ग्वालियर लोकसभा सीट 2024: जानिए ग्वालियर सीट का इतिहास जहां से अटल भी हार चुके हैं चुनाव, चुनाव में सिंधिया परिवार का दखल
- राजनीतिक पार्टियों से अधिक सिंधिया परिवार का है प्रभाव
- पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एक बार जीते एक बार हारे
- कांग्रेस के वर्चस्व में माधवराव सिंधिया का सबसे अधिक योगदान
डिजिटल डेस्क, ग्वालियर। मध्यप्रदेश की ग्वालियर लोकसभा सीट पर लंबे वक्त तक सिंधिया राजपरिवार का दबदबा रहा है। भाजपा साल 2007 से यहां से लोकसभा चुनाव जीतती आ रही है। वर्तमान में भाजपा के विवेक नारायण शेजवलकर यहां से सांसद हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र से एक बार चुनाव जीत चुके हैं। हालांकि, एक बार उन्हें हार का भी सामना करना पड़ा था। आइए जानते हैं कैसा है ग्वालियर का सियासी इतिहास?
ग्वालियर का चुनावी इतिहास
साल 1957 में ग्वालियर में हुए पहले आम चुनाव में कांग्रेस के सूरज प्रसाद निर्वाचित हुए थे। साल 1962 के चुनाव में राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस के टिकट से जीत दर्ज की। लेकिन साल 1967 के आम चुनाव में पहली बार कांग्रेस को यहां हार का मुंह देखना पड़ा था। और भारतीय जनसंघ के प्रत्याशी आर अवतार ने कांग्रेस के हाथ से यह सीट छीन ली।
साल 1971 में जनसंघ के टिकट पर ही अटल बिहारी वाजेपेयी ने यहां से चुनाव जीता और पहली बार सांसद बने। आपातकाल हटने के बाद 1977 के आम चुनाव में भारतीय लोकदल के प्रत्याशी नारायण कृष्ण शेजवलकर यहां से निर्वाचित हुए। जनता पार्टी के उम्मीदावर के तौर पर साल 1980 में शेजवलकर यहां से चुनाव जीतकर दोबारा लोकसभा के सदस्य बनें।
साल 1984 के चुनाव में कांग्रेस की वापसी हुई और इस चुनाव में राजमाता सिंधिया के बेटे माधवराव सिंधिया सांसद बने। उन्होंने लगातार अगले चार चुनाव 1989, 1991, 1996, व 1998 में जीत दर्ज की। माधवराव ने 1996 का आम चुनाव मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस पार्टी से लड़कर जीता था। साल 1999 में भाजपा प्रत्याशी जयभान सिंह पवैया सांसद बने। साल 2004 में कांग्रेस की वापसी हुई और रामसेवक सिंह सांसद बने। साल 2007 में उप-चुनाव हुए जिनमें भाजपा को जीत मिली और यशोधरा राजे सिंधिया सांसद बनीं। साल 2009 के आम चुनाव में फिर से यशोधरा राजे सिंधिया को जीत मिली और वे सांसद बनीं। साल 2014 में नरेंद्र सिंह तोमर इस सीट से भाजपा के सांसद बने। साल 2019 में इस सीट से पूर्व सांसद नारायण कृष्ण राव शेजवलकर के बेटे विवेक नारायण शेजवलकर भाजपा के टिकट से चुनाव जीतकर सांसद बने।
राजनीतिक पार्टियों से अधिक सिंधिया परिवार का है प्रभाव
ग्वालियर रियासत पर शुरु से ही सिंधिया परिवार का प्रभाव रहा है। आजादी के बाद हुए लोकसभा चुनावों की राजनीति भी किले से तय होती आई है। तमाम दलों ने सिंधिया परिवार के सहारे इस सीट पर अपने पैर जमाने की कोशिश की, जिसमें बीजेपी को कुछ हद तक कामयाबी भी मिली। कांग्रेस के टिकट पर माधवराव सिंधिया ने यहां से सबसे ज्यादा बार सांसद चुने गए। ग्वालियर में कांग्रेस पार्टी के बढ़ते वर्चस्व में सबसे अधिक योगदान माधवराव सिंधिया रहा है। 2001 में माधवराव सिंधिया के एक विमान दुर्घटना में असमय निधन से कांग्रेस को बड़ा सियासी झटका लगा था। माधवराव के बाद उनकी बहन यशोधरा राजे सिंधिया ने ग्वालियर से सिंधिया राजपरिवार का सियासी सफर आगे बढ़ाया। उन्होंने साल 2007 में हुए उप-चुनाव में भाजपा के टिकट पर जीत दर्ज की थी। जब तक यशोधरा राजे यहां से सांसद रहीं तब तक इस क्षेत्र में भाजपा की ताकत और बढ़ी। माधवराव सिंधिया से पहले उनकी मां विजयाराजे सिंधिया भी इस सीट से कांग्रेस की सांसद रह चुकी थीं।
जब अटल चुनाव हारे
1984 के आम चुनाव में ग्वालियर संसदीय क्षेत्र से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को कांग्रेस के कैंडिडेट माधवराव सिंधिया के अचानक चुनावी मैदान में उतरने से हार का सामना करना पड़ा था। आपको बता दें आमतौर पर माधवराव गुना सीट से चुनाव लड़ा करते थे। हालांकि अटल बिहारी बाजपेयी ने एक बार जिक्र किया था कि उन्होंने खुद माधवराव से संसद में पूछा था कि वे ग्वालियर से तो चुनाव नहीं लड़ेंगे। तब माधवराव ने मना कर दिया था, लेकिन कांग्रेस की चुनावी स्ट्रैटिजी के कारण अचानक उनका पर्चा भर दिया गया। अटल बिहारी वाजपेयी के पास तब कोई मौका ही नहीं बचा कि वे दूसरी जगह से नामांकन दाखिल करते। राजमाता विजयाराजे सिंधिया को उस चुनाव में बड़े धर्मसंकट का सामना करना पड़ा। एक तरफ वे बीजेपी में अटल बिहारी वाजपेयी के साथ थीं और दूसरी ओर उनका बेटा माधवराव चुनाव में खड़ा था। ऐसे में उन्होंने ग्वालियर की जनता से अपील की कि एक ओर पूत है और दूसरी ओर सपूत, फैसला आपके हाथ में है। इसके बाद ग्वालियर के लोग ने राजमाता सिंधिया का इशारा समझ लिया और अटल बिहारी वाजपेयी माधवराव के सामने चुनाव हार गए।
बेअसर जातिवाद की राजनीति
अभी तक के चुनावी इतिहास में ग्वालियर सीट पर जातिवाद की राजनीति बेअसर रही है, यहां ज्यादातर सिंधिया राजघराने का ही इफेक्ट रहा है। जातिगत समीकरण की बात करें तो यहां तकरीबन 20 फीसदी एससी और 6 फीसदी एसटी मतदाता है। अनारक्षित सीट होने से यहां से हर बार सामान्य वर्ग से ही सांसद बना है।