छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023: छत्तीसगढ़ के मुंगेली में होता है बहुकोणीय मुकाबला
- मुंगेली जिले में तीन विधानसभा सीट लोरमी, मुंगेली और बिल्हा
- 2012 में बिलासपुर जिले से अलग होकर बना नया जिला
- बिल्हा सीट दो जिलों से रखती है नाता
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मुंगेली जिले में तीन विधानसभा सीट लोरमी, मुंगेली और बिल्हा आती है। बिलासपुर जिले से अलग होकर 2012 में मुंगेली नए जिले के रूप में अस्तित्व में आया। यहां कई धार्मिक एवं पर्यटन स्थल हैं, जहां हर साल एक बड़ा मेला भी लगता है। बताया जाता है कि फणीनागवंशी राजा के सपने में त्रिपथगामनी गंगा ने प्राकट्य होकर कुंड व मंदिर की स्थापना के निर्देश दिए थे! उन्होंने सेतगंगा में कुंड व मंदिर को भव्य रूप देने का निर्देश माना!कुंड का जल गंगा के समान शीतल व निर्मल था। इसलिए ऋषियों ने इसे श्वेत गंगा का नाम दिया था। जो बोलचाल में सेतगंगा हो गया, टेसुआ के तट पर बसा यह स्थान मुंगेली जिले का तीर्थ कहलाता है।
मुंगेली विधानसभा सीट
2018 में बीजेपी से पुन्नुलाल मोहले
2013 में बीजेपी से पुन्नलाल मोहले
यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला होता है। इसे बीजेपी का अभेद किला माना जाता है, 2008 से 2018 तक लगातार तीन बार बीजेपी की जीत हो रही है। सीट पर अनुसूचित जाति बाहुल सीट है। यहां 40 फीसदी से अधिक एससी मतदाता है। एससी और एसटी वोटर्स ही किंगमेकर की भूमिका में होते है। भले ही मुंगेली बीजेपी का गढ़ है, लेकिन आज भी इलाका विकास को तरस रहा है। बेरोजगारी और स्वास्थ्य की बिगड़ती हालात यहां कि प्रमुख समस्या है।
लोरमी विधानसभा सीट
2018 में जेसीसी जे से धर्मजीत सिंह
2013 में बीजेपी से तोखन साहू
लोरमी विधानसभा में जातीय लिहाज से देखा जाए तो एससी और सामान्य वर्ग का बोलबाला है। एससी मतदाताओं की संख्या 60 हजार के करीब है, वहीं 40 हजार से अधिक सामान्य वर्ग के मतदाता है।
इलाके में भरपूर पानी के स्त्रोत होने के बाद भी किसानों को सिंचाई और जनता को पेयजल की समस्या बनी रहती है। सड़क , शिक्षा और बिजली की समस्या बनी रहती है। लोरमी विधानसभा पर बहुकोणीय मुकाबला देखने को मिलता है। जोगी कांग्रेस के साथ साथ गोंडवाना और बीएसपी यहां मजबूत स्थिति में नजर आते है। जो दोनों प्रमुख पार्टी कांग्रेस और बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी करते है। प्रकृति की गोद में बसा लोरमी पर्यटन के लिए काफी समृद्ध है। यहां प्रदेश का सबसे पहला टाईगर अचानकमार रिजर्व है। इस इलाके में राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले बैगा आदिवासी बड़ी संख्या में निवास करते हैं।
बिल्हा विधानसभा सीट
बिल्हा विधानसभा सीट छत्तीसगढ़ की एकमात्र ऐसी सीट है जो दो जिलों से नाता रखती है। सीट का आधा हिस्सा बिलासपुर जिले में और आधा हिस्सा बिल्हा विधानसभा सीट में आता, जो मुंगेली जिले का हिस्से में है। यहां की चुनावी राजनीति में त्रिकोणीय मामला देखने को मिलता है।
बिल्हा विधानसभा सीट सामान्य सीट है। यहां करीब 40 से 70 फीसदी पिछड़े और सामान्य जाति की आबादी है. इनमें कुर्मी, साहू, और अन्य सामान्य और पिछड़ा वर्ग के लोग रहते हैं। सिंधी समाज का एक बड़ा वर्ग बिल्हा विधानसभा में निवास करता है। 25 से 30 फीसदी एससी और कुछ संख्या में एसटी वर्ग है। यानी पार्टियों का फोकस सिंधी और मुस्लिम समाज पर रहता है, क्योंकि ये दोनों ही वर्ग प्रत्याशी को जिताने और हराने में मददगार हैं। विधानसभा चुनाव में सिंधी और कुर्मी दोनों समाज के लोग किंगमेकर की भूमिका में रहते हैं।
छत्तीसगढ़ का सियासी सफर
1 नवंबर 2000 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के अंतर्गत देश के 26 वें राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना हुई। शांति का टापू कहे जाने वाले और मनखे मनखे एक सामान का संदेश देने वाले छत्तीसगढ़ की सियासी लड़ाई में कई उतार चढ़ाव देखे। छत्तीसगढ़ में 11 लोकसभा सीट है, जिनमें से 4 अनुसूचित जनजाति, 1 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं।
विधानसभा सीटों की बात की जाए तो छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा सीट है,इसमें से 39 सीटें आरक्षित है, 29 अनुसूचित जनजाति और 10 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, 51 सीट सामान्य है। प्रथम सरकार के रूप में कांग्रेस ने तीन साल तक राज किया। राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में अजीत जोगी मुख्यमंत्री बने। तीन साल तक जोगी ने विधानसभा चुनाव तक सीएम की कुर्सी संभाली थी। पहली बार विधानसभा चुनाव हुए और बीजेपी की सरकार बनी। उसके बाद इन 23 सालों में 15 साल बीजेपी की सरकार रहीं। 2003 में 50,2008 में 50 ,2013 में 49 सीटों पर जीत दर्ज कर डेढ़ दशक तक भाजपा का कब्जा रहा। बीजेपी नेता डॉ रमन सिंह का चौथी बार का सीएम बनने का सपना टूट गया। रमन सिंह 2003, 2008 और 2013 के विधानसभा कार्यकाल में सीएम रहें। 2018 में कांग्रेस ने 71 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज कर सरकार बनाई और कांग्रेस का पंद्रह साल का वनवास खत्म हो गया। और एक बार फिर सत्ता से दूर कांग्रेस सियासी गद्दी पर बैठी। कांग्रेस ने भारी बहुमत से जीत हासिल की और सरकार बनाई।