लोकसभा चुनाव 2024: उत्तरप्रदेश में मतदान कम होना बीजेपी के लिए खतरे की घंटी! आखिर क्यों पोलिंग बूथ से मुंह मोड़ रहे वोटर्स, जानिए क्या कहते हैं विश्लेषक?

  • दो चरणों में यूपी की 16 सीटों पर हुआ कम मतदान
  • हाई प्रोफाइल सीटों पर भी वोटिंग कम
  • विश्लेषकों ने बताया कारण

Bhaskar Hindi
Update: 2024-04-27 19:27 GMT

डिजिटल डेस्क,नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान 26 अप्रैल को संपन्न हो चुका है। वहीं,लोकसभा के लिहाज से देश का सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में एक बार फिर मतदाताओं में वोटिंग के प्रति कम रुचि देखी गई। चुनाव आयोग के मुताबिक दूसरे चरण में राज्य की 8 सीटों पर केवल 54.85% ही मतदान हुआ, जो कि देश में सबसे कम था। अब तक राज्य की 80 लोकसभा सीटों में से 16 सीटों पर मतदान हो चुका है। इन सीटों में मथुरा और मेरठ लोकसभा सीट भी शामिल हैं रामायण के 'श्रीराम' अरुण गोविल और फिल्म एक्ट्रेस हेमा मालिनी शामिल हैं। लेकिन इसके बावजूद भी वोटिंग पिछले चुनाव के मुकाबले कम मतदान हुआ। वोटिंग में आई इस गिरावट को कुछ चुनावी एक्सपर्ट्स बीजेपी के लिए अच्छा नहीं मान रहे हैं। पिछले चुनाव के मतदान प्रतिशत पर नजर डालें तो जब-जब कम वोटिंग हुई है तब-तब बीजेपी के जीतने का अवसर कम हुआ है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस बार यूपी की इन 16 सीटों पर बीजेपी खराब प्रदर्शन करने वाली है? आइए इसे समझने को कोशिश करते हैं।

आरएलडी के साथ गठबंधन का नहीं मिला फायदा!

यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से शुरूआती दो चरणों को मिलाकर जिन 16 सीटों पर वोटिंग हुई है वह सभी पश्चिमी यूपी में आती हैं। ये इलाका आरएलडी (राष्ट्रीय लोकदल) के प्रभाव वाला माना जाता है। यहां पिछले लोकसभा चुनाव में आरएलडी को 6 फीसदी वोट हासिल हुए थे और उसे बीजेपी के पश्चिमी यूपी के क्लीन स्वीइप अभियान में सबसे बड़ा रोड़ा माना जा रहा था। इसे देखते हुए चुनाव से पहले आरएलडी का बीजेपी नीत एनडीए गठबंधन में शामिल होना बीजेपी के लिए फायदेमंद माना जा रहा था। लेकिन, पोलिंग बूथ पर वोटर्स का न आना बीजेपी के लिए बुरी खबर मानी जा रही है।

क्या कहते हैं पिछले दो चुनाव के आंकड़े

एक्सपर्ट्स कम वोटिंग होने के चलते बीजेपी को नुकसान होने की बात बीते दो लोकसभा चुनाव में हुए वोटिंग परसेंट को देखते हुए कह रहे हैं। सबसे पहले बात करते हैं शुक्रवार को हुए दूसरे चरण के चुनाव की। इसमें मथुरा सीट पर 49.29%, मेरठ सीट पर 58.70%, रालोद का गढ़ माने जाने वाली बागपत सीट पर 55.93%, अलीगढ़ सीट पर 56.62%, अमरोहा सीट पर 64.02%, बुलंदशहर सीट पर 55.79%, गाजियाबाद सीट पर 49.55% और गौतमबुद्ध नगर सीट पर 53.21% वोटिंग हुई। वहीं 19 अप्रैल को हुए पहले चरण के चुनाव में मुजफ्फरनगर सीट पर 59.13%, बिजनौर सीट पर 58.73%, कैराना सीट पर 62.46%, मुरादाबाद सीट पर 62.18%, नगीना सीट पर 60.75%, पीलीभीत सीट पर 63.11%, रामपुर सीट पर 55.85% और सहारनपुर सीट पर 66.14% मतदान हुआ।

