गुजरात कांग्रेस को आक्रामक शीर्ष नेतृत्व की जरूरत
अहमदाबाद गुजरात कांग्रेस को आक्रामक शीर्ष नेतृत्व की जरूरत
डिजिटल डेस्क, अहमदाबाद। पिछले गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने अब तक का सबसे खराब चुनावी प्रदर्शन किया है। इसके बाद कांग्रेस नेतृत्व कारणों की पहचान करके और उपचारात्मक उपायों पर काम करके पार्टी को पुनर्जीवित करने की पूरी कोशिश कर रहा है।
पार्टी के नेताओं का कहना है कि त्रुटिहीन (इम्पेकेबल) नेतृत्व और आक्रामक रणनीति के साथ केवल युवा नए चेहरे ही पार्टी को पूरी तरह से पतन से बचा सकते हैं। हार का केवल प्रतीकात्मक विश्लेषण करने से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा। सूरत कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष संजय पटवा ने कहा कि सही रणनीति के साथ चुनावी दौड़ में शामिल नहीं होना, कमजोर नेतृत्व और जातीय समीकरण में असंतुलन आपदा के लिए एक आदर्श नुस्खा साबित हुआ।
उन्होंने तर्क किया कि यह सही समय है कि पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने राज्य इकाई के लिए एक नया चेहरा पेश किया, उसे रणनीतिक रूप से लॉन्च किया और दिल्ली से बिना किसी नियंत्रण के शो चलाने के लिए उसे खुली छूट दी। संजय पटवा ने आक्रामक रणनीति और नेतृत्व की जरूरत को रेखांकित करते हुए कहा कि अनंत पटेल, पुंजा वंश या जिग्नेश मेवाणी या मनहर पटेल जैसे नेताओं को अब लड़ाई की भावना के साथ केंद्रीय मंच दिया जाना चाहिए।
उनका समर्थन करते हुए पार्टी के राज्य उपाध्यक्ष हेमांग वासवदा ने कहा कि समय की मांग है कि लोगों के साथ अपना संबंध फिर से स्थापित किया जाए। हमें और जन आंदोलनों को संगठित करना चाहिए और उन्हें व्यवस्थित रूप से चलाना चाहिए। हेमांग वासवदा ने आगे कहा कि इनके माध्यम से कांग्रेस को जनता की आवाज के रूप में उभर कर लोगों के दिलों में जगह बनानी है। अतीत में, पार्टी ने कुछ अवसर गंवाए थे, जिन्हें वह अब और अधिक बर्दाश्त नहीं कर सकती।
वडोदरा के वरिष्ठ नेता नरेंद्र कुमार रावत ने दावा किया कि प्रतीकात्मक विरोध आंदोलनों का कोई परिणाम नहीं निकलेगा, क्योंकि प्रभाव के लिए आंदोलनों और विरोधों को एक साथ कई दिनों और महीनों तक चलाने की जरूरत होती है। हमें सत्ताधारी पार्टी को बैकफुट पर लाने की जरूरत है। जिस दिन ऐसा होता है, कांग्रेस पहला मुकाम हासिल कर लेगी।
जन आंदोलन के तहत पार्टी को आक्रामक और सोशल मीडिया पर भी सक्रिय होना चाहिए। सत्तारूढ़ पार्टी के अभियान का मुकाबला करना सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है, जिसके लिए पार्टी को एक आक्रामक जवाबी अभियान शुरू करने के लिए एक विशाल और ठोस सेना की जरूरत है।
संजय पटवा ने सिफारिश की कि साथ ही प्रोटोकॉल पॉलिसी में भी बदलाव जरूरी है। अब वरिष्ठ नेताओं को मंच पर बैठने की बजाय कार्यकर्ताओं के बीच बैठना सीखना होगा। पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं और राज्य पर्यवेक्षकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उन्हें सही प्रतिक्रिया मिले और समय पर निर्णय लें।
हालांकि, नेताओं को सामाजिक इंजीनियरिंग अवधारणा पर विभाजित किया गया है। जबकि एक वर्ग ओबीसी, एससी/एसटी/मुसलमानों के अपने कोर बैंक के साथ खुद को फिर से स्थापित करने के लिए बैटिंग कर रहा है, दूसरे को लगता है कि यह सही समय है जब पार्टी ने उच्च जाति को जीतने का प्रयास किया और राज्य इकाई की बागडोर सौंप दी।
(आईएएनएस)
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