Manibeli News: रोंगटे खड़े कर देने वाले हालात में जी रहे, बिजली अब तक नहीं पहुंची, बदहाल व्यवस्था
- खस्ताहाल सड़कें, जर्जर अस्पताल और लाचार ग्रामीण
- नाव से होता है परिवहन
Manibeli News : विकास की ऊंची-ऊंची बातें करने वाले नेताओं और अफसरों को एक बार मणिबेली पहुंचकर वास्तविक स्थिति से जरूर वाकिफ होना चाहिए। राज्य के विधानसभा क्षेत्र की शुरुआत यहीं से होती है। विधानसभा क्षेत्र क्रमांक एक अक्कलकुआ के मतदान केंद्र क्रमांक एक मणिबेली में पहुंचकर दैनिक भास्कर ने पूरे हालात का जायजा लिया। राज्य पहली ग्राम पंचायत के ग्रामीणों ने बताया, देश स्वतंत्र होने के बाद से अब तक वह पेयजल, सड़कें, चिकित्सा केंद्र और स्कूलों की बाट जोह रहे हैं। गत 15 नवंबर को देशभर में आदिवासी गौरव दिवस मनाया गया, लेकिन इस आदिवासी तहसील में लोग अब भी रोजमर्रा की जरूरी चीजों के लिए जद्दोजहद करता नजर आता है। यहां की चुनौतियां इतनी हैं कि शहरी जीवन में रह चुके लोगों को रोंगटे खड़े हो जाएं। ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें 60 वर्षों में केवल सोलर बत्तियां मिली हैं। बाकी विकास और बुनियादी सुविधाओं को दिए जाने का ढोंग किया जा रहा है। 35 वर्षों से एड. कागड़ा चांद्या उर्फ केसी पाड़वी यहां से विधायक हैं और अब उनके पुत्र गोवाल पाड़वी सांसद हैं। इससे पूर्व हिना गावित यहां की सांसद थीं। पाड़वी से मणिबेली और परिसर के विकास कार्यों को लेकर चर्चा करने के लिए जब संपर्क किया गया तो उन्होंने इस पर कोई प्रतिसाद नहीं दिया।
खस्ताहाल सड़कें, जर्जर अस्पताल और लाचार ग्रामीण
मणिबेली यह मतदान केंद्र अतिदुर्गम है। यहां पर पहुंचने के लिए अक्कलकुआ से मोलगी, पलसखुंडा होते हुए करीब 4 घंटे लगते हैं, जबकि दूरी 60 किलोमीटर की है। पलसखुंडा से मणिबेली तक सड़क से पहुंचना एक साहसिक कार्य माना जा सकता है, जो यहां के आदिवासी रोजाना करते हैं। जर्जर मार्ग को पार कर नर्मदा नदी को नाव से पाड़े तक पहुंचना एक कठिनतम सफर होता है। सरदार सरोवर परियोजना में डूबने वाला भी यही मणिबेली गांव है। गांव के लिए सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर नर्मदा जीवन अभियान के तहत एक स्कूल चला रही हैं, जो चौथी कक्षा तक है। स्कूल के अध्यापक वीरसिंग सैल्या पावरा ने बताया, इस स्कूल में 69 विद्यार्थी पढ़ते हैं, पर उनकी आगे की पढ़ाई के लिए कोई अन्य व्यवस्था नहीं है। वसावे ने बताया, वह वर्षों से सरकार के पास उनकी ग्रामपंचायत क्षेत्र, स्वास्थ्य सुविधा, सड़क और स्कूल निर्माण करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन कोई सरकारी विभाग इसे गंभीरता से नहीं ले रहा है। मणिबेली गांव में आयुष्यमान भारत योजना के तहत एक चिकित्सालय बनाकर दिया गया, लेकिन उसमें कभी वैद्यकी अधिकारी या चिकित्साकर्मियों को नियुक्त नहीं किया गया। ठेकेदार ने अत्यंत कामचलाऊ सामग्री से यह चिकित्सालय बनाया है, जो वर्तमान में पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है। बांध के बीचो-बीच बसे इस गांव में पानी के लिए एक जलकुंभ बनाया गया है। इस गांव में अब तक बिजली नहीं पहुंच सकी है, बावजूद इसके यहां जलकुंभ बनाया गया है, जो अब पूरी तरह से खंडहर हो चुका है। ऐसे ही टपरीनुमा चिकित्सालय में भी बिजली की पूरी व्यवस्था की गई है, लेकिन बिजली नहीं होने की वजह से उसके कोई मायने नहीं रह जाते हैं और यह यहां के आदिवासियों के साथ मजाक करने सा लगता है।
नाव से होता है परिवहन
ग्रामीणों ने बताया, सड़कें नहीं होने के कारण उन्हें सबसे अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। पाड़ों पर आवागमन और मुख्य रास्ते तक पहुंचने के लिए प्रत्येक पाड़े पर उन्होंने नाव की व्यवस्था बनाई है, जिसके माध्यम से पनी जरूरतों को पूरा करते हैं। कई बार नाव से ही छोटे मवेशियों को किनारों तक पहुंचाते हैं। रखरखाव नहीं होने की वजह से कई बार यहां नाव डूब चुकी है।
राज्य की पहली मतदाता
एक पत्रे के शेड में राज्य का पहला क्रमांक का मतदान केंद्र है। मतदान सामग्री के रूप में यहां पर एक फलक और कुर्सी पड़ी है। मतदाता सूची में प्रथम क्रमांक की 46 वर्षीय रविता पंकज तड़वी का नाम है। वही, राज्य की पहली मतदाता है।
भौगोलिक चुनौतियां
सरकारी सूत्रों ने बताया, वर्तमान स्थिति में वह अधिकारिक तौर पर जानकारी नहीं दे सकते हैं, लेकिन अक्कलकुवा तहसील के मेणिबेली परिसर में कई भौगोलिक चुनौतियां हैं। इसकी वजह से यहां पर विकास कार्य करने में मुश्किलें आती हैं। कई पाड़ों तक बिजली पहुंचाई है। बांध परिसर के टापू पर रहने वाले का पुनर्वसन किया जा चुका है, लेकिन उन्हें पुनर्वसन मंजूर नहीं है।