इतना आसान नहीं वरूण गांधी का कांग्रेसी होना, नफा नुकसान के आंकलन में कांग्रेस को नुकसान ज्यादा फायदा नजर आ रहा है कम!
कांग्रेस के लिए कितने जरूरी वरूण गांधी? इतना आसान नहीं वरूण गांधी का कांग्रेसी होना, नफा नुकसान के आंकलन में कांग्रेस को नुकसान ज्यादा फायदा नजर आ रहा है कम!
डिजिटल डेस्क,नई दिल्ली। साल 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी दोनों अपनी दावेदारी पेश कर रही हैं। सत्तारूढ़ बीजेपी जहां चुनावी माहौल को भांपते हुए अपने वरिष्ठ नेताओं को जमीनी स्तर पर जनता का मूड समझने के लिए उतारने लगी हैं। वहीं कांग्रेस पार्टी ने हाल ही में अपनी भारत जोड़ो यात्रा खत्म की है।
भले ही कांग्रेस इस यात्रा को देश से नफरत हटाने और प्यार बांटने वाली बताती रही हो। लेकिन राजनीतिक पंडितों का मानना है कि, इस यात्रा से ही कांग्रेस पार्टी की साल 2024 की यात्रा का पता चल पाएगा। हालांकि, इन सबसे अलग भाजपा नेता वरूण गांधी पर नजर रहने वाली है क्योंकि अपनी ही पार्टी को कई मुद्दों पर घेरते हुए नजर आते रहते हैं। सियासी गलियारों में ऐसी भी चर्चा है कि, वरूण भाजपा को छोड़ कांग्रेस पार्टी का दामन थाम सकते हैं।
फैसला लेंगे खड़गे?
वरूण गांधी का कांग्रेस में शामिल होने की संभावना साल 2024 के आम चुनाव से पहले मानी जा रही है। हालांकि, इस बात पर अभी कहना जल्दबाजी होगा क्योंकि कुछ ही दिनों पहले राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान वरूण गांधी पर अपनी प्रतिक्रिया दी थी। वरूण के कांग्रेस में शामिल होने पर राहुल ने कहा था कि, वह मेरा भाई है लेकिन उसकी विचारधारा से मुझे दिक्कत है। इस पर पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे फैसला लेंगे।
वरूण गांधी के आने से मजबूत हो सकती है कांग्रेस
वरूण गांधी अगर कांग्रेस में आते हैं तो पार्टी को फायदा पहुंचा सकते हैं। खासतौर पर यूपी में उनकी अच्छी खासी पकड़ मानी जाती है। बता दें कि, यूपी के तराई क्षेत्र में कांग्रेस के पास जितिन प्रसाद और आरपीएन सिंह जैसे कद्दावर नेता मौजूद थे। लेकिन पार्टी से अंसतोष जताते हुए साल 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव के ठीक पहले दोनों कांग्रेसी नेता बीजेपी में शामिल हो गए थे। यूपी के तराई क्षेत्र में लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, सुल्तानपुर, कुशीनगर जैसे जिले आते हैं। वरूण गांधी पीलीभीत और सुल्तानपुर से सांसद रह चुके हैं। जिनकी पकड़ यहां अच्छी खासी है, अगर लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में ज्वाइन होते हैं तो पार्टी को फायदा पहुंचा सकते हैं। इसके अलावा वरूण की मां मेनका एक पंजाबी परिवार से आती हैं। जबकि इस क्षेत्र में ज्यादा पंजाबी लोग ही रहते हैं। जो पार्टी के लिए रामबाण साबित हो सकते हैं।
महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं वरूण
वरूण गांधी को एक तेजतर्रार नेता माना जाता है। वह अपने भाषणों के जरिए युवाओं में काफी लोकप्रिय हैं। सोशल मीडिया पर अपने ही सरकार के खिलाफ आवाज उठाते रहते हैं। वरूण को हमेशा किसानों और युवाओं के लिए बात करते हुए सुना गया है। कांग्रेस पार्टी में वह आते हैं तो मुद्दे भुनाने में काफी अहम रोल अदा कर सकते हैं। इसके अलावा भाजपा की कमजोर नीतियों को पहचानते हुए कांग्रेस को मजबूत करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
जल्दबाजी नहीं करना चाहती है कांग्रेस
