लोकसभा चुनाव 2024: बीजेपी उम्मीदवार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में लगी याचिका, नोटा का वोट अधिक होने पर चुनाव रद्द करने की मांग
- मामले में अगली सुनवाई सात मई को होगी
- सुको ने निर्वाचन आयोग को जारी किया नोटिस
- सूरत में नोटा को एक वैध उम्मीदवार के रूप में मानने में विफल
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव में किसी उम्मीदवार से अधिक 'नोटा' को वोट मिलने पर संबंधित चुनाव को अमान्य घोषित कर रद्द करने का निर्देश देने की मांग वाली एक जनहित याचिका पर विचार करने का फैसला करते हुए आज 26 अप्रैल शुक्रवार को निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किया। सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ,जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक शिव खेड़ा की ओर से दायर याचिका पर ईसी को नोटिस जारी किया। तीन जजों की पीठ ने कहा हम इलेक्शन कमीशन को नोटिस जारी करेंगे। यह चुनावी प्रक्रिया से संबंधित है। देखते हैं चुनाव आयोग इस मामले क्या कहता है।
इस पर याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि संबंधित स्टेट इलेक्शन कमीशन ने घोषणा की है कि यदि नोटा किसी भी चुनाव में विजेता के रूप में उभरा तो वहां अनिवार्य रूप से पुनर्मतदान होगा। उन्होंने कोर्ट में आगे कहा कि गुजरात की सूरत लोकसभा सीट पर बीजेपी प्रत्याशी के अलावा कोई अन्य उम्मीदवार नहीं था, इसलिए माना गया कि सभी मतदाता एक ही उम्मीदवार के पक्ष में हैं। सूरत में पिछले दिनों भाजपा उम्मीदवार को निर्विरोध निर्वाचित घोषित किया गया था।
यूनीवार्ता के मुताबिक याचिका में दलील दी गई है कि वर्ष 2013 के बाद से नोटा के कार्यान्वयन ने उस उद्देश्य को पूरा नहीं किया है, जिसके मकसद से इसे लागू किया गया। इससे मतदाताओं की भागीदारी में वृद्धि नहीं हुई है। राजनीतिक दलों को अच्छे उम्मीदवारों को मैदान में उतारने के लिए मजबूर नहीं किया गया है। नकारात्मक वोटों को प्रतिबिंबित नहीं किया है। चुनाव परिणामों में और नोटा के माध्यम से व्यक्त विचार लोगों की बहुमत की इच्छा/राय का सम्मान और आदर नहीं करता है। याचिका में कहा गया है कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) में नोटा का विकल्प हमारी चुनाव प्रणाली में मतदाता को प्राप्त 'अस्वीकार करने के अधिकार' का नतीजा है।
आपको बता दें पिटिशन में कहा गया है निर्वाचन आयोग नोटा को एक वैध उम्मीदवार के रूप में मानने में असफल रहा है, जो कि लोकतंत्र के लिए जरुरी है। वजह यह कि नोटा केवल एक नागरिक का 'मतदान' नहीं है, बल्कि वास्तव में एक वैध चयन है। भारत से पहले 13 अन्य देशों ने नकारात्मक मतदान या अस्वीकार करने का अधिकार अपनाया। उस सूची में फ्रांस, फिनलैंड, बेल्जियम, ब्राजील, बंगलादेश, चिली, ग्रीस, स्वीडन, यूक्रेन, अमेरिका, कोलंबिया और स्पेन जैसे देश शामिल हैं।
उच्चतम न्यायालय ने पीयूसीएल बनाम भारत सरकार' (2013) केस में अपने ऐतिहासिक फैसले में सभी ईवीएम में नोटा (उपरोक्त में से कोई नहीं) विकल्प शुरू करने का आदेश दिया था। याचिका में कहा गया,“चुनावी प्रणाली में नोटा को अपनाने में इस अदालत का एक आदर्शवादी दृष्टिकोण था। राज्य चुनाव आयोगों ने संविधान में अपनी शक्तियों का उपयोग करके उस आदर्शवादी विचार को वास्तविकता में बदल दिया है। चार राज्यों में पंचायत और नगर निगम चुनावों से जो शुरुआत हुई है, उसे सभी स्तरों पर समान रूप से लागू किया।