जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव: धारा 370 हटने के बाद पहला विधानसभा चुनाव, जम्मू-कश्मीर में अब तक कितने बदले समीकरण?

  • जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद होंगे पहली बार विधानसभा चुनाव
  • धारा 370 हटने से पहले थी संयुक्त जम्मू-कश्मीर में कुल 111 सीटें
  • जानिए जम्मू-कश्मीर में परिसीमन के बाद क्या बदला

Bhaskar Hindi
Update: 2024-08-16 11:56 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर के लोग एक बार फिर लोकतांत्रिक तरीके से अपनी सरकार चुनने की तैयारी में हैं। चुनाव आयोग ने शुक्रवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की तारीख का एलान किया है। राज्य में 3 चरणों में चुनाव आयोजित किए जाएंगे। मतदान 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को होगा। मतों की गिनती 4 अक्टूबर को होगी।

दरअसल, 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद ये पहला विधानसभा चुनाव होगा। करीब 10 साल बाद होने वाला यह विधानसभा चुनाव कई मायनों में खास रहने वाला है। जम्मू-कश्मीर में आखिरी बार 2014 में विधानसभा चुनाव हुए थे, तब से अब तक काफी चीजें बदल गई हैं। जैसे कि राज्य का परिसीमन होने के बाद विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ गई है। इसके साथ ही विधानसभा चुनाव में आरक्षित सीटों की भी घोषणा की जाएगी और साथ ही 1990 के दौर में जिन कश्मीरी पड़ितों का नरसंहार किया गया था, उनके लिए भी दो सीटें आरक्षित की गई हैं। बता दें, जम्मू कश्मीर में परिसीमन के बाद विधानसभा की 90 सीटें हो गई हैं। इसके अलावा लद्दाख को जम्मू कश्मीर से पहले ही अलग कर दिया गया है।

परिसीमन के बाद कितना बदला जम्मू-कश्मीर

धारा 370 हटने से पहले संयुक्त जम्मू-कश्मीर में कुल 111 सीटें थीं। इन 111 सीटों में से जम्मू के हिस्से 37, कश्मीर के हिस्से 46, लद्दाख के हिस्से 4 और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के हिस्से 24 सीटें आती थी। लद्दाख के यूनियन टेरेटरी बनाए जाने के बाद वो सीटें कम हो गईं। धारा 370 हटने के बाद प्रदेश का पूरा नक्शा बदल गया है। परिसीमन आयोग के रिपोर्ट मुताबिक केंद्र शासित प्रदेश में 7 सीटें बढ़ाने की सिफारिश की गई थी। इसमें जम्मू क्षेत्र में 6 सीटें बढ़ाते हुए 37 से 43, जबकि कश्मीर घाटी में एक सीट का इजाफा करते हुए 46 से 47 सीटें कर दी गईं। वहीं 16 सीटों को रिजर्व कैटेगरी में रखा गया, और यहां पहली बार 9 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व की गई। आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर जब स्पेशल राज्य हुआ करता था तब यहां पर अनुसूचित जनजाति के लिए सीटें रिजर्व नहीं हुआ करती थी।

जम्मू कश्मीर में क्या-क्या बदला?

भारत की आजादी से जिस रुप और रंग में जम्मू-कश्मीर रहता रहा, उसे 5 अगस्त 2019 को पूरी तरह से बदल दिया गया। 5 अगस्त को सिर्फ धारा 370 ही नहीं हटाया गया बल्कि जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग कर दिया गया। दोनों ही अब केंद्र शासित प्रदेश हैं।

हालांकि, जम्मू-कश्मीर में विधानसभा भले ही है लेकिन यहां अब सरकार पहले जैसी नहीं रहेगी। पहले जम्मू-कश्मीर में चुनी हुई सरकार ही सबकुछ थी, लेकिन अब उपराज्यपाल सबसे ऊपर होंगे। आसान भाषा में कहें तो पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर एलजी के अधिकार में होगा तो वहीं अन्य सभी विभाग सीएम के हिस्से में आएंगे।

कश्मीरी पंडितों को क्या?

लगभग तीन दशक से अपने ही मिट्टी से विस्थापित हुए कश्मीरी पंडितों के लिए भी केंद्र सरकार ने कई प्रावधान किए हैं।आपको बता दें कि, विधानसभा चुनाव में कश्मीरी पंडितों के लिए दो सीटें आरक्षित रखी गई हैं, यानी अब उपराज्यपाल को यह शक्ति दी गई है कि वो दो कश्मीरी पंड़ित और एक पीओके से विस्थापित व्यक्ति को विधानसभा के लिए नामित करें। जिन दो कश्मीरी प्रवासियों को नामित किया जाएगा, उनमें से एक महिला होगी। इसके साथ ही अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए 16 सीटें रिजर्व की हैं, जिनमें से एससी के लिए 7 और एसटी के लिए 9 सीटें रखी गईं हैं।

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