दरअसल, वरूण गांधी को लेकर कांग्रेस पार्टी बड़ी ही फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। वरूण गांधी की छवि एक हिंदुवादी नेता की रही है। साल 2009 में मुसलमानों के खिलाफ विवादित टिप्पणी की वजह से उन्हें जेल जाना पड़ा था। यूपी की तत्कालिन मायावती सरकार ने उन पर एनएसए के तहत कार्रवाई किया था। जिसके बाद से ही वरूण भाजपा के नए हिंदुत्व के चेहरे बन गए थे। जिसका ख्याल रखते हुए कांग्रेस पार्टी अपना नुकसान नहीं करना चाहती है। अगर कांग्रेस में वरूण गांधी को एंट्री मिल जाती है तो वो पार्टी को नुकसान तो पहुंचा ही सकते हैं। साथ ही पार्टी में असमन्वय की स्थिति भी पैदा कर सकते हैं।
राहुल-प्रियंका पर पड़ेगा असर
भाजपा छोड़ कांग्रेस में वरूण शामिल हो जाते हैं तो सीधा असर पार्टी हाईकमान पर भी पड़ सकता है। अगर वरूण कांग्रेस में आते हैं तो राहुल और प्रियंका के राजनीतिक करियर पर भी असर पड़ सकता है। कांग्रेस का जो कोर वोट बैंक माना जाता है वो गांधी परिवार कभी नहीं चाहेगा कि उनका वोटर वरूण और मेनका के पास जाए। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, ऐसा संभव है कि जब वरूण गांधी कांग्रेस में शामिल हों और कुछ साल बीत जाने के बाद कांग्रेस पार्टी पर अपना हक जताने लगें की पार्टी में मेरी भी हिस्सेदारी है। इसी वजह से राहुल गांधी अभी फिलहाल कुछ कहने से बच रहे हैं।
स्थानीय नेता आएंगे जद में
वरूण गांधी एक राष्ट्रीय नेता हैं। अगर कांग्रेस में शामिल होते हैं तो पार्टी में उनके कद के हिसाब से पद देना होगा। ऐसे में कांग्रेस के स्थानीय नेताओं के लिए भी मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। कांग्रेस ने हाल ही में तराई के अलग-अलग जिलों को जोन में बांटकर प्रांतीय अध्यक्ष नियुक्त किया है। ऐसे में वरूण बीजेपी छोड़ कांग्रेस में जाते हैं तो स्थानीय नेताओं को उनके नीचे काम करना पड़ेगा। जो कांग्रेसी नेताओं को नागंवार होगा, क्योंकि इन नेताओं को वरूण के निर्देशों का पालन करना होगा।
वरूण गांधी की सियासी पारी
वरूण गांधी की राजनीतीक करियर की बात करें तो उन्होंने अपनी शुरूआत भाजपा से ही की थी। कांग्रेस छोड़ मेनका गांधी ने साल 2004 में वरूण के साथ बीजेपी में शामिल हो गई थी। वरूण उस समय महज 24 वर्ष के थे।
- बीजेपी में शामिल होने के बाद साल 2006 में पार्टी ने उन्हें स्टार प्रचारक बनाया था।
- साल 2009 में भाजपा ने यूपी की पीलीभीत लोकसभा सीट से टिकट दिया। जहां पर उन्होंने प्रचार के दौरान मुसलमानों के खिलाफ विवादित बयान दिया था। जिसके बाद यूपी के तत्कालिन मुख्यमंत्री रहीं मयावती के निर्देश पर उन पर रासुका लगाया गया था। जहां वरूण गांधी को जेल भी जाना पड़ा था। लेकिन इस चुनाव में उन्होंने भारी मतों से जीत दर्ज की थी।
- साल 2012 में बीजेपी ने वरूण गांधी को राष्ट्रीय महासचिव बनाया। जिसके बाद से ही पार्टी में उनका कद बढ़ता गया। इसके अलावा उसी साल वरूण को पश्चिम बंगाल का प्रभारी भी बनाया गया और 42 लोकसभा सीटों की कार्यभार संभालने का उन्हें मौका मिला। वरूण गांधी को साल 2014 के लोकसभा चुनाव में सुल्तानपुर सीट से टिकट मिला और चुनाव जीतने में वह सफल रहे थे।
- वहीं साल 2014 के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद भी भाजपा ने उन्हें राष्ट्रीय महासचिव के पद से हटा दिया। इसके साथ ही वरूण गांधी को साल 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव के स्टार प्रचारक की लिस्ट से दूर कर दिया गया।
- साल 2019 में वरूण गांधी भाजपा की टिकट से तीसरी बार सांसद बने। लेकिन उन्हें मोदी 2.0 की कैबिनेट में शामिल नहीं किया गया। इसके अलावा पार्टी ने मां मेनका को भी कोई खास तरजीह नहीं दी।
- बीते साल भाजपा ने वरूण गांधी को राष्ट्रीय कार्यकारिणी से भी बाहर का रास्ता दिखा दिया था। राजनीति विश्लेषकों के मुताबिक, साल 2014 से ही बीजेपी ने वरूण को धीरे-धीरे पार्टी के अहम पदों से हटाना शुरू कर दिया था। वहीं आज भाजपा के खिलाफ वरूण गांधी मुखर होकर बोल रहे हैं।