छत्तीसगढ़ में हंग असेंबली की संभावना! नई पार्टी को नहीं संभाला तो क्या मुश्किल होगी कांग्रेस की भूपेश सरकार की वापसी?

  • छत्तीसगढ़ में हंग असेंबली की संभावना!
  • भूपेश बघेल के सामने चुनौती

Bhaskar Hindi
Update: 2023-06-22 12:17 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ में भी अगले तीन महीने बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इस समय राज्य में कांग्रेस की सरकार है और प्रमुख विपक्षी दल बीजेपी है। दोनों ही पार्टियां इस साल के जनवरी माह से ही चुनावी तैयारियों में जुटी हुई हैं। लेकिन अब इन दोनों पार्टियों के सामने एक नया सिरदर्द बनता जा रहा है। इसके पीछे की बड़ी वजह राज्य में एक नई पार्टी के बढ़ते दबदबे को माना जा रहा है। पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने ऐलान किया है कि सर्व आदिवासी समाज भी इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार को उतारेगा।

सर्व आदिवासी समाज ने ऐलान किया है कि वो आदिवासी विस क्षेत्र में आरक्षित 29 सीटों पर अपने उम्मीदवार को उतारने की तैयारी में है। इसके अलावा पार्टी ने सामान्य सीटों पर भी अपने उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है। बता दें कि सर्व आदिवासी समाज के नेता अरविंद नेताम इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार में साल 1973 से 1977 तक मंत्री रहे हैं। नेताम के इस ऐलान के बाद आदिवासी वोट बैंक में एक नई जंग छिड़ने की संभावानएं हैं।

सर्व आदिवासी समाज से किसे होगा नुकसान?

गौरतलब है कि पिछले साल दिसंबर माह में छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले की भानुप्रतापपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुए थे। जिसमें सर्व आदिवासी सामाज विधानसभा उपचुनाव जीतने में कामयाब तो नहीं रही। लेकिन उसने अपने प्रदर्शन से हर किसी का दिल जीत लिया। इस उपचुनाव में पार्टी को 23 हजार वोट मिले। इसी प्रदर्शन के बाद नेताम की पार्टी ने राज्य की सियासत में नए मानचित्र पर अपनी मजबूत छवि को प्रदर्शित करने का काम किया है। इस पार्टी को जितने वोट उपचुनाव में मिलें हैं। यह 2018 के विस चुनाव में कांग्रेस की जीत के अंतर से भी अधिक है। 2018 के विस चुनाव में अधिकतर आदिवासी सीटों पर हार-जीत का अंतर 10 हजार वोट के आसपास रहा था।

इस मसले पर राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ तिवारी कहना है कि अगर नेताम की पार्टी उपचुनाव वाले प्रदर्शन को सभी आदिवासी सीटों पर इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में बरकरार रखती है तो कांग्रेस को इससे परेशानी हो सकती है। करीब एक दशक तक नेताम राजनीति से दूर रहे थे, लेकिन तब भी वे आदिवासी समुदाय के बीच काफी ज्यादा सक्रिय रहे थे। उनके चुनाव में एंट्री से आदिवासी सुमदाय का वोट बैंक बहुत ज्यादा प्रभावित होगा।

पार्टी की रणनीति

पिछले चुनाव में नेताम की पार्टी को हल्के में लेने की कोशिश की गई थी। जिसका नतीजा अजीत जोगी की छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (छजकां), बसपा और भाकपा के गठबंधन को उठाना पड़ा था। तब यह गठबंधन महज 11 फीसदी वोट शेयर के साथ केवल 7 सीट जीतने में कामयाब रही थीं। हालांकि बीजेपी की हार में अजीत जोगी के इस गठबंधन की बहुत बड़ी भूमिका रही है। 2013 विधानसभा चुनाव के मुताबिक बीजेपी को पिछले चुनाव में 8 फीसदी वोट शेयर का नुकसान हुआ था। 2018 के विस चुनाव में बीजेपी 33 फीसदी वोट शेयर के साथ महज 15 सीटों पर सिमट कर रह गई। यदि इस बार नेताम की पार्टी पूरी ताकत के साथ चुनावी मैदान में उतरती है तो इससे कांग्रेस को नुकसान हो सकता है।

आदिवासी समुदाय का राज्य की सियासत में दबदबा

जानकारी के मुताबिक, छत्तीसगढ़ में करीब 34 फीसदी आदिवासी समुदाय निवास करते हैं। राज्य में 90 विधानसभा सीटें हैं। इसमें 29 सीटें आदिवासी समाज और 10 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। यहां पर बहुमत आंकड़ा हासिल करने के लिए 46 सीटों पर जीत दर्ज करना पड़ती है। इस हिसाब से देखे तो राज्य की सत्ता हासिल करने के लिए आदिवासी समाज में सभी पार्टियों को मजबूत पकड़ बनना जरूरी होगा। कहा जाता है कि छत्तीसगढ़ में सत्ता का रास्ता आदिवासी समाज से होकर गुजरता है। आदिवासी जिस दल को अपना समर्थन देता है, जीत भी उसी की होती है। 2003 से 2013 तक इस समुदाय का समर्थन आदिवासी समुदाय के साथ था। तब राज्य में बीजेपी की सरकार 15 सालों तक रही। लेकिन 2018 के विस चुनाव में यह समर्थन बीजेपी के पाले से हटकर कांग्रेस के पास चली गई। नतीजा राज्य में भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी।

हंग असेंबली की संभावनाएं बरकरार

साल 2018 के विस चुनाव में कांग्रेस 68 सीटों पर जीत हासिल की थी। साथ ही इस चुनाव में राज्य की 29 में से 27 आदिवासी सीटों पर कांग्रेस ने अपना कब्जा जमाया। बीजेपी इस बार कांग्रेस के इस किले को धवस्त करने के लिए आदिवासी समुदाय को लुभाने की कवायद में जुट गई है। बीजेपी यहां पर पुरखौती सम्मान यात्रा जैसे आयोजनों के जरिए आदिवासी वोट बैंक को आकर्षित करने में लगी हुई है। लेकिन अब अरविंद नेताम की आदिवासी समाज में एंट्री से राज्य की सियासत में नया मोड़ आ गया है। ऐसे में अब देखना दिलचस्प होगा कि इसका फायदा बीजेपी या कांग्रेस को मिलता है। अगर इन सभी सीटों पर नेताम की पार्टी की जीत हासिल करने में कामयाब रहती है। संभावानएं यह भी है कि राज्य में हंग असेंबली का भी निर्माण हो सकता है। 

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