ओबीसी आरक्षण के साथ निकाय व पंचायत चुनाव कराने की मंजूरी पाने में कैसे कामयाब हुआ मध्यप्रदेश और क्यों महाराष्ट्र के हाथ लगी नाकामी?

मध्यप्रदेश v/s महाराष्ट्र ओबीसी आरक्षण के साथ निकाय व पंचायत चुनाव कराने की मंजूरी पाने में कैसे कामयाब हुआ मध्यप्रदेश और क्यों महाराष्ट्र के हाथ लगी नाकामी?

Bhaskar Hindi
Update: 2022-05-19 10:08 GMT
ओबीसी आरक्षण के साथ निकाय व पंचायत चुनाव कराने की मंजूरी पाने में कैसे कामयाब हुआ मध्यप्रदेश और क्यों महाराष्ट्र के हाथ लगी नाकामी?

डिजिटल डेस्क, भोपाल। सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश के निकाय और पंचायत चुनाव ओबीसी आरक्षण के साथ कराने की मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही एक नए विवाद ने जन्म ले लिया है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले ने सवाल उठाते हुए कहा, ‘ऐसा क्या चमत्कार हो गया जो कोर्ट ने चार दिन में ही अपना फैसला बदलते हुए मध्यप्रदेश को ओबीसी आरक्षण के साथ स्थानीय चुनाव कराने का आदेश दे दिया।‘ पटोले ने कहा कि, सुप्रीम कोर्ट ने एमपी सरकार को ओबीसी आरक्षण के साथ चुनाव कराने की अनुमति दे दी, लेकिन ऐसा लगता है जैसे महाराष्ट्र के मामले में कोर्ट ने अलग रुख अपनाया है, क्योंकि पिछली सुनवाई में मध्यप्रदेश को जो निर्देश वही महाराष्ट्र को दिए थे।

कहां हुई चूक?

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार महाराष्ट्र सरकार पिछड़े वर्ग से जुड़े आंकड़े (ट्रिपल टेस्ट रिपोर्ट) पेश नहीं कर पाई थी। जिसके कारण कोर्ट ने राज्य के स्थानीय चुनाव बिना ओबीसी आरक्षण के कराने का फैसला सुनाया था।

आइए जानते हैं उन वजहों को जिनके कारण मध्यप्रदेश को ओबीसी आरक्षण के साथ स्थानीय चुनाव कराने की अनुमति मिल गई, लेकिन महाराष्ट्र को नहीं मिली।

ट्रिपल टेस्ट

मध्यप्रदेश सरकार ने ट्रिपल टेस्ट के लिए पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग का गठन किया। आयोग ने ओबीसी मतदाताओं को गणना की। गणना ओबीसी मतदाताओं की संख्या 48% पाई गई। वहीं बात करें महाराष्ट्र  सरकार की तो उन्होंने ट्रिपल टेस्ट के लिए कोई कदम नही उठाए।

आंकड़ों की प्रमाणिकता

ओबीसी की संख्या 48%  पाए जाने के कारण मध्यप्रदेश सरकार ने कोर्ट में ओबीसी के लिए चुनाव में 35% आरक्षण की मांग की जिससे, सरकार का पक्ष कोर्ट में मजबूत हुआ। वहीं महाराष्ट्र सरकार ने ओबीसी मतदाताओं से जुड़े आयोग के आंकड़े कोर्ट में प्रस्तुत किए, उनकी प्रमाणिकता संदिग्ध रही।

संशोधन याचिका

मध्यप्रदेश मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने 10 मई को आए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद अपनी विदेश यात्रा स्थगित की और अपने मंत्रीमंडल एवं कानून विशेषज्ञों से चर्चा करके कोर्ट में संशोधन याचिका दायर की। दूसरी तरफ महाराष्ट्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में संशोधन याचिका भी दायर न कर सकी थी।

डाटा एकत्रित करने में असमानता

ओबीसी मतदाताओं से जुड़े आंकड़े एकत्रित करने के लिए एक तरफ जहां एमपी गवर्मेंट ने 82 संगठनों से सुझाव व ज्ञापन लिए वहीं दूसरी तरफ महाराष्ट्र सरकार ने की अंतरिम रिपोर्ट ही डाटा की कमी की वजह से खारिज हो गई।

इन अंतरों से साफ है कि मध्यप्रदेश सरकार की तुलना में महाराष्ट्र सरकार ने ओबीसी मतदाताओं से जुड़ी जरुरी जानकारियां और आंकड़े नहीं जुटाए, जिस वजह से उन्हें सुप्रीम कोर्ट से ओबीसी आरक्षण के साथ चुनाव कराने की अनुमति नहीं मिली।     

   

       

       

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