विधानसभा चुनाव 2023: कांग्रेस के गढ़ रायगढ़ को भेदने की तैयारी में जुटी बीजेपी
- छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक राजधानी रायगढ़
- रायगढ़ में चार विधानसभा सीट
- कांग्रेस का मजबूत किला राजगढ़
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में प्रचलित रायगढ़ जिले में चार विधानसभा क्षेत्र लैलूंगा,रायगढ़, खरसिया,धरमजयगढ़ शामिल है। इनमें से दो सीट लैलूंगा और धरमजयगढ़ सीट एसटी के लिए आरक्षित है। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जिले की चारों सीटों पर विजय हासिल की थी। रायगढ़ जिले की सियासी लड़ाई पल में माशा और पल में तोला से ज्यादा खतरनाक हो जाता है। केलो महाआरती आज पूरे छत्तीसगढ़ में रायगढ़ की पहचान बन गया है। इस महाआरती का उद्देश्य स्वच्छता के प्रति लोगों में जनजागरूकता लाना है। केलो आरती रायगढ़वासियों की एकता का प्रतीक बन चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी रायगढ़ में दौरा कर चुके है। पीएम मोदी ने यहां जनसभा को संबोधित करते हुए इलाके में करोड़ों रूपए की परियोजना की सौगात दी।
लैलूंगा विधानसभा सीट
2018 में कांग्रेस से चक्रधर प्रसाद सिदर
2013 में बीजेपी से सुनीति राठिया
2008 में कांग्रेस से हृद्य राम राठिया
2003 में बीजेपी से सत्यानंद राठिया
वन और पहाडि़यों से घिरे इस विधानसभा क्षेत्र की सीमा ओडिशा से लगी है। यहां करीब 40 हजार वोटर राठिया, 30 हजार के आस पास कवंर समाज के वोटर्स है, राठिया और कवंर समुदाय के मतदाता मिलकर यहां की राजनीति तय करते है। 20-20 हजार के आस पास गोंड और उरांव समुदाय के मतदाता है। जो चुनाव में निर्णायक भूमिका में होते है। चुनाव में राठिया समुदाय किंगमेकर की भूमिका में होता है।
रायगढ़ विधानसभा सीट
2018 में कांग्रेस से प्रकाश नायक
2013 में बीजेपी से रोशनलाल
2008 में कांग्रेस से डॉ शक्रजीत नायक
2003 में बीजेपी से विजय अग्रवाल
रायगढ़ विधानसभा सीट सामान्य वर्ग के लिए सुरक्षित है। 1951 में अस्तित्व में आई रायगढ़ विधानसभा पर कांग्रेस शुरू से ही मजबूत स्थिति में रही है। लेकिन मध्यप्रदेश से अलग होकर नवगठित छ्तीसगढ़ में 2003 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर बीजेपी ने पहली बार जीत दर्ज की थी। बीजेपी यहां 2003, और 2013 में चुनाव जीती थी। 2008 और 2018 में कांग्रेस को जीत मिली थी। दोनों ही दलों के भीतर यहां गुटबाजी है। यहां त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलता है।
रायगढ़ में कोयले के भंडार है, जो राज्य को आर्थिक रूप से सहयोग करता है।फिर भी यहां मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। सड़कों की हालत खराब है। पेयजल की समस्या भी है। शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओ का अभाव है।
खरसिया विधानसभा सीट
2018 में कांग्रेस से उमेश पटेल
2013 में कांग्रेस से उमेश पटेल
2008 में कांग्रेस से नंदकुमार पटेल
2003 में कांग्रेस से नंदकुमार पटेल
खमरिया विधानसभा बीजेपी के पितृ पुरूष कहे जाने वाले लखीरम अग्रवाल की कर्मभूमि है। भले ही खरसिया विधानसभा सीट सामान्य सीट है। लेकिन यहां पिछड़े वर्ग के वोटर्स अधिक है। अघरिया, साहू, मारवाड़ी और अग्रवाल समुदाय का यहां प्रभाव है, जो चुनाव में निर्णायक भूमिका में होते है। इलाके में आज भी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।
