लोकसभा चुनाव 2024: 9 बार से लगातार जीत रही है भाजपा, जानिए भोपाल सीट का चुनावी इतिहास
- भोपाल लोकसभा सीट पर जारी है बीजेपी का विजयीरथ
- आपातकाल के बाद जनसंघ के मुस्लिम प्रत्याशी ने भी कांग्रेस को हराया
- 1999 में भाजपा की फायर ब्रांड नेता उमा भारती ने चुनाव जीता
डिजिटल डेस्क, भोपाल। मध्यप्रदेश के भोपाल संसदीय क्षेत्र को भाजपा का गढ़ कहा जाता है। भोपाल लोकसभा सीट पर करीब तीन दशकों से भाजपा का विजयरथ चल रहा है। कांग्रेस ने भाजपा को पछाड़ने के लिए कई बड़े दिग्गजों को चुनावी मैदान में उतारा, लेकिन उन्हें हर बार हार का सामना करना पड़ा। वर्तमान में यहां से भाजपा नेता साध्वी प्रज्ञा ठाकुर सांसद हैं। आइए जानते हैं कैसा रहा है भोपाल का चुनावी इतिहास?
भोपाल का चुनावी इतिहास
आजादी के 10 साल बाद भोपाल में लोकसभा का पहला चुनाव हुआ। साल 1957 के पहले चुनाव में कांग्रेस की प्रत्याशी मैसूना सुल्तान ने चुनाव जीता और वे सांसद बनी। मैसूना सुल्तान ने 1962 के आम चुनाव में भी अपनी सांसदी बरकरार रखते हुए कांग्रेस को जीत दिलाई। 1967 में मैसूना सुल्तान चुनाव हार गईं और भारतीय लोकदल के प्रत्याशी जे आर जोशी सांसद बने। साल 1971 में कांग्रेस की वापसी हुई और शंकर दयाल शर्मा खुशीलाल वैद्द सासंद बने। आपातकाल हटने के बाद साल 1977 में लोकसभा चुनाव हुए। कांग्रेस विरोधी लहर के चलते भारतीय लोकदल के प्रत्याशी आरिफ बेग ने जीत दर्ज की और वे सांसद बने। साल 1980 में शंकर दयाल शर्मा ने कांग्रेस को वापसी दिलाई और वे दोबारा सांसद बने। 1984 में कांग्रेस ने जीत दर्ज की और इस बार के एन प्रधान सांसद बने। साल 1989 में पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की और सुशील चंद्र वर्मा सांसद बने। सुशील चंद्र वर्मा ने अगले तीन लोकसभा चुनाव साल 1991, 1996 व 1998 में अपनी सांसदी बरकरार रखते हुए भाजपा को जीत दिलाई। 1999 में भाजपा से उमा भारती , 2004 और 2009 में भाजपा से कैलाश जोशी, 2014 में भाजपा के आलोक संजर वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने लोकसभा चुनाव जीता है। साध्वी वर्तमान में भोपाल की सांसद हैं।
क्या रहा पिछले चुनाव का रिजल्ट?
कमलनाथ की 15 महीने की सरकार को छोड़ दिया जाए तो 2003 से मध्यप्रदेश में बीजेपी की सरकार है। प्रदेश में करीब दो दशक से सत्ता पर काबिज भाजपा को भोपाल लोकसभा सीट पर मात देना कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण रहा है। कांग्रेस के पुरजोर प्रयास है कि किसी भी तरह से बीजेपी को भोपाल में हराया जाए। अब देखना है कि कांग्रेस का ये सपना कब पूरा होगा।
आपको बता दें 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने बड़ा सियासी दांव खेलते हुए इस सीट से मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को मैदान में उतारा था। उनके सामने भाजपा ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को उतारा था। चुनावी नतीजों में भाजपा प्रत्याशी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने दिग्विजय सिंह को 3 लाख 64 हजार 822 वोटों से करारी शिकस्त दी। इस चुनाव में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को कुल 8 लाख 66 हजार 482 मिले थे। दिग्विजय सिंह को 5 लाख 1 हजार 660 वोट हासिल हुए थे।
भोपाल में पहला चुनाव हारी कांग्रेस
देश में हुए चौथे आम चुनाव में भोपाल सीट से कांग्रेस को पहली बार हार मिली थी। साल 1967 के लोकसभा चुनाव में जगन्नाथराव जोशी ने चुनाव जीता था और पहली बार यहां गैर-कांग्रेसी सरकार बनी थी। जे आर जोशी ने भोपाल से दो बार की सांसद मैमूना सुल्तान को हराया था। जे आर जोशी कांग्रेस की गिनती उस वक्त के कद्दावर नेताओं में की जाती थी। उन्होंने गोवा मुक्ति आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई थी।
शंकर दयाल शर्मा ने कराई कांग्रेस की वापसी
भारतीय जनसंघ से चुनाव हारने के बाद कांग्रेस ने अगले लोकसभा चुनाव में वापसी की। साल 1971 के आम चुनाव में कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बदलकर शंकर दयाल शर्मा को टिकट दिया। उन्होंने चुनाव जीतकर कांग्रेस की दोबरा वापसी कराई। शंकर दयाल शर्मा की गिनती भारत के वरिष्ठ नेताओं में होती है। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी थे। आगे चलकर वह भारत के 9वें राष्ट्रपति बने। इससे पहले भी वह भारत के उप-राष्ट्रपति और की राज्यों के राज्यपाल के तौर पर काम कर चुके थे।
