विधानसभा चुनाव से पहले गहलोत सरकार के सामने आकर खड़ी हुई मुश्किलें, जिन नेताओं का जताया था अभार क्या अब उसे मौका देगी कांग्रेस सरकार?
राजस्थान में कांग्रेस की मुश्किलें विधानसभा चुनाव से पहले गहलोत सरकार के सामने आकर खड़ी हुई मुश्किलें, जिन नेताओं का जताया था अभार क्या अब उसे मौका देगी कांग्रेस सरकार?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस नेता सचिन पायलट और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बीच सियासी तकरार कम होने का नाम नहीं ले रही है। राज्य में पार्टी के सभी नेता दो खेमे में बटे हुए हैं। इस बीच कांग्रेस के सामने एक और सियासी संकट खड़ा हो गया है। यह संकट प्रदेश में 13 निर्दलीय विधायक और 6 बसपा विधायक को लेकर है। दरअसल, ढाई साल पहले जब कांग्रेस सरकार संकट में थी, तब ये सभी विधायकों ने गहलोत सरकार का साथ दिया था और राज्य में सत्ताधारी सरकार को गिरने से बचाया था। ये सभी बसपा और निर्दलीय विधायकों में अधिकतर कांग्रेस पृष्ठभूमि के हैं। ऐसे में संभव है कि आगामी विधानसभा चुनाव में ये सभी नेता पार्टी से टिकट की मांग करेंगे। लेकिन कांग्रेस में टकराव स्थिति उस समय पैदा हो सकती है जब स्थानीय नेता भी टिकट की मांग करेंगे।
गौरतलब है कि, 13 निर्दलीय विधायक और 6 बसपा विधायक ने 19 विधानसभा सीट से चुनाव जीता था। इन सभी 19 सीटों पर साल 2018 के चुनाव में कांग्रेस की ओर से प्रत्याशी रहे नेताओं ने प्रदेश अध्यक्ष सुखजिन्दर सिंह रंधावा के सामने अपनी नाराजगी जताई थी। इन नेताओं का कहना है कि हमारी बात राज्य सरकार नहीं सुन रही हैं और कांग्रेस को हराने वाले विधायकों को सरकार में ज्यादा अहमियत दी जा रही है। ये सभी 19 विधायक सरकार में अपनी मनमानी कर रहे हैं और पार्टी ने भी उन्हें खुली छूट दे रखी है।
कांग्रेस की मुश्किलें
साल 2020 के जुलाई माह में जब गहलोत सरकार संकट के दौर से गुजर रही थी तब अगस्त 2020 में इन सभी नेताओं की मदद से स्थिति ठीक हो पाई और राज्य में कांग्रेस की सरकार बच गई। जिसके बाद अशोक गहलोत ने बसपा से आए 6 विधायकों और 13 निर्दलीय विधायकों का आभार व्यक्त करते हुए कहा था, "आप लोगों की सहयोग की वजह से हमारी सरकार बच पाई है। मैं आपका ये अहसान कभी नहीं भूला पाऊंगा। मैं आपके अभिभावक के तौर पर हमेशा काम करूंगा।" साथ ही उन्होंने कहा था कि सरकार बचाने वाले नेताओं का हमेशा ख्याल रखेंगे और उनकी बातों का भी मानने का हर संभव प्रयास करेंगे। अब राज्य में करीब आठ महीने बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।
किसे मिलेगा टिकट?
जाहिर है, बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए सभी 6 विधायक आगामी विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी से टिकट की दावेदारी पेश करेंगे। इसके अलावा जिन 13 निर्दलीय विधायकों ने अशोक गहलोत का साथ दिया था, उनकी पृष्ठभूभि भी कांग्रेसी है और उम्मीद की जा रही है कि ये सभी विधायक भी टिकट लेने की रेस में सबसे ऊपर रहेंगे। लेकिन कांग्रेस में मामला यहां फंसा हुआ है कि पार्टी के वह 19 नेता भी टिकट की मांग करेंगे जिन्हें साल 2018 के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। इसी के चलते कांग्रेस नेतृत्व में टकराव के हालात पैदा हो सकते है। जहां एक तरह निर्दलीय विधायक के पास अपने कार्यकर्ता मौजूद हैं, तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस नेताओं के कार्यकर्ता भी लगातार निर्दलीय विधायकों के खिलाफ विरोध जता रहे हैं। अगर ऐसे में अशोक गहलोत पार्टी की ओर इन सभी 19 नेताओं को टिकट मिल जाता है, तो कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं में नाराजगी होना लाजमी है। इसके अलावा पार्टी में टकराव की स्थिति पैदा होना तय है।
टिकट के फेर में फंसी कांग्रेस
इन निर्दलीय विधायकों में कांति प्रसाद मीणा, संयम लोढ़ा, बाबूलाल नागर, बलजीत यादव, महादेव सिंह खंडेला, रमिला खड़िया,आलोक बेनीवाल, लक्ष्मण मीणा, खुशवीर सिंह जोजावर, राजकुमार गौड़, रामकेश मीणा, ओमप्रकाश हुड़ला और सुरेश टाक शामिल हैं। इनमें सुरेश टाक और ओमप्रकाश हुड़ला के अलावा सभी विधायक कांग्रेस पृष्ठभूमि से आते हैं। वहीं बसपा की ओर से चुनाव जीते 6 विधायक दीपचंद खेरिया, लाखन मीणा, संदीप यादव, जोगेन्द्र सिंह अवाना, वाजिब अली और राजेन्द्र सिंह गुढ़ा हैं। ये सभी नेताओं पर कांग्रेस सरकार बहुत ज्यादा मेहरबान रही है। इसके अलावा निर्दलीय विधायक संयम लोढा और बाबूलाल नागर मुख्यमंत्री के करीबी भी माने जाते हैं। साथ ही बसपा से कांग्रेस में शामिल हुए 6 में से 1 विधायक राजेन्द्र सिंह गुढ़ा मौजूदा समय में राज्यमंत्री हैं और बचे 5 विधायकों को कांग्रेस सरकार ने अलग-अलग बोर्डों में पदभार दे रखा है।