अब बात करते हैं 2014 के आम चुनावों की तो इस चुनाव में मथुरा (64.10%), अलीगढ़ (59.38%), बुलंदशहर (58.18%), गौतमबुद्ध नगर (60.39%), बागपत (66.75%), मेरठ (63.12%), अमरोहा (70.97%), बिजनौर (67.88%), कैराना (73.10%), मुरादाबाद (63.66%), मुजफ्फरनगर (69.74%), नगीना (63.12%), पीलीभीत (62.86%), रामपुर (59.27%) और सहारनपुर (74.26%) मतदान हुआ था। सबसे कम मतदान 56.94% वोटिंग गाजियाबाद में हुआ था।

वहीं, 2019 के आम चुनावों में सहारनपुर सीट पर (70.87%), गाजियाबाद (55.89%), मथुरा (61.08%), अलीगढ़ (61.68%), बुलंदशहर (62.92%), गौतमबुद्ध नगर (60.49%), बागपत (64.68%), मेरठ (64.29%), अमरोहा (70.97%), बिजनौर (66.22%), कैराना (67.45%), मुरादाबाद (65.46%), मुजफ्फरनगर (68.42%), नगीना (63.66%), पीलीभीत (67.41% वोट) और रामपुर सीट पर (63.19%) वोटिंग हुई।

इस तरह 2014 और 2019 के वोटिंग परसेंटेज की तुलना 2024 के चुनाव से करें तो 2014 में इन सभी सीटों पर अच्छा मतदान हुआ था। जिसके चलते भगवा दल ने इन सभी सीटों को जीत कर क्लीन स्वीप किया था। वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में 2014 के चुनाव के मुकाबले कम वोटिंग हुई। जिसका नतीजा यह निकला कि बीजेपी यहां की 16 में से 6 सीटें ही जीत पाई। केवल 6 सीट बिजनौर, मुरादाबाद, रामपुर, अमरोहा, सहारनपुर और नगीना ही बीजेपी के खाते में गई थीं।

क्या हैं वोटिंग कम होने के कारण?

हालांकि इस चुनाव में कम मतदान केवल यूपी में ही नहीं बल्कि पूरे देश में कम हो रहा है। पिछले चुनावों से तुलना करें तो इस बार के चुनाव में वोटिंग को लेकर लोगों में उत्साह नहीं दिख रहा है। चुनाव आयोग के आंकड़ों पर नजर डालें तो पहले चरण की 102 सीट पर केवल 66.1 फीसदी और दूसरे चरण की 88 सीटों पर केवल 60.9 फीसदी ही मतदान हुआ था। चुनावी विश्लेषक भी मतदान कम होने की अलग-अलग वजह बता रहे हैं।

कई विश्लेषकों का मानना है कि बहुत से वोटर्स ये मानकर चल रहे हैं कि बीते दो चुनाव जैसे ही इस बार भी बीजेपी की ही जीत होने वाली है। इस वजह से वो मतदान में रुचि नहीं दिखा रहे हैं। वहीं कुछ विश्लेषक का कहना है कि इस बार के चुनाव में विपक्ष द्वारा उठाए महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दे प्रभाव नहीं डाल पाए हैं। इसके साथ ही इस बार मतदाता धर्म के आधार पर भी वोट डालने के लिए तैयार हो पा रहा है। इन सभी एंगल्स को ध्यान में रखते हुए विश्लेषक ये मान रहे हैं कि इस बार भी चुनावों में बीजेपी नीत एनडीए गठबंधन की जीत हो सकती है और नरेंद्र मोदी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बन सकते हैं।

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