भास्कर हिंदी एक्सक्लूसिव: चुनावी चर्चा तक सीमित न रह जाए जातीय जनगणना, जानिए पहले किस किस सरकार में क्या क्या हुआ?

  • जातीय जनगणना या सियासी बात
  • नीतीश की जातीय जनगणना में 63 फीसदी ओबीसी
  • जातीय सर्वे कराकर बिहार देश का पहला राज्य बना

Bhaskar Hindi
Update: 2023-10-07 09:23 GMT

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। आजादी के आठ दशक बाद जब हम सभी भारतवासी आजादी का अमृत महोत्सव बना रहे है। तब बात किसी नेता के खलनायक और मसीहा बनने की नहीं है जब जातीय जनगणना की बात देश में पुरजोरी से उठ रही हो। एक तरफ हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गरीबी को ही सबसे बड़ी जाति बता रहे है, दूसरी तरफ देश के अलग प्रदेशों से राज्यों में जातीय जनगणना कराने की बात की जा रही है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राज्य में जातीय जनगणना की बात कह रह है वहीं कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी छत्तीसगढ़ में एक जनसभा को संबोधित करते हुए दोबारा सत्ता में आने पर जातीय जनगणना का वादा कर गई। इससे पहले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व सांसद राहुल गांधी जिसकी जितनी हिस्सेदारी उसकी उतनी भागीदारी की बात दोहरा रहे हैं। कर्नाटक सरकार भी जातीय सर्वे कराने की फिराक में है। इससे पहले ये नारे बहुजन समाज पार्टी की रैलियों, सभाओं, प्रदर्शन में गूंजते हुए सुनाई देते। बीएसपी के संस्थापक कांशीराम हमेशा ये बात कहते थे। धार्मिक आधार पर जिस हिंदू गरीब हिस्सेदारी की बात पीएम मोदी कर रहे है, उस हिस्सेदारी की बात बहुजन भागीदारी के रूप में बीएसपी के पूर्व अध्यक्ष  कांशीराम कर रहे थे। वो कई मौकों पर कहा करते थे कि गरीबी मौका देखकर नहीं बल्कि जाति देखकर आती है। ऐसे में गरीबी से ज्यादा अहम जाति हो जाती है। ये बात संविधान निर्माता डॉ बी आर अंबेडकर ने अपने खुद का उदाहरण देते हुए भी कही थी कि अमीर और शिक्षित बनने पर भी जाति पीछा नहीं छोड़ती। 

बिहार की गठबंधित नीतीश सरकार द्वारा जारी जातीय जनगणना की रिपोर्ट के बाद अब एक बार फिर जातीय जनगणना का जिद्द बाहर आने लगा है। वैसे आपको बता दें जातीय जनगणना जारी कर बिहार देश का पहला राज्य बन गया। और सियासी जंग में जातीय सर्वे की बात तेजी से हो रही है।  जातीय जनगणना के साथ साथ तीन दशक पुरानी मंडल और कमंडल की राजनीति शुरू हो गई है।  जातीय जनगणना रिपोर्ट को मंडल रिपोर्ट 2 कहा जा रहा है। बिहार सीएम नीतीश कुमार जातीय सर्वे को बीजेपी को परेशान करने वाला और मंडल पार्ट 2 बता रहे है। बिहार की जातीय जनगणना को बीजेपी के तमाम नेता भ्रामक बता रहे है। वहीं विपक्षी गठबंधन के नेता केंद्र सरकार पर जातिगत जनगणना कराए जाने का दबाव बढ़ा रहे है।

देश में पिछड़ी जातियों के आरक्षण के लिए 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशें लागू की गई थीं। अब 33 साल बाद आर्थिक स्थिति भांपने के बहाने पिछड़ी जातियों की जनगणना की मांग चुनावी मुद्दा बन गया है। इसमें राजनीतिक आर्थिक सामाजिक और शैक्षणिक हिस्सेदारी की मांग भी जोर पकड़ रही है।  बिहार में आई रिपोर्ट से देशभर की सियासत  गरमा गई है। खासतौर पर उत्तर भारत की , क्योंकि इस क्षेत्र की राजनीति अधिकतर जाति पर टिकी रहती है।  कांग्रेस के साथ साथ विपक्ष का इंडिया गठबंधन भी जातीय जनगणना को चुनावी मुद्दा बनाने में जुटा है। एक तरह से कहा जाए तो विपक्ष के हाथ जातीय जनगणना का जादू हाथ लग गया है।और तमाम विपक्षी दल ओबीसी और सामाजिक न्याय का कार्ड खेलने की तैयारी में है। राजनीतिक गलियारों में नीतीश कुमार के जातीय सर्वे को 2024 के चुनाव का ट्रम्प कार्ड माना जा रहा है।

