78वां स्वतंत्रता दिवस: गुफाओं में रहकर बादल भोई ने लड़ी आजादी की लड़ाई, देवरानी दाई क्षेत्र का जंगल बना था आश्रय स्थल, जल, जंगल जमीन के लिए किया संघर्ष

  • आजादी के आंदोलन में जिले के सैकड़ों नागरिकों ने योगदान दिया
  • स्वतंत्रता सेनानी बादल भोई ने ब्रिटिश सरकार को हिलाकर रख दिया
  • छिंदवाड़ा में 1997 में बादल भोई के नाम बनाया गया आदिवासी संग्रहालय

Bhaskar Hindi
Update: 2024-08-15 04:20 GMT

डिजिटल डेस्क, छिंदवाड़ा। आजादी के आंदोलन में जिले के सैकड़ों नागरिकों ने योगदान दिया। इनमें से अधिकांश लोग शहरी आबादी और संपन्न परिवारों के सदस्य थे। आदिवासी अंचल के लोग स्वतंत्रता आंदोलन से अनजान थे। ब्रिटिश हुकूमत वन अंचल से बेशकीमती संपदा लूटने में लगी थी तब एक आदिवासी नायक सामने आए और ब्रिटिश सरकार को हिलाकर रख दिया। उस नायक का नाम था बादल भोई।

ब्लाक परासिया के आदिवासी अंचल की पंचायत डुंगरिया के गांव तीतरा में पिता कल्याण और माता विमलाबाई के घर वर्ष 1845 में बादल भोई का जन्म हुआ। उनके पैतृक निवास से लगभग पांच किमी दूरी पर देवरानी दाई क्षेत्र का जंगल और गुफाएं हैं। वर्ष 1923 से लगभग 7 साल तक आदिवासी अधिकारों की लड़ाई लडऩे वाले इस स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ने अपना अधिकांश समय देवरानी दाई क्षेत्र के जंगल और वहां बनी गुफाओं में छिपकर बिताया, उनका बचपन कभी मवेशी चराते, कभी वन उपज एकत्रित करते, कभी खेलते- कूदते बीता था। अंगे्रजों से छिपकर रहने के दौरान उनका अन्य क्षेत्रों के ग्रामीणों से संपर्क बना रहता था, जो आंदोलन और संघर्ष की नई रणनीति मिलकर बनाते थे।

आदिवासियों ने किया कलेक्टर बंगले का घेराव

कोयलांचल की खदानों से कोयला निकालने और वनांचल से सागौन-शीशम की बेसकीमती लकड़ी कटाई करवाने ग्रामीण मजदूरों पर अंगे्रेज काफी अत्याचार करते थे। वर्ष 1923 में बादल भोई के नेतृत्व में आसपास क्षेत्र के आदिवासियों ने एकजुट होकर कलेक्टर बंगला छिंदवाड़ा का घेराव किया। पुलिस के लाठी चार्ज से हजारों आदिवासी घायल हुए। अंगे्रेजों ने बादल भोई को जेल भेजा और भविष्य मेंं आंदोलन नहीं करने का आश्वासन के साथ मुचलके पर रिहा किया। जल, जंगल और जमीन की यह लड़ाई की गूंज पूरे देश में सुनाई दी, तो उनका हांैसला बढ़ाने महात्मा गांधी छिंदवाड़ा आए थे। आदिवासी समुदाय पर अंग्रेजों का अत्याचार बढ़ा तो बादल भोई ने रेल रोको आंदोलन सहित कई आंदोलन किए। जंगल सत्याग्रह के नायक बादल भोई के नेतृत्व में ही वर्ष १९३० में छिंदवाड़ा से 45 किमी दूर रामकोना के पास जाखावाड़ी में वनअधिकार कानून का विरोध किया। अंग्रेजी फौज ने उन्हें गिरफ्तार किया और उनके साथियों से अलग महाराष्ट्र की जेल में रखा, जहां अंगे्रजों की यातनाओं को झेलते हुए 95 वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हुई।

अब नहीं रहे गाथा सुनाने वाले

बादल भोई के जमाने का अब कोई भी व्यक्ति इस दुनिया में नहीं है, किन्तु बुजुर्गों से उनकी वीर गाथा सुनकर अगली पीढ़ी को सुनाने वाले ग्रामीणों की संख्या काफी है। देवरानी दाई जंगल पहुंचने वाले लोग यहां बादल भोई की गुफाएं देखने उत्सुक रहते हैं। देवरानी दाई देवी मंदिर और जल प्रपात के चलते इस जगह को अब पर्यटन और धार्मिक स्थल के रूप में नई पहचान मिल रही है। उनके पैतृक गांव तीतरा को उनकी प्रतिमा स्थापना के बाद नई पहचान मिली है। वर्ष 1997 में बादल भोई के नाम पर छिंदवाड़ा में आदिवासी संग्रहालय बनाया गया।

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