महाकाल की नगरी उज्जैन में राजनैतिक दलों की चुनावी रणनीति धर्म और चर्चा

  • उज्जैन जिले में सात विधानसभा सीट
  • चार पर कांग्रेस और तीन पर बीजेपी का कब्जा
  • उज्जैन नगरी में राजनीति के केंद्र में भोले बाबा

Bhaskar Hindi
Update: 2023-08-21 13:14 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले में सात विधानसभा सीटनागदा-खाचरोद, महिदपुर, तराना,घटिया,उज्जैन-उत्तर,उज्जैन-दक्षिण, बड़नगर विधानसभा सीट आती है। सात में से चार सीटों पर कांग्रेस और तीन पर बीजेपी का कब्जा है। तराना और घाटिया विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए शेष सीटें सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित है। हाल ही बीजेपी ने अपनी पहली प्रत्याशी सूची में उज्जैन की दोनों एससी आरक्षित सीटों तराना और घाटिया पर नाम का ऐलान कर 2018 का बदला लेने की ठानी है। दोनों ही उम्मीदवारों को पूरे क्षेत्र में बीजेपी का झंडा लहराने का पूरा अवसर दिया है।

इससे पहले आपको बता दें 2013 में जिले की सभी सातों सीटों पर बीजेपी का कब्जा था, लेकिन 2018 में ये आंकड़ा घटकर सिमट गया, बीजेपी 2018 के विधानसभा चुनाव में तीन सीटों पर जीत दर्ज कर पाई थी, जबकि कांग्रेस के खाते में चार सीट आई थी।

महाकाल, राजा विक्रमादित्य और कालीदास की इस उज्जैन नगरी में राजनीति के केंद्र में भोले बाबा रहते है। महाकाल लोक के सहारे बीजेपी यहां चुनावी मैदान में उतरी है, वहीं मूर्तियों के भ्रस्टाचार मामले को लेकर कांग्रेस बीजेपी पर हमलावर है।

नागदा को छो़ड़कर कहीं भी उद्योंगों का विकास नहीं हुआ है, जिसके चलते जिले में बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है। स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा व्यवस्था बदहला है। पानी की समस्या भी एक बडी समस्या है।

नागदा खाचरोद विधानसभा सीट

परिसीमन के बाद 2008 में नागदा खाचरोद सीट अस्तित्व में आई, इससे पहले खाचरोद विधानसभा सीट थी। परिसीमन के बाद खाचरोद में नागदा को जोड़कर सीट का नया रूप सामने आया। अब इस सीट पर तीन बार चुनाव हुए है, इसमें से एक बार बीजेपी और दो बार कांग्रेस ने चुनाव जीता है। नागदा खाचरोद विधानसभा में बिहार और झारखंड के लोग भी रहते है। नागदा मध्यप्रदेश के 54 वें जिले के रूप में चुनाव से पहले अस्तित्व में आ सकता है। उद्योग नगरी नागदा में अबकी बार कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है। यहां किसान और व्यापारी वर्ग के मतदाता अंतिम परिणाम तय करते है।

2018 में कांग्रेस से दिलीप सिंह गुर्जर

2013 में बीजेपी से दिलीप सिंह शेखावत

2008 में कांग्रेस से दिलीप सिंह गुर्जर

महिदपुर विधानसभा सीट

महिदपुर में सोंधिया समुदाय का अधिक प्रभाव है। उम्मीदवारों की हार जीत में ये वोटर्स निर्णायक होता है। महिदपुर में सोंधिया समुदाय का अधिक प्रभाव है। उम्मीदवारों की हार जीत में ये वोटर्स निर्णायक होता है। इस सीट पर कांग्रेस ने आखिरी चुनाव 2008 विधानसभा चुनाव में जीता था।

