मध्य प्रदेश चुनाव: बागियों ने बिगाड़ा कांग्रेस का खेल, बीजेपी के बागी भी बने कांग्रेस की ही हार का कारण, इन सीटों पर बुरी तरह बिगड़ा कमलनाथ-दिग्विजय सिंह का गणित!

  • बागियों ने बीजेपी को कम और कांग्रेस को ज्यादा नुकसान पहुंचाया
  • कांग्रेस की बुरी हार की एक वजह बागी भी बने
  • सीट पर प्रत्याशी बदलना भी कांग्रेस को पड़ा महंगा

Bhaskar Hindi
Update: 2023-12-04 13:17 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के चुनावी नतीजे आ चुके हैं। प्रदेश में बीजेपी ने बंपर जीत हासिल की है। वहीं, बीते 3 सालों से सत्ता के लिए लालायित कांग्रेस को अभी पांच साल और इंतजार करना पड़ सकता है। राज्य में एंटी इनकंबेंसी होने के बावजूद भी बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने चुनाव के दौरान राज्य की कमान संभाली और पार्टी को जीत दिलाकर ही माने। इस बार का मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव कई मायनों में खास रहा। क्योंकि, पहली बार राज्य चुनाव के दौरान कांग्रेस और बीजेपी कई नेता एक के बाद एक बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़े। जिसके चलते कई सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय हो गया। कई नेताओं ने अपनी ही पार्टी को नुकसान पहुंचाया तो कई बागी नेता राज्य में कांग्रेस की बुरी प्रदर्शन की वजह बने। 

40 से ज्यादा सीटों पर बागी नेता

 प्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों में से इस बार 40 से ज्यादा सीटों पर बागी नेता चुनाव लड़े। जिनमें 27 नेताओं ने अपनी पार्टी को नुकसान पहुंचाया। बीजेपी की ओर से 22 नेता बागी होकर चुनाव लड़े, इनमें से 14 सीटों पर बीजेपी को जीत हासिल हुई। लेकिन आठ सीटों पर कांग्रेस ने बाजी मारी। वहीं, कांग्रेस की ओर से 22 बागी नेता चुनावी मैदान में थे। जिनमें से पार्टी को 19 सीटों पर नुकसान हुआ। कांग्रेस को केवल भोपाल उत्तर, जोबट, शोयपुर सीट पर पार्टी के बागी नेता नुकसान नहीं पहुंचा पाए। खास बात यह है कि इस बार राज्य में एक भी निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव नहीं जीता है।

उज्जैन में बागियों ने बिगाड़ा खेला

बागी नेताओं के चलते कई सीटों पर उलटफेर देखने को मिला। जिनमें उज्जैन जिले की महिदपुर, बड़नगर रतलाम जिले की जावरा और आलोट सहित कई सीटें शामिल हैं। उज्जैन जिले की महिदपुर सीट से बीजेपी की ओर से बगावत करके प्रताप आर्य ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया, जिसके चलते पार्टी प्रत्याशी बहादुर सिंह चौहान को हार सामना करना पड़ा। उन्हें कांग्रेस प्रत्याशी ने केवल 285 वोटों के अंतर से हरा दिया। ठीक ऐसा ही हाल उज्जैन के बड़नगर में भी रहा। यहां पर पहले कांग्रेस ने राजेंद्र सिंह सोलंकी को अपना प्रत्याशी बनाया और फिर पार्टी ने विधायक मुरली मोरवाल को टिकट दे दिया। इसके बाद राजेंद्र सोलंकी ने पार्टी के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया। निर्दलीय चुनाव लड़े और 31,005 वोट पाकर खुद की पार्टी के लिए मुश्किलें पैदा कर दी। इस सीट पर बीजेपी प्रत्याशी जितेंद्र पंड्या को 36,000 वोट से जीत मिली। अगर कांग्रेस के बागी और अधिकृत प्रत्याशी के वोट मिलती पार्टी की जीत सुनिश्चित हो सकती थी।  

कांग्रेस को प्रत्याशी बदलना पड़ा महंगा

सुमावली से भी कांग्रेस को प्रत्याशी बदलना महंगा पड़ा। यहां पर पार्टी बागी होकर बसपा से चुनाव लड़े कुलदीप सिंह सिकवार को 56 हजार से अधिक वोट मिले। वहीं, तीसरे नंबर पर रहे कांग्रेस प्रत्याशी अजब सिंह कुशवाहा को जीत के लिए 17 हजार वोटों की जरूरत थी। 

आलोट में कांग्रेस के पूर्व सांसद प्रेमचंद गुड्डू बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़े और 37 हजार वोट मिले। यहां कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी मनोज चावला तीसरे नंबर पर रहे और उन्हें 33 हजार ही वोट मिले। जावरा में भी कांग्रेस के बागी जीवन सिंह शेरपुर ने बीजेपी के राजेंद्र पांडे को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई। 

बीजेपी को मुरैना हार का सामना करना पड़ा। यहां पर पार्टी से बागी होकर बीजेपी की ओर पूर्व मंत्री रूस्तम सिंह के बेटे राकेश सिंह चुनाव लड़े। जिसके चलते कांग्रेस नेता दिनेश गुर्जर 19871 वोटों से जीते। अगर यहां से बीजेपी के बागी नेता राकेश सिंह चुनाव नहीं लड़ते तो नतीजे पार्टी के हक में हो सकते थे। 

बीजेपी को इन सीटों बागियों ने नहीं पहुंचाया नुकसान

सीधी सीट से बीजेपी नेता केदारनाथ शुक्ल निर्दलीय चुनाव लड़े और बीजेपी सासंद रीति पाठक के सामने हारे

बुरहानपुर सीट से बीजेपी नेता नंदकुमार सिंह के बेटे हर्षवर्धन सिंह निर्दलीय चुनाव लड़े और हारे

भिंड सीट से संजीव सिंह हाल ही में बीजेपी में शामिल हुए और टिकट नहीं मिला तो फिर बीएसपी से मैदान में उतरे और हारे

सतना में चुनाव से पहले भाजपा के पूर्व जिला उपाध्यक्ष रत्नाकर चतुर्वेदी बसपा में शामिल हुए और उन्होंने भाजपा के चार बार के लोकसभा सांसद गणेश सिंह को कड़ी टक्कर दी और हारे

राजनगर सीट से भाजपा नेता और खजुराहो विकास प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष घासीराम पटेल बसपा में शामिल हुए और हारे

नागौद सीट से पूर्व विधायक यादवेंद्र सिंह को कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया और बसपा में शामिल हो गए और हारे

डॉ अम्बेडकर नगर से पूर्व कांग्रेस नेता अंतर सिंह दरबार निर्दलीय मैदान उतरे और बीजेपी की उषा ठाकुर से हारे 

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