लोकसभा चुनाव 2024: सिंधिया परिवार का गढ़ रही है गुना सीट, जानिए गुना लोकसभा सीट का चुनावी इतिहास

  • 2019 में कांग्रेस से बीजेपी ने छींनी गुना लोकसभा सीट
  • केपी यादव ने कांग्रेस के गढ़ में सेंधमारी
  • 2002 में पहली बार सासंद बने ज्योतिरादित्य सिंधिया

Bhaskar Hindi
Update: 2024-02-21 13:17 GMT

डिजिटल डेस्क, भोपाल। लोकसभा चुनाव में जब भी मध्य प्रदेश की सीटों की बात की जाती है तो सबसे पहले गुना सीट की चर्चा होती है। 2019 आम चुनाव तक गुना लोकसभा सीट सिंधिया घराने का अभेद किला मानी जाती रही है। सिंधिया राजघराने से सबसे पहले राजमाता विजयाराजे सिंधिया यहां से सांसद बनी। फिर माधवराव सिंधिया और उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया सीट से सांसद निर्वाचित हुए। साल 2014 के आम चुनाव में इस सीट से सिंधिया की जीत का अंतर कम रहा था। इस क्षेत्र में सिंधिया की पहचान 'महाराज' तौर पर की जाती है। साल 1999 के बाद से भाजपा यहां चुनाव नहीं जीत पा रही थी। लेकिन साल 2019 के आम चुनाव में कृष्ण पाल सिंह यादव ने भाजपा की वापसी कराई। वर्तमान में के पी सिंह यादव यहां से सांसद हैं। आईए जानते हैं क्या है गुना लोकसभा सीट का चुनावी इतिहास?

गुना लोकसभा सीट का चुनावी इतिहास

गुना लोकसभा सीट सिंधिया राजघराने का गढ़ मानी जाती है। साल 1957 में हुए पहले चुनाव में राजमाता विजया राजे सिंधिया यहां से कांग्रेस की ओर से सांसद बनीं थीं। साल 1962 के आम चुनाव में इस सीट से कांग्रेस के रामसहाय शिवप्रसाद पांडेय सांसद बने। साल 1967 में उप-चुनाव हुए जिसमें राजगोपालाचारी की स्वतंत्र पार्टी को जीत मिली और जे बी कृपलानी सांसद बने। इसी साल लोकसभा चुनाव हुए जिसमें स्वतंत्र पार्टी के टिकट से विजया राजे सिंधिया दोबारा सांसद बनीं। साल 1971 के चुनाव में भारतीय जनसंघ से राजमाता सिंधिया के बेटे माधवराव सिंधिया सांसद बने। माधवराव 1977 और 1980 के लोकसभा चुनाव में भी सांसद के तौर पर बरकरार रहे। साल 1984 में कांग्रेस के महेंद्र सिंह सांसद बने। साल 1989 में राजमाता सिंधिया की भाजपा के टिकट से वापसी हुई और वह फिर से सांसद बनीं। राजमाता सिंधिया अगले तीन लोकसभा चुनाव 1991,1996 व 1998 में गुना सीट पर सांसद के तौर पर विजयी हुईं। साल 1999 में माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस को जीत दिलाई। साल 2001 में माधवराव सिंधिया की एक दुर्घटना में असमय मौत होने के बाद उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया को इस सीट से टिकट मिला। उप-चुनाव जीतने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया साल 2002 में पहली बार सासंद बने। इसके बाद उन्होंने लगातार तीन चुनाव 2004,2009 व 2014 में इस सीट से कांग्रेस को जीत दिलाई।

क्या रहा पिछले चुनाव का रिजल्ट?

भाजपा सिंधिया राजघराने के दुर्ग को गिराने में पिछले कई वर्षों से प्रयास कर रही थी। लेकिन राजमाता सिंधिया के बाद भाजपा को कोई ऐसा प्रत्याशी नहीं मिल पा रहा था जो सिंधिया के गढ़ में सेंधमारी कर सके। साल 2019 के आम चुनाव में भाजपा ने कृष्ण पाल सिंह यादव को ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने उतारा। के पी सिंह यादव पहले सिंधिया समर्थक हुआ करते थे। लेकिन बाद में वे भाजपा में शामिल हो गए थे। भाजपा ने उन्हें बड़ा दांव खेलते हुए उतारा था। चुनाव के नतीजों में भाजपा को शानदार जीत मिली थी। के पी सिंह यादव ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को 1 लाख 25 हजार 549 वोटों से बड़ी शिकस्त दी थी। के पी सिंह यादव के पक्ष में कुल 6 लाख 14 हजार 49 वोट डाले गए थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया के पक्ष में 4 लाख 86 हजार 105 वोट डाले गए थे। इसके अलावा बसपा के प्रत्याशी लोकेंद्र सिंह राजपूत को 37 हजार 381 वोट और नोटा को 12 हजार 372 वोट मिले।