खरसिया कांग्रेस का वो अभेद किला है जिसे बीजेपी अभी तक भेद नहीं पाई है। 2018 में आईएएस की नौकरी छोड़ बीजेपी की तरफ से चुनाव लड़ने वाले ओपी चौधरी भी यहां से चुनाव हार चुके है, हालांकि इस चुनाव में बीजेपी ने पूरी ताकत झोंक दी थी। खरसिया विधानसभा सीट पर कांग्रेस का उत्साह चरम पर है।
धरमजयगढ़ विधानसभा सीट
2018 में कांग्रेस से लालजीत सिंह राठिया
2013 में कांग्रेस से लालजीत सिंह राठिया
2008 में बीजेपी से ओमप्रकाश राठिया
2003 में बीजेपी से ओमप्रकाश राठिया
धमरमजयगढ़ विधानसभा सीट एसटी के लिए आरक्षित है, इलाका आदिवासी बाहुल्य है, चुनाव में भी यहाीं वर्ग अहम भूमिका निभाता है। राठिया और कंवर समाज के मतदाता सबसे अधिक है। राजनैतिक दल भी इसी समुदाय से प्रत्याशी उतारने में रूचि रखते है। क्योंकि चुनाव में विनिंग फैक्टर भी ये दोनों समुदाय है। धरमजयगढ़ सीट को कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। 2003 में बीजेपी ने यहां पहली बार जीत हासिल की थी। बीजेपी यहां केवल दो बार 2003 और 2008 में चुनाव जीत सकी है।
सीट का 80 फीसदी क्षेत्र जंगल है। यहां के लोग जंगल से ही जीवन यापन करते है। और इसी पर निर्भर रहते है। वन्य जीवों से लोगों को जान खतरा बना रहता है। समस्याओं मे हाथियों का उत्पात ,जिसमें कई लोगों की जान चली गई है। वहीं हाथी फसलों को भी नुकसान पहुंचाते है। शिक्षा , स्वास्थ्य , सड़क औऱ बिजली यहां की प्रमुख समस्या है।
छत्तीसगढ़ का सियासी सफर
1 नवंबर 2000 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के अंतर्गत देश के 26 वें राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना हुई। शांति का टापू कहे जाने वाले और मनखे मनखे एक सामान का संदेश देने वाले छत्तीसगढ़ की सियासी लड़ाई में कई उतार चढ़ाव देखे। छत्तीसगढ़ में 11 लोकसभा सीट है, जिनमें से 4 अनुसूचित जनजाति, 1 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं।
विधानसभा सीटों की बात की जाए तो छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा सीट है,इसमें से 39 सीटें आरक्षित है, 29 अनुसूचित जनजाति और 10 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, 51 सीट सामान्य है। प्रथम सरकार के रूप में कांग्रेस ने तीन साल तक राज किया। राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में अजीत जोगी मुख्यमंत्री बने। तीन साल तक जोगी ने विधानसभा चुनाव तक सीएम की कुर्सी संभाली थी। पहली बार विधानसभा चुनाव हुए और बीजेपी की सरकार बनी। उसके बाद इन 23 सालों में 15 साल बीजेपी की सरकार रहीं। 2003 में 50,2008 में 50 ,2013 में 49 सीटों पर जीत दर्ज कर डेढ़ दशक तक भाजपा का कब्जा रहा। बीजेपी नेता डॉ रमन सिंह का चौथी बार का सीएम बनने का सपना टूट गया। रमन सिंह 2003, 2008 और 2013 के विधानसभा कार्यकाल में सीएम रहें। 2018 में कांग्रेस ने 71 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज कर सरकार बनाई और कांग्रेस का पंद्रह साल का वनवास खत्म हो गया। और एक बार फिर सत्ता से दूर कांग्रेस सियासी गद्दी पर बैठी। कांग्रेस ने भारी बहुमत से जीत हासिल की और सरकार बनाई।