2018 में बीजेपी से बहादुर सिंह चौहान

2013 में बीजेपी से बहादुर सिंह चौहान

2008 में कांग्रेस से कल्पना पारूलेकर

2003 में बीजेपी से बहादुर सिंह चौहान

1998 में कांग्रेस से डॉ कल्पना पारूलेकर

1993 में बीजेपी से बाबूलाल जैन

1990 में बीजेपी से बाबूलाल जैन

1985 में बीजेपी से नाथूलाल सिसोदिया

1980 में कांग्रेस से आनंदीलाल छजलानी

1977 में जनता पार्टी से शिवनारायण चौधरी

1972 में कांग्रेस से नारायण प्रसाद शर्मा

1967 में जनसंघ से रामचंद्र

1962 में कांग्रेस से दुर्गादास भगवान दास

1957 में कांग्रेस से तोताला रामेश्वर दयाल महादेव

तराना विधानसभा सीट

तराना विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। क्षेत्र में बलाई और गुर्जर समुदाय का भी बोलबाला है। खटीक समाज के मतदाता निर्णायक होते है। तराना विधानसभा सीट से बीजेपी ने 20 साल पुराने विधायक रहे ताराचंद गोयल को प्रत्याशी घोषित किया है। 2023 के विधानसभा चुनाव की तारीख घोषित होने से पहले बीजेपी ने पुराने चेहरे पर भरोसा करके सबसे चौका दिया है। ताराचंद गोयल को सत्यनारायण जटिया का खास माना जाता है।

लगातार तीन बार से जीतती आ रही बीजेपी को 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से छुड़ा लिया था। अब बीजेपी इस सीट को अपने पाले में लाने क पूरी कोशिश कर रही है। तराना विधानसभा सीट पर पहली बार चुनाव 1962 में हुआ था। तब से अब तक इस सीट पर 13 बार चुनाव हुए है, जिनमें से 7 विधानसभा चुनाव बीजेपी और 6 कांग्रेस के नाम दर्ज है। 1990 से पिछले 28 सालों में सात विधानसभा चुनाव हुए है, जिनमें से पांच बार बीजेपी और 2 बार कांग्रेस ने जीत हासिल की है। 1990,1995,2003, 2008 और 2013 में बीजेपी और 1998 और 2018 में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। स्वास्थ्य सुविधा, ग्रामीण सड़क, उद्योगों की कमी, बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी क्षेत्र की प्रमुख समस्या है।

2018 में कांग्रेस से महेश परमार

2013 में बीजेपी से अनिल फिरोजिया

2008 में बीजेपी से रोडमल राठौर

2003 में बीजेपी से ताराचंद गोयल

1998 में कांग्रेस से बाबूलाल मालवीय

1995 में बीजेपी से माधव प्रसाद शास्त्री

1990 में बीजेपी से गोविंद परमार

1985 में कांग्रेस से दुर्गाप्रसाद सूर्यवंशी

1980 में कांग्रेस से दुर्गा प्रसाद सूर्यवंशी

1977 में जनता पार्टी से नागूलाल मालवीय

1972 में कांग्रेस से लक्ष्मीनारायण जैन

1967 में जनसंघ से एम सिंह

1962 में कांग्रेस से एम सिंह

घटिया विधानसभा सीट

2023 के विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने अपनी पहली सूची में घटिया विधानसभा से सतीश मालवीय को प्रत्याशी घोषित किया है। जिन्हें थावरचंद गहलोत का खास माना जाता है। घटिया सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। घटिया विधानसभा बलाई समाज का गढ़ रहा है। यहां पर दो लाख से ज्यादा मतदाता हैं जिनमें सबसे अधिक वोट बलाई समाज के है। उसके बाद राजपूत, आंजना समाज के वोट है। बलाई समाज के वोटों का ध्यान रखते हुए बलाई समाज के प्रत्याशी को चुनावी मैदान में पार्टियां उतराती है।

