इस फॉर्मूले के दम पर पीएम बनने का ख्वाब देख रहीं ममता बनर्जी, जानिए क्यों लिया आमचुनाव में अकेले लड़ने का फैसला
लोकसभा चुनाव 2024 इस फॉर्मूले के दम पर पीएम बनने का ख्वाब देख रहीं ममता बनर्जी, जानिए क्यों लिया आमचुनाव में अकेले लड़ने का फैसला
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में अब लगभग 1 साल का समय बचा है। ऐसे में सत्ताधारी दल बीजेपी समेत सभी विपक्षी दल तैयारियों में जुट गए हैं। चुनाव में जहां बीजेपी लगातार तीसरी बार सरकार बनाने में लगी हुई है वहीं, बीजेपी को ऐसा करने से रोकने के लिए तमाम विपक्षी दल अपने पूरे दम के साथ लगे हुए हैं। इस बीच टीएमसी की सुप्रीमो और बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने बड़ा ऐलान करते हुए कहा है कि उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव बिना किसी सहयोग के लड़ेगी। उनका ये बयान उस समय आया है जब हाल ही में बंगाल विधानसभा उपचुनाव और पूर्वोत्तर राज्यों के चुनाव में उनकी पार्टी ने बेहद निराशाजनक प्रदर्शन किया है। ऐसे में उनके इस ऐलान से कई सवाल पैदा होते हैं। जैसे क्या सच में ममता पीएम बन सकती हैं? क्या उनको ऐसा लगता है कि उनके अलावा विपक्ष के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं है जो मोदी को टक्कर दे सके या फिर उनके पास एक फॉर्मूला या ऱणनीति है जिसके जरिए वो पीएम की कुर्सी पर काबिज हो सकती हैं?
ये हो सकती हैं दावे की वजह
पिछले कुछ समय से ममता बनर्जी ने बार-बार दिल्ली का दौरा किया है, जिससे इस बात को बल मिलता है कि उन्होंने 2024 में होने वाले आमचुनाव की तैयारियां पहले से शुरू कर दी हैं। हाल ही में ममता ने इस ओर इशारा किया गया था, दरअसल एक चुनावी रैली में ममता ने कहा था कि ‘मैं अपने एक पैर पर खड़ी हो कर बंगाल जीतूंगी और भविष्य में मैं अपने दोनों पैरों पर खड़ी होकर दिल्ली में जीत हासिल करूंगी।’
इसके अलावा पिछले साल जुलाई में शहीद दिवस के मौके पर उनके बंगाली की बजाय हिंदी और अंग्रेजी में संबोधन देना भी इस ओर इशारा करता है वह हिंदी बेल्ट की जनता को अपनी ओर आकर्षित करना चाहती हैं। बता दें कि टीएमसी पिछले 28 सालों से 21 जुलाई को एक प्रदर्शन दौरान मारे गए अपने कार्यकर्ताओं की याद में शहीद दिवस हर साल मनाया जाता है। बता दें कि इतने सालों से इस मौके पर ममता ने केवल बंगाली में संबोधन दिया करती थीं लेकिन इस बार उन्होंने हिंदी और अंग्रेजी में दिया।
ममता ने एक बयान ये भी दिया था कि 'मैं नहीं जानती 2024 में क्या होगा? लेकिन इसके लिए तैयारियां करनी होंगी। समय नष्ट करने से देरी के सिवाए और कोई फायदा नहीं होगा। बीजेपी के खिलाफ तमाम दलों को मिल कर एक मोर्चा बनाना होगा।'
हालांकि ऐसी ही एक कोशिश टीडीपी के सुप्रीमो चंद्रबाबू नायडू ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान की थी हालांकि उनकी यह कोशिश नाकामयाब रही थी। शायद इस वजह से ममता ने 2024 के आमचुनावों में विपक्षी दलों के साथ मोर्चा बनाने का प्लान कैंसिल कर दिया हो।
कितनी मजबूत है टीएमसी?
