवाही को देखते हुए सूचना आयोग ने सुनीता तिवारी को ₹5000 का हर्जाना राशि देने के आदेश जारी किए है। राहुल सिंह ने आयुक्त, संचालनालय स्वास्थ्य सेवाएं को निर्देशित किया कि वह आयोग के आदेश प्राप्ति के एक माह के भीतर क्षतिपूर्ति राशि रू. 5,000/- (पांच हजार रूपये मात्र) का भुगतान सुनीता तिवारी को करवाना सुनिश्चित करे।
अस्पतालों की जानकारी को रोकना अवैध: आयोग
सूचना आयुक्त सिंह ने प्रमुख सचिव, मध्य प्रदेश शासन, लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, को जारी निर्देश में कहा है कि वे इस आदेश की प्रति राज्य के समस्त जिला मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारियों को उपलब्ध करवाते हुए, सभी अधिकारी को निर्देशित करे कि आरटीआई आवेदन दायर होते ही 30 दिनों के भीतर अस्पताल और चिकित्सालय की जानकारी आवेदक को उपलब्ध करवाएं। सिंह ने जारी निर्देश यह स्पष्ट किया कि इस तरह की जानकारी को अधिनियम की धारा 8 और 9 के तहत रोकना अधिनियम प्रावधानों के अनुरूप न होने से अवैध है