Parbhani News: त्रिकोणीय संघर्ष में वोट विभाजन की जटिलता, जाति फैक्टर करेगा उम्मीदवारों के बीच घमासान
- जाति आधारित राजनीति और समीकरण हावी
- वंचित बहुजन आघाड़ी के उम्मीदवार सुरेश नागरे का चुनावी संग्राम निर्णायक होगा
Parbhani News : जिंतूर विधानसभा क्षेत्र से महायुति उम्मीदवार और भाजपा विधायक मेघना साकोरे बोर्डीकर, मविआ के उम्मीदवार पूर्व विधायक विजय भांबले और कांग्रेस के बागी और वंचित बहुजन आघाड़ी के उम्मीदवार सुरेश नागरे का चुनावी संग्राम निर्णायक होगा। जिंतूर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र राजनीतिक रूप से संवेदनशील निर्वाचन क्षेत्र है। विशेष रूप से इस निर्वाचन क्षेत्र में प्रत्येक संघर्ष ने संतुलन और पूरे जिले का ध्यान आकर्षित किया है। हाल के दो विधानसभा चुनाव बेहद संघर्ष पूर्ण रहे। दो बलशाली उम्मीदवारों के वोटों के बीच छोटे अंतर वाले उम्मीदवारों के मुकाबले की रंगीन तस्वीर दिखाई दी, इसलिए चुनाव में फिर वही स्थिति पैदा हो गई है। दोनों पारंपरिक प्रतिद्वंद्वी भांबले और बोर्डिकर फिर से मैदान में हैं। एक-दूसरे के कट्टर प्रतिद्वंद्वी इन दोनों ने सचमुच इन चुनावों को प्रतिष्ठित बना दिया है। यही कारण है कि पूरे संसदीय क्षेत्र में राजनीतिक माहौल गरमाया हुआ है। ऐसी तस्वीर है कि प्रचार युद्ध के अंतिम चरण में यह माहौल अपने चरम पर पहुंचेगा और दोनों प्रतिद्वंद्वियों की पर्दे के पीछे और बाहर की रणनीति एक बड़ा भ्रम पैदा करेगी।
मैदान में 9 निर्दलीय उम्मीदवार : निर्वाचन क्षेत्र से महायुति और मविआ के बीच संतुलित लड़ाई का परिणाम वोटों का विभाजन हो सकता है। मैदान में 9 निर्दलीय उम्मीदवार हैं, जिनमें चार पार्टियां वंचित बहुजन आघाड़ी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय समाज पार्टी, एमआईएम और दो छोटे घटक दल शामिल हैं। इनमें कांग्रेस के बागी और वंचित बहुजन आघाड़ी के नागरे वोट विभाजन में काफी प्रभावशाली हैं और अन्य उम्मीदवार भी चार के आंकड़े तक पहुंचने वाले हैं। अब यह एक अनुत्तरित प्रश्न है, उनमें से कौन किसकी राय से प्रभावित होगा, जिससे मत विभाजन होगा।
जाति आधारित राजनीति और समीकरण हावी
संसदीय क्षेत्र में जाति आधारित राजनीति और समीकरण हावी है। मराठा समुदाय के साथ-साथ वंजारी, बंजारा और अन्य ओबीसी समुदाय विभिन्न क्षेत्रों में प्रभावी हैं। जिंतूर जैसे शहरी इलाकों में सेलू शहर और तहसील में उच्च जाति और दलित-मुस्लिम समुदायों का भी निर्णायक वोट बैंक है। कुछ समूहों में आदिवासियों की भी श्रेष्ठता है। हर छोटे-बड़े चुनाव में जाति-पांति का गणित ही मुख्य रूप से सफलता और असफलता का कारण बनता रहा है। साफ है कि इस आम चुनाव में भी जाति आधारित गणना प्रभावी रहेगी, इसलिए विधायक साकोरे-बोर्डिकर और भांबले दोनों संतुलित प्रतिद्वंद्वी हैं। कुल मिलाकर आरक्षण के मुद्दे की पृष्ठभूमि में गरमाए माहौल में दोनों प्रतिद्वंद्वियों को अपना-अपना वोट बैंक बनाए रखने और एक-दूसरे के वोट बैंक को साधने में काफी मेहनत करनी पड़ रही है। वंबआ और एमआईएम का वोट बांटने का खेल इन दोनों के लिए कठिन और खतरनाक हो गया है, इसलिए मत विभाजन की जटिलता दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। ऐसे संकेत हैं कि प्रचार के अंतिम चरण में वोट विभाजन की गुलाबी तस्वीर धुंधली हो जाएगी।