आरपीएन सिंह को शामिल करना बीजेपी के लिए इसलिए था जरूरी, अखिलेश यादव की रणनीति का दिया करारा जवाब!
'सिंह' यानि पूर्वांचल का शेर आरपीएन सिंह को शामिल करना बीजेपी के लिए इसलिए था जरूरी, अखिलेश यादव की रणनीति का दिया करारा जवाब!
डिजिटल डेस्क, लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले एक वक्त सियासत में उठापटक का दौर जारी है। कांग्रेस को आज बड़ा झटका देते हुए बीजेपी ने कांग्रेस के दिग्गज नेता पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री आरपीएन सिंह को पार्टी में शामिल किया है। आरपीएन सिंह यानी रतनजीत प्रताप नारायण सिंह ने भाजपा मुख्यालय में केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की मौजूदगी में बीजेपी की सदस्यता ली। गौरतलब है कि आरपीएन एक लंबा सियासी सफर तय कर चुके हैं। यूपीए सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री रहे और एक समय था जब कुशीनगर का पडरौना विधानसभा आरपीएन का गढ़ कहा जाता था।
2009 में लोकसभा सांसद चुने जाने तक वह यहां से तीन बार विधायक रहे हैं। 2007 में भी उन्होंने यह सीट कांग्रेस के लिए जीती थी। 2009 में आरपीएन के सांसद बनने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य की इस सीट पर एंट्री हुई और उपचुनाव वह जीत गए। हाल ही में स्वामी प्रसाद मौर्या ने बीजेपी को छोड़कर सपा ज्वाइन की थी। जिसके बाद से बीजेपी के ऊपर पिछड़ों की अनदेखी करने का आरोप लगा था। कांग्रेस के कुनबे में सेंध लगाकर पूर्वांचल की सियासत में भाजपा ने जातीय गणित साधने का प्रयास किया है।
स्वामी प्रसाद मौर्या को सीधे चुनौती देंगे आरपीएन सिंह
पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्या, दारा सिंह चौहान व धर्म सिंह सैनी ने बीजेपी छोड़कर सपा का दामन थामा था और बीजेपी पर पिछड़ों की अनदेखी करने का गंभीर आरोप लगाया था। उसी समय ये कयास लगाया जा रहा था कि बीजेपी चुनाव नजदीक आते ही बड़ा खेला करेगी। मंगलवार को कुछ ऐसा ही देखने को मिला। बीजेपी ने पूर्वांचल के कांग्रेस के दिग्गज नेता को आज पार्टी में शामिल कर पिछड़ी जाति के वोट बैंक में सेंध लगाई है। कयास यही लगाए जा रहे हैं कि बीजेपी स्वामी प्रसाद मौर्या के सामने पडरौना विधानसभा सीट से आरपीएन सिंह को उतारेगी।
जिसको लेकर पूर्वांचल की राजनीति में हलचल मच गई है। गौरतलब है कि पडरौना विधानसभा में 3.48 लाख मतदाता हैं। सबसे ज्यादा करीब 84 हजार मुस्लिम वोटर्स हैं। इसके बाद करीब 76 हजार एससी, 52 हजार ब्राह्मण, 48 हजार यादव वोटर्स हैं। अब आरपीएन सिंह की बिरादरी यानी सैंथवार वोटर्स की बात करें तो उनकी संख्या 46 हजार, जबकि स्वामी प्रसाद मौर्य की कुशवाहा जाति के वोटर लगभग 44 हजार हैं। मतलब मुकाबला दोनों के बीच काफी टक्कर का है।
जानें पडरौना का इतिहास?
गौरतलब है कि 2017 के चुनाव में मोदी का जादू और 1991 में राम लहर में बीजेपी पडरौना सीट से जीत हासिल की थी। हालांकि साल 1993 में इसी सीट से समाजवादी पार्टी के बालेश्वर यादव ने जीत हासिल की थी। इस सीट पर साल 1996 कांग्रेस के दिग्गज नेता आरपीएन सिंह का जलवा कायम था। 2009 में आरपीएन सिंह इसी विधानसभा सीट से विधायक चुने गए थे। आरपीएन के लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद से कांग्रेस ने यह सीट नहीं जीती। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के स्वामी प्रसाद मौर्य को 93649 वोट मिले थे। उन्होंने बसपा के जावेद इकबाल को 40552 वोट से हराया था। 41162 वोट लेकर कांग्रेस की शिवकुमारी देवी तीसरे नंबर पर थीं।
बीजेपी का मिशन पूर्वांचल
बीजेपी को पता है कि अगर पूर्वांचल की 33 फीसदी सीटों पर कब्जा जमा लिया जाता है तो सत्ता में वापसी के लिए कोई ताकत नहीं रोक सकती है। गौरतलब है कि यूपी में 33 फीसदी सीटें इसी इलाके से आती हैं। यूपी के 28 जिले पूर्वांचल में आते हैं, जिनमें कुल 164 विधानसभा सीटें हैं। अगर 2017 विधानसभा चुनाव की बात करें तो पूर्वांचल की 164 में से बीजेपी ने 115 सीट पर कब्जा जमाया था, जबकि सपा ने 17, बसपा ने 14, कांग्रेस को 2 और अन्य को 16 सीटें मिली थी।
हालांकि तब वह दौर दूसरा था लेकिन अबकी बार समाजवादी पार्टी जातीय समीकरण को साधते हुए छोटे दलों के साथ गठबंधन कर बीजेपी की टेंशन बढ़ा रही है। सपा सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर से गठबंधन कर भी अबकी बार यूपी चुनाव लड़ रही है । कहा जाता है कि पूर्वांचल में राजभर की पिछड़ी जातियों में अच्छी पकड़ है।
पूर्वांचल में पिछड़ी जाति के चेहरा माने जाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्या ने हाल ही में बीजेपी का दामन छोड़ साइकिल की सवारी कर ली। जिसको लेकर बीजेपी डैमेज कंट्रोल में जुटी थी और मंगलवार को आरपीएन सिंह के रूप में पूर्वांचल में कांग्रेस का एक मजबूत किला ढहा दिया। अब कयास लगाए जा रहे हैं कि बीजेपी उन्हें कुशीनगर की पडरौना विधानसभा सीट से टिकट दे सकती है।
आरपीएन सिंह सैंथवार-कुर्मी जाती से आते हैं। इस पिछड़ी जाति का वोटबैंक पूर्वांचल में बहुत तगड़ा माना जाता है। खासतौर से कुशीनगर, गोरखपुर और देवरिया में ये अच्छी तादाद में हैं। इन इलाकों पर आरपीएन सिंह का भी अच्छी खासी पकड़ मानी जाती है। बीजेपी ने कांग्रेस व अखिलेश की चुनावी रणनीतियों पर पानी फेर दिया और पूर्वांचल की सियासत में गरमी बढ़ा दी है।