नए चेहरे पर दांव लगाकर बाजी पलटने के प्रयास में लगी बसपा
यूपी विधानसभा चुनाव 2022 नए चेहरे पर दांव लगाकर बाजी पलटने के प्रयास में लगी बसपा
डिजिटल डेस्क, लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सत्ता पाने लिए नए समीकरण के हिसाब से मैदान में चौसर सजा रही हैं। बसपा इस बार अधिकतर सीटों पर नए को मौका दे रही है। पार्टी में पहली पंक्ति के नेता बहुत पहले नाता तोड़ चुके है। कुछ लोग सपा में चले गये। इसी कारण नए चेहरे पर दांव खेल बाजी पलटने में बसपा लगी हुई है। बसपा मुखिया इस बार की सूची चरण बद्ध तरीके से उम्मींदवार घोषित कर रही है।
वह कोई भी रिस्क लेने के मूड में नहीं है। जातीय व क्षेत्रीय समीकरण के आधार पर उन्हीं पर दांव लगाया जा रहा है, जिनकी अपने क्षेत्र में स्थिति बेहतर है। यही कारण है कि बसपा की जो भी सूची आ रही है उनमें से अधिकतर सीटों से पुराने नेताओं के नाम गायब है। बसपा ने वर्ष 2017 के चुनाव में 118 सीटों पर बेहतर प्रदर्शन करते हुए नंबर दो पर रही थी, लेकिन इस बार वह प्रत्याशी इन सूची में नजर नहीं आ रहे है।
बसपा के एक बड़े नेता ने बताया कि पार्टी छोड़कर जाने वालों को उनके घर पर शिकस्त देने की रणनीति है। दूसरी पार्टियों से लड़ने वाले ऐसे उम्मीदवारों के खिलाफ उसी जाति के उम्मीदवार को मैदान में उतराने पर सहमति बनी है। बसपा अपने व्यापक प्रचार अभियान में बसपा छोड़ने वालों को अपनी पार्टी का न होने का भी बता रही है। उनके खिलाफ और तीखे रूप में प्रचार किया जा रहा है। अभी तक पूरब से लेकर पश्चिम तक जितने भी प्रत्याशी उतारे गये हैं। वह अपने क्षेत्र के जीताऊ और टिकाउ है। इसीलिए मायावती ने दांव खेला है।
वर्ष 2007 के चुनाव में सोशल इंजीनियरिंग के बलबूते सरकार बनाने वाली बसपा इस चुनाव के बाद से ही लगातार हाशिये की तरफ बढ़ रही है। अब इसके पीछे कारण चाहे पार्टी छोड़ कर जाने वाले नेताओं की लंबी फेहरिस्त हो या फिर आम जनमानस के बीच व्याप्त भ्रांतियां, इसके बारे में पार्टी ही बखूबी बता सकती है। लेकिन चुनाव से पहले शीर्षस्थ स्तर पर हुई समीक्षा बैठकों की झलक टिकट बंटवारे को लेकर साफ दिखाई देती है। समीक्षा के दौरान भितरघात से बचने के लिए बसपा सुप्रीमो मायावती की तरफ से नए चेहरों को मैदान में उतारा गया है।
वर्ष 2012 के चुनाव में बसपा के खाते में 39 सीटें आई थी। इनमे 2017 के चुनाव में पार्टी ने 25 सिटिंग एमएलए को मैदान में उतारा था। 2017 के चुनाव में कुल 2 ही सीटे हीं पार्टी के खाते में आई थी। इनमे दो उम्मीदवार ऐसे हैं जो पहले 2012 फिर 2017 और अब 2022 यानी तीन चुनावों से लगातार बसपा के टिकट पर मैदान में हैं।
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक प्रसून पांडेय कहते हैं कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आरएलडी नेता जयंत चौधरी, सुभासपा नेता ओमप्रकाश राजभर समेत कई छोटे दलों से गठबंधन कर भाजपा के लिए व्यूह रचना तैयार की हो। कांग्रेस ने महिलाओं को मैदान में उतार कर जंेडर राजनीतिक का पाशा फेंका है। भाजपा ने हिन्दुत्व ब्रांड योगी को आगे बढ़ाकर अपने ऐजेंडे को धार दे रहे है। लेकिन सूबे की करीब 22 फीसदी दलित आबादी को कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता है।
पश्चिमी यूपी में बसपा मुस्लिम प्रत्याशियों पर दांव लगाने से नहीं चूकी है। क्योंकि, अगर आरएलडी और सपा गठबंधन से मुस्लिम समुदाय छिटकता है, तो उसके पास बसपा एक विकल्प मौजूद रहेगा। अभी तक जो समीकरण बन रहे हैं। उससे कहा जा सकता है पश्चिमी यूपी में मायावती एक बड़े गेमचंेजर की भूमिका अदा कर सकती है।
(आईएएनएस)