Nagpur News: फेल रही मत विभाजन की रणनीति - नहीं चला जादू, नितीन राऊत ने दर्ज की जीत
- अधिक उम्मीदवार भाजपा की योजना समझा गया
- पदाधिकारियों ने व्यक्त की थी नाराज
Nagpur News . उत्तर नागपुर विधानसभा सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है। दो बार भाजपा जीती। उससे पहले आरपीआई या अन्य दल जीते। 2014 को छोड़ दिया जाए, तो 1999 से कांग्रेस के नितीन राउत जीत रहे हैं। 2019 और 2024 के लोकसभा चुनाव में भी इस सीट पर भाजपा पिछड़ गई। इस बार मत विभाजन के लिए भाजपा ने प्रयास किए, लेकिन सफल नहीं रही। सबसे अधिक 26 उम्मीदवार इसी क्षेत्र में थे, लेकिन भाजपा और कांग्रेस के अलावा अन्य दल के उम्मीदवार 4 डिजिट के आंकड़े को भी पार नहीं कर पाए। भाजपा के मिलिंद माने लगातार दूसरी बार पराजित हुए। वे इस सीट से निर्दलीय भी चुनाव लड़ चुके हैं। इस बार माने की उम्मीदवारी को लेकर भाजपा में ही विरोध था। नामांकन दर्ज करने के आखिरी दिन माने की उम्मीदवारी तय हुई। भाजपा में अंतर्कलह कायम रही। कांग्रेस एससी सेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे नितीन राउत आसानी से जीत गए। 10 नगरसेवकों वाली बीएसपी और एमआईएम कुछ मतों तक ही सीमित रह गए। भाजपा की पराजय की समीक्षा होगी। आरएसएस की माइक्रोप्लानिंग भी जादू नहीं कर पाईं। प्रचार में चर्चा रही की चुनाव प्रबंधन में केवल एक नेता को अधिक महत्व देना हानिकारक हो सकता है। अनुमान लगभग सही ठहरा। कांग्रेस की मदद से मनपा चुनाव लड़ने और जीतने की चाह रखने वाले भाजपा के कुछ कार्यकर्ताओं की पार्टी निष्ठा की भी समीक्षा होगी।
अधिक उम्मीदवार भाजपा की योजना समझा गया
यह भी माना जा रहा है कि अधिक उम्मीदवार मैदान में होने को भाजपा की ही योजना समझा गया। उसको लेकर अनुसूचित वर्ग के मतदाता नाराज हुए। नितीन राउत खुद को राज्य की राजनीति में कांग्रेस का दलित चेहरा दर्शाने में सफल रहे। उनके प्रचार के लिए कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी पहुंचे। खड़गे कांग्रेस के दलित नेताओं का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। इसके अलावा पिछले चुनावों में नितीन राऊत से दूर रहे संदीप सहारे जैसे कुछ नेताओं को साधने में राऊत सफल नजर आए। बसपा में उम्मीदवार को लेकर फेरबदल का प्रभाव भी समीक्षा का विषय होगा।
पदाधिकारियों ने व्यक्त की थी नाराज
उत्तर नागपुर में कुछ कार्यकर्ताओं ने नाराजगी व्यक्त की थी। वे किसी नए चेहरे को उम्मीदवारी देने की मांग कर रहे थे। संदीप गवई, संदीप जाधव संदीप शिंदे का नाम आगे बढ़ाया गया था। माना जा सकता है कि, पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं ने उत्साह से काम नहीं किया।