आपको बता दें देश में आजादी के बाद अभी तक जो भी सरकारी योजनाएं संचालित होती आ रही हैं, वे 1931 की जातीय जनगणना के आधार पर लागू हो रही हैं। क्योंकि देश में आखिरी बार 1931 में जातीय जनगणना हुई थी, और आंकडे़ जारी किए गए थे। बाद में 1941 में भी जातीय जणगणना हुई थी लेकिन आंकड़ें सार्वजनिक नहीं किए। उसके बाद 1951 में जातीय जनगणना की बात को तत्कालीन सरकार ने समाज का ताना बाना बिगड़ने की बात कहकर टाल दिया था। लेकिन 1931 में जारी जातीय जनगणना अर्थात करीब 92 साल पुरना आंकड़ों के मुताबिक देश में 52 फीसदी पिछड़ा वर्ग है। लेकिन हाल ही में बिहार में जारी जातीय सर्वे के मुताबिक करीब 63 फीसदी ओबीसी आबादी है। 

1953 में भी ओबीसी जातियों की पहचान करने के लिए काका कालेलकर कमीशन बना था, इस आयोग ने 2399 पिछड़ी जातियों की पहचान की थी। लेकिन कई खामियों के कारण आयोग की सिफारिशों लागू नहीं किया गया। 20 दिसंबर 1978 को मोरारजी देसाई सरकार ने पिछड़ी जातियों को आरक्षण देने के लिए  मंडल आयोग का गठन किया था।  वर्तमान समय में ओबीसी को जो 27 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है, वह 1979 में बीपी मंडल की अध्यक्षता में गठित मंडल कमीशन की सिफारिशों के आधार पर मिल रहा है। इस आयोग ने 1980 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की सिफारिशें की। इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट में ओबीसी आबादी को 52 फीसदी बताया। और पिछड़ा वर्ग को सरकारी नौकरी में  27 फीसदी आरक्षण मिल रहा है। 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार ने मंडल आयोग की केवल दो सिफारिशें लागू की थीं। इसमें ओबीसी वर्ग को केंद्र सरकार की नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण और दूसरा, केंद्र सरकार के उच्च शिक्षा संस्थानों के एडमिशन में ओबीसी का 27 फीसदी आरक्षण। बाकी सिफारिशें अभी तक लागू नहीं की गई हैं। जबकि मंडल कमीशन ने अपनी रिपोर्ट के अध्याय 13 में कुल 40 पॉइंट में सिफारिशें की थीं।

ओबीसी आरक्षण को लागू करने के पीछे वीपी सिंह की भी मजबूरी बताई जाती है। क्योंकि दिसंबर 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में जनता दल की सरकार बनी थी। ओबीसी नेताओं ने सरकार पर मंडल कमीशन पर आगे बढ़ने का दबाव बनाना शुरू किया। 25 दिसंबर 1989 को सरकार ने देवीलाल की अगुआई में एक कमेटी का गठन किया। बाद में वीपी सिंह और देवीलाल के बीच टकराव हुआ। वीपी सिंह ने अपनी सरकार पर मंडराते खतरे और मध्यावधि चुनाव की आशंका को देखते हुए 7 अगस्त 1990 को सरकारी नौकरियों में ओबीसी समुदाय के लिए 27 फीसदी आरक्षण लागू करने की घोषणा कर दी। यानि वीपी सिंह ने देवीलाल के बढ़ते कद को रोकने के लिए मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू की थीं।

आयोग की रिपोर्ट के विरोध में देशभर में विरोध-प्रदर्शन हुए थे। 2011 में कांग्रेस की यूपीए सरकार ने भी सामाजिक-आर्थिक जनगणना करवाई थी, लेकिन इसके आंकड़े जारी नहीं किए थे। 2017 में सबकैटेगराइजेशन के संबंध में जस्टिस रोहिणी कमीशन भी बनाया गया था। आयोग ने इसी साल जुलाई में एक रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी थी। हालांकि, यह रिपोर्ट अभी सार्वजनिक नहीं की गई है।

आपको बता दें ओबीसी के तमाम  नेता जो इस वर्ग की राजनीति करते है, उनकी ओर से समय समय पर दावा किया जाता रहा है कि जिस पिछड़े वर्ग की जनसंख्या को 1931 की जनगणना के मुताबिक बताया जाता है, वह उससे अधिक है।  हाल ही में बिहार सरकार के द्वारा जारी किए जातीय सर्वों के आंकड़ों में राज्य की कुल जनसंख्या 13.07 करोड़ से ज्यादा है, जिसमें से अत्यंत पिछड़ा वर्ग 36 प्रतिशत,अन्य पिछड़ा वर्ग 27.13 प्रतिशत है। यानि राज्य की 63 प्रतिशत जनसंख्या पिछड़ी जातियों की है। 

वीपी सरकार द्वारा मंडल आयोग की दो सिफारिश लागू कर देने के बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए, सामान्य वर्ग के नेताओं ने विरोध प्रदर्शन किए। आरक्षण विरोधी आंदोलन बने, आरक्षण विरोधी आंदोलन को देखते हुए कांग्रेस ने वीपी सरकार के फैसले का खुलकर विरोध किया, वहीं बीजेपी ने अपने आपको इससे अलग कर लिया। लेकिन अब 33 साल बाद बदलते राजनीतिक परिदृश्य के चलते कांग्रेस एक बार फिर जातीय जनगणना के पक्ष में खड़ी नजर आ रही है। और जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी और भागीदारी की बात करते हुए नजर आ रही है। जबकि कांग्रेस ने एक लंबे अरसे तक देश में सरकार संभाली है।

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