नई जिम्मेदारी, नई चुनौतियां: शिवराज सिंह चौहान की नई पारी पर नजर, पहली बार केंद्रीय मंत्री बने पूर्व सीएम के सामने हैं तीन कठिन चुनौतियां!

  • कृषि मंत्रालय में शिवराज की चुनौतियां
  • कई मांगों को लेकर किसानों के विरोध प्रदर्शन से निपटना सबसे बड़ी चुनौती
  • एमपी के खेती मॉडल को पूरे देश में लागू करना होगा

Bhaskar Hindi
Update: 2024-06-11 11:03 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नए मंत्रिमंडल में शामिल हुए बीजेपी के दिग्गज नेता और मध्य प्रदेश के चार बार पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान काफी चर्चाओं में है। चौहान को दो अहम विभागों की जिम्मेदारी मिली है। पूर्व सीएम चौहान को केंद्रीय कृषि और ग्रामीण विकास मंत्रालय का भार सौंपा गया है। सूबे में मामा और पांव पांव भैया से मशहूर चौहान जमीन और किसानों से जुड़े नेता माने जाते हैं। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने एक रैली में उनके योगदान और लोकप्रियता को स्वीकार करते हुए उनकी सराहना की, और उन्हें अपने साथ काम करने की इच्छा जाहिर की थी। केंद्रीय कृषि मंत्री के रूप में चौहान की नियुक्ति से कृषि क्षेत्र और कृषक समुदाय के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने में सरकार के प्रयासों को नई गति मिलेगी। पीएम नरेंद्र मोदी चुनावों के दौरान शिवराज की खुलकर तारीफ की थी। उन्होंने कहा था कि चौहान के समय में मप्र बीमारू स्टेट से निकलकर सबसे आगे खड़े राज्यों में आ गया। उनकी दूरदर्शी नीतियों से किसानों के जीवन में बड़े अहम बदलाव आए।

मोदी सरकार को सबसे ज्यादा किसानों की नाराजगी झेलनी पड़ी

मोदी सरकार के पहले दो कार्यकाल के दौरान केंद्रीय कृषि मंत्रालय में अपेक्षाकृत कम प्रोफ़ाइल वाले व्यक्ति थे: राधा मोहन सिंह, नरेंद्र सिंह तोमर और अर्जुन मुंडा। इससे पहले की यूपीए सरकार में कृषि विभाग शक्तिशाली लोगों के पास था, जिनमें शरद पवार ,सी. सुब्रमण्यम और जगजीवन राम से लेकर राव बीरेंद्र सिंह, चौधरी देवी लाल और बलराम जाखड़ रह चुके है। किसानों के हितैषी चेहरों में शुमार चौहान के कार्यभार संभालने से इस क्षेत्र की नीति प्रोफ़ाइल में वृद्धि होने की उम्मीद है, जो मौजूदा कीमतों पर भारत के सकल मूल्य वर्धित का लगभग 18 प्रतिशत और इसके नियोजित श्रम बल का 46 प्रतिशत है। मौजूदा दौर को देखें तो शिवराज ने कांटों का ताज पहना है। ऐसा इसलिए है कि पिछले 5 साल के दौरान नरेंद्र मोदी सरकार को सबसे ज्यादा किसानों की नाराजगी झेलनी पड़ी है।

 मूल्य निर्धारण पर चुनौतियों से निपटना होगा

शिवराज को भारतीय कृषि को जलवायु परिवर्तन, अनुसंधान, विस्तार और सिंचाई में सार्वजनिक निवेश में गिरावट, और नियंत्रण की वापसी के कारण निजी क्षेत्र की घटती रुचि, चाहे इनपुट (उर्वरक और बीज), प्रौद्योगिकी (विशेष रूप से बायोटेक फसलों की रिहाई) के मूल्य निर्धारण पर चुनौतियों से निपटना होगा। 

किसान और सरकार के बीच संतुलन बनाना

आपको बता दें कृषि विभाग काफी चुनौतियों से भरा हुआ विभाग माना जाता रहा है। कोविड से पहले और बाद में भी किसान कई मांगों को लेकर आंदोलनरत है। किसान और सरकार के बीच संतुलन बनाना शिवराज के सामने सबसे बड़ी चुनौती रहेगी। एमपी का खेती मॉडल को पूरे देश में लागू करना होगा वो भी खेती में विविधता को बनाए रखते हुए। अब तक चौहान मध्यप्रदेश में तो इन दिक्कतों को दूर करते आए, लेकिन अब देश के स्तर पर इन्हें ठीक करना होगा।

आंदोलनरत किसानों को साधना शिवराज के समक्ष बड़ी चुनौती

तीन कृषि कानून के बाद किसानों ने केंद्र सरकार के खिलाफ भारी विरोध प्रदर्शन दे गया। किसानों की मांग के चलते करीब एक साल बाद मोदी ने कानूनों को वापस लिया। किसान एमएसपी कानून, स्वामीनाथन कमेटी के सिफारिश को लागू करना, मुफ्त बिजली जैसी मांगों को लेकर केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफकई बार विरोध प्रदर्शन किया है। आंदोलनरत किसानों को साधना शिवराज के समक्ष बड़ी चुनौती होगी। 

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