2018 में कांग्रेस से रामलाल मालवीय

2013 में बीजेपी से सतीश मालवीय

2008 में कांग्रेस से रामलाल मालवीय

2003 में बीजेपी से डॉ नारायण परमार

1998 में कांग्रेस से रामलाल मालवीय

1995 में बीजेपी से रामेश्वर अखण्ड

1990 में बीजेपी से रामेश्वर अखण्ड

1985 में कांग्रेस से अवंतिका प्रसाद

1980 में बीजेपी से नागूलाल मालवीय

1977 में जनता पार्टी से गंगाराम परमार

उज्जैन -उत्तर विधानसभा सीट

यहां ओबीसी वोट बैंक मुख्य भूमिका में होता है। इनमें अल्पसंख्यक मुस्लिम मतदाता भी अहम होता है। एससी और राजपूत समाज जीत हार की दशा तय करते है। सिंधी और ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या तकरीबन बराबर है।

2018 में बीजेपी से पारस चंद्र जैन

2013 में बीजेपी से पारस चंद्र जैन

2008 में बीजेपी से पारसचंद्र जैन

2003 में बीजेपी से पारसचंद्र जैन

1998 में कांग्रेस से राजेंद्र भारती

1993 में बीजेपी से पारस चंद्र जैन

1990 में बीजेपी से पारस चंद्र जैन

1985 में कांग्रेस से बटुक शंकर जोशी

1980 में कांग्रेस से राजेंद्र जैन

1977 में जनता पार्टी से बाबू लाल जैन

1972 में कांग्रेस से प्रकाश चंद सेठी

1967 में जनसंघ से एम जोशी

1962 में कांग्रेस से अब्दुल गयूर कुरैशी

1957 में कांग्रेस से राजदान कुमार किशोरी

उज्जैन दक्षिण विधानसभा सीट

उज्जैन दक्षिण सामान्य विधानसभा सीट है। क्षेत्र में बैरवा, सिंधी, राजपूत, ब्राह्णण वोटर्स है। दक्षिण में एससी और राजपूत समाज खासा असर रखता है। जातिगत समीकरण की बात की जाए तो यहां अनुसूचित जाति के 35 हजार मतदाता और राजपूत समाज के 40 हजार मतदाता है। इसके अलावा ओबीसी वोटर्स 24 फीसदी, ब्राह्मण और वैश्य समाज के 15 फीसदी मतदाता भी चुनाव में अहम भूमिका निभाते हैं। कांग्रेस लगातार तीन हार के बाद दोबारा अपनी जमीन तलाशने में जुटी है।

2018 में बीजेपी से डॉ मोहन यादव

2013 में बीजेपी से डॉ मोहन यादव

2008 में बीजेपी से शिवनारायण जागीरदार

1998 में कांग्रेस से प्रीती भार्गव

1993 में बीजेपी से शिव कोटवानी

1990 में बीजेपी से बाबू लाल महेरे

1985 में कांग्रेस से महावीर प्रसाद वशिष्ठ

1980 में कांग्रेस से महावीर प्रसाद वशिष्ठ

1977 में जनता पार्टी से गोविंद राव नायक

1972 में कांग्रेस से दुर्गादास सूर्यवंशी

1967 में जनसंघ से गंगाराम

1957 में कांग्रेस से विश्वनाथ आयाचित

बड़नगर विधानसभा सीट

बड़नगर विधानसभा सीट सामान्य सीट है, 2003, 2008, 2013 लगातार तीन विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने दर्ज की थी, लेकिन 2018 में प्रत्याशी का चेहरा बदल देने से बीजेपी यहां कांग्रेस से मात खा गई। बड़नगर विधानसभा सीट पर राजपूत और ब्राह्मण समाज का दबदबा है, बीजेपी यहां ब्राह्मण वोटर्स को लुभाने का प्रयास करती है।

2018 में कांग्रेस से मुरली मोरवाल

2013 में बीजेपी से मुकेश पंड्या

2008 में बीजेपी से शांतिलाल धाबाई

2003 से बीजेपी से शांतिलाल धाबाई

1998 में कांग्रेस से वीरेंद्र सिंह सिसोदिया

1993 में कांग्रेस से सुरेंद्र सिंह सिसोदिया

1990 में कांग्रेस से उदय सिंह पांडे

1985 में कांग्रेस से अभय सिंह

1980 में बीजेपी से उदय सिंह पांडे

1977 में जनता पार्टी से उदय सिंह पांडे

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