लोकसभा चुनाव 2024: भाजपा के मजबूत घर में बम ने दिया कांग्रेस को धोखा, इंदौर में पार्टी को फायदे से ज्यादा नुकसान!
- अक्षय कांति बम ने कांग्रेस से ली एग्जिट
- भाजपा का थामा दामन
- जानिए किस नेता ने भाजपा में शामिल होने का दिखाया मार्ग
डिजिटल डेस्क,नई दिल्ली। इंदौर सीट से कांग्रेस प्रत्याशी बनकर उतरे अक्षय कांति बम ने एक नाटकीय घटनाक्रम के तहत अपना नामांकन वापस लिया और बीजेपी की सदस्यता भी ग्रहण कर ली। अब बीजेपी के सामने इंदौर लोकसभा सीट पर भी कोई मुकाबला नहीं बचा है। पर, ये सवाल उठता है कि क्या बीजेपी के सामने पहले इस सीट पर कोई चुनौती थी। क्या अक्षय कांति बम, जो राजनीति के मैदान में नए नए खिलाड़ी हैं वो बीजेपी के कद्दावर नेता शंकर ललवानी पर भारी पड़ रहे थे। अगर नहीं, तो फिर इंदौर में इस पूरे सियासी ड्रामे की नौबत क्यों आई। जिसका मुजाहिरा खुद कैलाश विजयवर्गीय जैसे बड़े नेता को फोटो खिंचाकर करना पड़ा। असल में इंदौर ही नहीं पूरा मालवा ही बीजेपी का गढ़ है। वहां इस तरह का पॉलिटिकल घटनाक्रम समझ से परे कहा जा सकता है।
इंदौर लोकसभा सीट पर बीजेपी की स्थिति
1989 के आम चुनाव के बाद से ही मध्यप्रदेश की इंदौर लोकसभा सीट बीजेपी का गढ़ कही जाने लगी है। साल 1989 के आम चुनाव में इंदौर सीट पर पहली बार बीजेपी ने चुनाव जीता. इस चुनाव में बीजेपी से सुमित्रा महाजन सांसद निर्वाचित हुईं। इसके बाद सुमित्रा महाजन ने बीजेपी के टिकट पर इंदौर सीट से लगातार 7 चुनाव लड़े और हर बार बीजेपी को जीत दिलाई। साल 2014 का आम चुनाव जीतने के बाद सुमित्रा महाजन को लोकसभा का स्पीकर बना दिया गया।
साल 2019 के आम चुनाव में बीजेपी ने इंदौर सीट से शंकर लालवानी को चुनावी मैदान में उतारा। वहीं, कांग्रेस ने शंकर लालवानी को हराने के लिए पंकज संघवी को चुनावी मैदान में उतारा था। चुनावी नतीजों में शंकर लालवानी को 5 लाख 47 हजार 754 वोट से जीत मिली। इस दौरान बीजेपी प्रत्याशी शंकर लालवानी कुल 10 लाख 68 हजार 569 वोट मिले। जबकि, कांग्रेस प्रत्याशी पंकज संघवी को मात्र 5 लाख 20 हजार 815 वोट मिले। वहीं, 2023 के विधानसभा चुनाव में इंदौर जिले की सभी 9 विधानसभा सीटों पर भी बीजेपी ने जीत हासिल की थी. कांग्रेस तो मैदान से बाहर ही हो चुकी थी। इस हिसाब से 2024 के आम चुनाव में इंदौर लोकसभा सीट पर बीजेपी की स्थिती पहले ही मजबूत बनी हुई थी। और अब कांग्रेस का कोई उम्मीदवार न होने से बीजेपी की जीत लगभग तय हो गई है।
पहले ही टूट चुकी थी कांग्रेस
अक्षय कांति बम का बीजेपी में आना कोई बड़ी बात नहीं है. इसके पहले भी इंदौर सीट के कई नेता कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आ चुके हैं। 2023 के विधानसभा चुनाव में इंदौर-1 सीट से पूर्व विधायक संजय शुक्ला, देपालपुर से पूर्व विधायक विशाल पटेल ने चुनाव लड़ा था. लेकिन वह हार गए उसके बाद उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया। इसके साथ ही 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी रहे पंकज संघवी, महू विधानसभा सीट से कांग्रेस प्रत्याशी रहे रामकिशोर शुक्ला, महू सीट से पूर्व विधायक अंतर सिंह दरबार भी बीजेपी में शामिल हो गए थे।
विधानसभा चुनाव में मालवा की स्थिति
मालवा निमाड़ की सीटों की बात करें, तो इस अंचल में कुल 66 विधानसभा सीटें आती हैं। इतनी बड़ी सख्या की वजह से ही मालवा और निमाड़ को मध्यप्रदेश की सत्ता की चाबी भी कहा जाता है. इन 66 सीटों में 48 सीटें बीते विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खाते में चली गई हैं। एक सीट पर भारत आदिवासी पार्टी जीत हासिल करने में कामयाब रही. साल 2018 के चुनाव में मालवांचल से कांग्रेस को 35 सीटें मिली थीं। लेकिन पिछले चुनाव में पार्टी को महज 17 सीटें ही मिल सकीं।
कार्यकर्ताओं का आना फायदा या नुकसान?
अक्षय कांति बम के आने से बीजेपी को लगभग वॉकओवर मिल गया है। अब बीजेपी के सामने कोई ऐसा उम्मीदवार नहीं बचा है जो उसे टक्कर दे सके। वहीं, जहां एक तरफ बीजेपी को इसका बड़ा फायदा हुआ है तो दूसरी तरफ इसका भारी नुकसान भी उसको चुकाना पड़ सकता है। जो आने वाले चुनावों में देखने को मिल सकता है। क्योंकि एक तरफ तो वैसे ही बीजेपी के कार्यकर्ता सुस्त हैं तो दूसरी तरफ विपक्ष के कार्यकर्ताओं के आने से माहोल सिर दर्द जैसै बनता जा रहा है। कार्यकर्ताओं की भीड़ तो पार्टी में बढ़ती जा रही है लेकिन उनको जगह कहां मिलेगी यह बड़ा सवाल है। जो कार्यकर्ता पार्टी में पहले से ही हैं उनको भी अपनी एक जगह चाहिए और जो विपक्ष के बड़े चेहरे पार्टी में आ रहे हैं उनको भी अपने लिए जगह चाहिए. बीजेपी के सामने चुनौती होगी कि वो आने वाले दिनों में इतने नए चेहरों को कहां और कैसे एडजस्ट करती है। ऐसा न होने पर बीजेपी का ये सियासी दांव बूमरेंग की तरह खुद उस पर ही पलटवार कर सकता है।