नेहरू की इच्छा थी चुनाव में उतरे सिंधिया परिवार

सिंधिया राजपरिवार का चुनावी संबंध भारत के आजाद होने के बाद से शुरु हुआ है। राजतंत्र समाप्त होने के बाद जीवाजी राव सिंधिया का कद गुना क्षेत्र में बढ़ रहा था। उनकी उभरती हुई छवि को देखते हुए पंडित जवाहरलाल नेहरु उन्हें गुना सीट से चुनाव लड़ाना चाहते थे। लेकिन जब वे तैयार नहीं हुए तो ग्वालियर की राजमाता विजयाराजे सिंधिया को चुनाव लड़ने के लिए मनाया गया। साल 1957 में राजमाता ने कांग्रेस के टिकट से पहली बार लोकसभा का चुनाव जीता।

जब 26 साल की उम्र में माधवराव ने चुनाव जीता

राजमाता सिंधिया के बाद उनके बेटे माधवराव सिंधिया भी बहुत जल्द राजनीति में उतर गए थे। मात्र 26 साल की युवा उम्र में माधवराव सिंधिया ने जनसंघ के टिकट पर चुनाव जीता। साल 1977 में माधवराव ने जनसंघ से किनारा कर लिया और निर्दलीय ही चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया। उन्होंने निर्दलीय खड़े होकर भी गुना सीट पर जीत हासिल की। आगे चलकर साल 1980 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीता। राजनीति के चलते माधवराव और उनकी मां राजमाता विजयाराजे सिंधिया के बीच राजनीतिक मतभेद शुरु हो गया और विचारधारा अलग-अलग हो जाने के कारण दोनों विरोधी पार्टियों में चले गए। साल 1989 में गुना लोकसभा सीट से विजयाराजे सिंधिया ने भाजपा के टिकट से चुनाव लड़कर कांग्रेस के महेंद्र सिंह को करारी मात दी। विजयाराजे सिंधिया ने इसके बाद लगातार चार बार भाजपा के टिकट से चुनाव जीता।

माधवराव के बाद उनके बेटे ज्योतिरादित्य का शुरु हुआ दौर

माधवराव सिंधिया ने गुना सीट से कुल चार चुनाव जीते। साल 1999 में उन्होंने आखिरी बार चुनाव जीता था। इसके बाद साल 2001 में एक विमान हादसे में उनकी असमय मौत हो गई थी। जिसके बाद उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया का सियासी सफर शुरु हुआ। साल 2002 के उप-चुनाव में उन्हें मैदान में उतारा गया और उन्होंने अपने पिता की सीट से कांग्रेस को जीत दिलाई। गुना क्षेत्र में जिस तरह से ज्योतिरादित्य सिंधिया का प्रभाव बढ़ रहा था उसे देखते हुए 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने भी दूसरे उम्मीदवार को यहां से उतारने का रिस्क नहीं लिया। उस चुनाव में भी सिंधिया ने बड़ी जीत हासिल की। उन्होंने तब मध्य प्रदेश से भाजपा  नेता नरोत्तम मिश्रा को चुनाव में हराया था। ऐसे ही उन्होंने साल 2014 तक अपनी सांसदी बरकरार रखी।

गुना में जातिवाद की राजनीति का असर नहीं

गुना सीट के चुनावी इतिहास देखने पर पता चलता है कि यहां पर सिंधिया राजघराने का वर्चस्व रहा है। राजमाता विजयाराजे यहां से 6 बार सांसद रहीं, उनके बेटे माधवराव चार बार लोकसभा का चुनाव जीतकर यहां से सांसद बने। फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया भी तीन बार गुना सीट से सांसद रहे। फिर भी जातिवाद की राजनीति यहां बेअसर रही। जातिवाद का कार्ड यहां नहीं चल पाने का सबसे बड़ा कारण ही सिंधिया परिवार है। सिंधिया परिवार के प्रति लोगों का प्रेम अब भी बरकरार है और स्थानीय लोग अब भी रियासत के हिसाब से सिंधिया परिवार को देखते हैं। यहां तक कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को तो लोग 'महाराज' कहकर संबोधित करते हैं।

साल 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद तो ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रदेश का भावी मुख्यमंत्री के तौर पर भी देखा जा रहा था। हालांकि, बाद में कांग्रेस ने अनुभवी दिग्गज नेता कमलनाथ को सीएम बना दिया। आगे चलकर सिंधिया ने पार्टी से सहमति न बन पाने के कारण साल 2020 में अपने 28 विधायकों के साथ भाजपा का दामन थाम लिया था।

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