जब जनसंघ के मुस्लिम प्रत्याशी ने कांग्रेस को हराया
देश में हुए छठें लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बड़ी हार का सामना करना पड़ा था। जब आपातकाल हटाया गया था उसके तुरंत बाद ही साल 1977 में आम चुनाव कराए गए थे। इस चुनाव में जनसंघ ने कांग्रेस के शंकर दयाल शर्मा के सामने भोपाल सीट से आरिफ बेग को मैदान में उतारा था। इस चुनाव में खास बात यह थी कि शंकर दयाल शर्मा की लोकप्रियता भोपाल में तब भी बरकरार थी, लेकिन 1977 के चुनाव में जनता में कांग्रेस को लेकर भारी गुस्सा था। आपातकाल के दुष्परिणामों का नतीजा यह रहा कि शंकर दयाल शर्मा जैसे कद्दावर नेता को भी हार का स्वाद चखना पड़ा। हालांकि, उन्होंने साल 1980 में दोबारा चुनाव जीतकर वापसी कर ली थी। इस बार भी उनका मुकाबला आरिफ बेग से था, जहां बेहद करीबी मुकाबले में शंकर दयाल शर्मा ने आरिफ बेग को मात दी।
कांग्रेस काल समाप्त और भाजपा दौर शुरु
आजादी के बाद भोपाल में हुए आम चुनाव के इतिहास में शुरुआती 27 सालों तक कांग्रेस का दबदबा रहा। हालांकि, इस बीच दो चुनावों में कांग्रेस को जनसंघ से हार भी मिली। साल 1984 के आम चुनाव से पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई थी। उनके निधन के बाद देश में आम चुनाव हुए। जनता की सहानुभूति कांग्रेस के प्रति थी। इसी का नतीजा चुनाव के नतीजों में भी देखने को मिला जब कांग्रेस ने 400 सीटों का आंकड़ा पार कर रिकॉर्ड जीत दर्ज की। भोपाल संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी के एन प्रधान को जीत मिली। यह कांग्रेस को भोपाल में मिली आखिरी जीत थी। इसके बाद कांग्रेस इस सीट पर कभी भी चुनाव नहीं जीत सकी।
साल 1989 से भाजपा की जीत का सिलसिला शुरु हुआ, जो अब तक जारी है। 1989, 1991, 1996 व 1998 के चुनावों में भाजपा प्रत्याशी सुशील चंद्र वर्मा यहां से लगातार जीत दर्ज की। इस दौरान उन्होंने बड़े-बड़े दिग्गज नेताओं जैसे मंसूर अली खान पटौदी, के एन प्रधान, कैलाश अग्निहोत्री और आरिफ बेग को हराया। इसके बाद भी इस सीट से भाजपा अलग अलग प्रत्याशियों को मौका देती रही और हर बार भाजपा की जीत हुई।
नवाब पटौदी ने पॉलिटिकल डेब्यू किया तो कपिल देव भी प्रचार के लिए पहुंच गए थे
बता दें कि साल 1991 के आम चुनाव में मंसूर अली खान ने अपने पॉलिटिकल चैप्टर की शुरुआत भोपल संसदीय क्षेत्र से की थी। उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर भोपाल से चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में खास बात यह थी कि उस वक्त के दिग्गज क्रिकेटर कपिल देव भी उनका प्रचार करने के लिए भोपाल पहुंचे थे। हालांकि, नवाब पटौदी चुनाव नहीं जीत सके थे। मंसूर अली खान की गिनती अपने समय के दिग्गज क्रिकेटरों में होती है और वे अंग्रेजी शासन के दौरान पटौदी रियासत के आखिरी शासक भी थे। आज उनकी पहचान बॉलीवुड अभिनेता सैफ अली खान के पिता के रूप में भी की जाती है।
उमा भारती और सुरेश पचौरी का महामुकाबला
देश के 13वें आम चुनाव में भोपाल सीट का चुनाव काफी दिलचस्प था। साल 1999 में यहां से भाजपा ने उमा भारती और कांग्रेस ने सुरेश पचौरी को मैदान में उतारा था। इन दोनों नेताओं की बीच काफी टक्कर का मुकाबला देखने को मिला था। हालांकि, चुनाव के नतीजों में भाजपा प्रत्याशी उमा भारती को धमाकेदार जीत मिली थी। उन्होंने सुरेश पचौरी को कुल 1 लाख 68 हजार 864 वोटों के अंतर से हराया था। इस चुनाव में उमा भारती को कुल 5 लाख 37 हजार 905 वोट मिले थे। वहीं, कांग्रेस के सुरेश पचौरी को 3 लाख 69 हजार 41 वोट मिले थे।
सीएम बनीं उमा तो भाजपा ने 70 के दशक में रहे सीएम को मैदान में उतारा
उमा भारती के चुनाव जीतने के 4 साल बाद ही मध्य प्रदेश के विधान सभा चुनाव हुए थे। जिसमें भाजपा को प्रचंड जीत मिली थी। भाजपा सरकार बनने के बाद भोपाल से सांसद रहीं उमा भारती को सीएम बना दिया गया था। ऐसे में साल 2004 के लोकसभा चुनाव में उमा भारती की जगह प्रदेश के पूर्व सीएम कैलाश जोशी को टिकट दिया गया। जिसके बाद उन्होंने 2004 और 2009 के आम चुनाव में लगातार भाजपा की जीत सुनिश्चित की। बता दें कि कैलाश जोशी 1970 के दशक में मध्य प्रदेश के 9वें सीएम बने थे।