25 साल पहले बनी टीएमसी लोकसभा में चौथी व राज्यसभा में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है। पार्टी का उद्देश्य बंगाल से बाहर निकलकर राष्ट्रीय पटल पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराना है। बता दें कि लोकसभा में बंगाल के 42 सांसदों में से 22 टीएमसी के हैं।
अपने गठन के 25 साल में से 13 साल बंगाल की सत्ता पर काबिज रहने वाली टीएमसी को 2019 के लोकसभा चुनाव में भारी झटका लगा। बीजेपी ने राज्य में लोकसभा के दौरान दमदार प्रदर्शन किया। 2014 में 34 सीटें जीतने वाली टीमएमसी केवल 22 सीटों पर सिमट कर रह गई। हालांकि पार्टी ने 2021 में हुए विधानसभा चुनाव में जोरदार वापसी करते हुए बीजेपी को बुरी तरह से हराया और 3/4 बहुमत के साथ दोबारा सरकार बनाई।
वहीं बात करें अन्य राज्यों की तो हाल ही में हुए पूर्वोत्तर राज्यों के चुनाव में पार्टी कुछ खास नहीं कर पाई। हालांकि पार्टी ने बंगाल चुनाव में जीत के बाद इन राज्यों में चुनाव लड़ने के लिए रणनीति बनाई थी, लेकिन वह सफल नहीं हो पाई। त्रिपुरा जहां करीब 60 फीसदी बंगाली भाषी रहते हैं वहां पार्टी कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाई। वहीं मेघालय में पार्टी का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा। इसके अलावा पिछले साल गोवा विधानसभा चुनाव में काफी जोरशोर से अभियान चलाने के बाद भी पार्टी अपना खाता खोलने में असफल रही।
इन कारणों से टूट सकता है पीएम बनने का सपना
सबसे बड़ा कारण तो ममता की पार्टी का बंगाल और पूर्वोत्तर के एक दो राज्यों को छोड़कर अन्य राज्यों में उपस्थित न होना है। पार्टी के पास अन्य दूसरे राज्यों में न ही अपना कैडर है, न ही नेता है और न ही मतदाता हैं। यह बात सच है कि बंगाल की जनता के मन में ममता के लिए एक खास जगह है। उन्होंने ममता को शुरूआत से ही संघर्ष करते देखा है। जब भी उनकी कोई रैली या प्रोग्राम का आयोजन होता है तो बड़ी संख्या में बुजुर्ग, महिलाएं और युवा उनको सुनने आते हैं। लेकिन अन्य राज्यों में उनको पसंद करने वालों की संख्या बेहद कम है।
इसके अलावा उनकी तरह अन्य क्षेत्रीय दल भी यह महत्वकांक्षा रखते हैं उनके नेता पीएम बने। ऐसे में यदि बीजेपी बहुमत हासिल न कर पाई तो अन्य दल ममता के मुकाबले अपने नेता को पीएम बनते देखना पसंद करेंगे।
वहीं उनकी पीएम बनने की राह में तेलंगाना के सीएम चंद्रशेखर राव भी अड़ंगा बन सकते हैं। जिन्होंने हाल ही में एक राष्ट्रीय पार्टी बनाई है जो गैर-कांग्रेस और बीजेपी मोर्चे के रूप में आगे बढ़ने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। अगर इनकी पार्टी को अन्य क्षेत्रीय दलों का समर्थन मिला तो वह ममता को कड़ी टक्कर दे सकते हैं, जिससे ममता के पीएम का सपना टूट सकता है।
चुनाव विश्लेषक बताते हैं कि ममता ऐसा घोषणाएं गुस्से में आकर करती हैं। उनके गुस्से में लिए गए फैसले का उदाहरण बंगाल चुनाव में नंदीग्राम सीट से चुनाव लड़ने का था। इस चुनाव में ममता को इस सीट से शुभेंदू अधिकारी के खिलाफ हार का सामना करना पड़ा था। जिससे उनकी काफी किरकिरी हुई थी।
वहीं बंगाल में कांग्रेस विधायकों की खरीद-फरोख्त करने के चलते कांग्रेस से उनके रिश्ते बिगड़ गए। इसके साथ ही पार्टी की राष्ट्रीय राजनीति में अपनी मजबूत स्थिति दर्ज कराने की महत्वकांक्षा के चलते भी कई दल उनसे दूरी बनाते नजर आ रहे हैं।
इस फॉर्मूले को ध्यान रख टीएमसी ने किया ऐलान!
दरअसल टीएमसी को आश है कि जिस दल 1996 के लोकसभा चुनाव में जिस तरह एचडी देवगौड़ा को आम सहमति के जरिए पीएम पद का उम्मीदवार बनाया गया था उसी तरह ममता को भी इसी तरह के सहयोग मिल सकता है। टीमएससी की सोच है कि यदि 1996 में 46 सीटें जीतकर देवगौड़ा पीएम बन सकते हैं तो राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 40 सीटें पर जीत हासिल कर ममता भी दावा कर सकती हैं। हालांकि इसके साथ ये भी जरूरी है कि बीजेपी या कांग्रेस नीत गठबंधन बहुमत से काफी दूर रहें।