SC ने कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगाई, कमेटी बनाकर मांगी रिपोर्ट, किसान नेता बोले-कमेटी के सभी सदस्य कानून के समर्थक
SC ने कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगाई, कमेटी बनाकर मांगी रिपोर्ट, किसान नेता बोले-कमेटी के सभी सदस्य कानून के समर्थक
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कृषि कानूनों को लेकर सरकार और किसानों में जारी गतिरोध के बीच सुप्रीम कोर्ट ने मसले को सुलझाने के लिए चार सदस्यों की एक कमेटी बनाई है। इनमें अशोक गुलाटी और डॉ. प्रमोद के जोशी एग्रीकल्चर इकोनॉमिस्ट हैं, जबकि भूपिंदर सिंह मान और अनिल घनवट किसान नेता हैं। चारों सदस्यों के पुराने आर्टिकल और इंटरव्यू पर नजर डाले तो पता चलता है कि ये सभी कृषि कानूनों के पक्ष में रहे हैं। ऐसे में कोर्ट के फैसले पर किसान संगठनों ने असहमति जताई है।
देश के किसान कोर्ट के फैसले से निराश
किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि देश के किसान कोर्ट के फैसले से निराश हैं। राकेश टिकैत ने ट्वीट किया, माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित कमेटी के सभी सदस्य खुली बाजार व्यवस्था या कानून के समर्थक रहे है। अशोक गुलाटी की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने ही इन कानून को लाये जाने की सिफारिश की थी। देश का किसान इस फैसले से निराश है। राकेश टिकैत ने कहा कि किसानों की मांग कानून को रद्द करने व न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानून बनाने की है। जब तक यह मांग पूरी नहीं होती तब तक आंदोलन जारी रहेगा। माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का परीक्षण कर कल संयुक्त मोर्चा आगे की रणनीति की घोषणा करेगा।
सरकार दबाव कम करने के लिए कमेटी लाई
किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा, सरकार अपने ऊपर से दबाव कम करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के जरिए कमेटी ले आई। इसका हमने कल ही विरोध किया था। हम प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कमेटी को नहीं मानते हैं। कमेटी के सारे सदस्य कानूनों को सही ठहराते रहे हैं। वहीं किसान नेता दर्शन पाल ने कहा, कल हम लोहड़ी मना रहे हैं जिसमें हम तीन कृषि क़ानूनों को जलाएंगे। 18 जनवरी को महिला दिवस है और 20 जनवरी को गुरु गोविंद सिंह जी का प्रकाश उत्सव है।
कांग्रेस भी कर रही विरोध
सुप्रीम कोर्ट के आज के फ़ैसले पर कांग्रेस मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला का भी बयान आया है। सुरजेवाला ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने जो चिंता ज़ाहिर की उसका हम स्वागत करते हैं। लेकिन जो चार सदस्यीय कमेटी बनाई वो चौंकाने वाला है। ये चारों सदस्य पहले ही काले कानून के पक्ष में अपना मत दें चुके हैं। ये किसानों के साथ क्या न्याय कर पाएंगे ये सवाल है। ये चारों तो मोदी सरकार के साथ खड़े हैं। ये क्या न्याय करेंगे। एक ने लेख लिखा। एक ने मेमेरेंडम दिया। एक ने चिट्ठी लिखी। एक पेटिशनर है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
कृषि कानूनों को चुनौती देती याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने किसान कानूनों के अमल पर रोक लगा दी है। इसके साथ ही कोर्ट ने बातचीत के जरिए मसले के हल के लिए एक कमेटी का गठन किया है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा कि 4 सदस्यीय कमेटी 10 दिन में काम शुरू करे और 2 महीने में रिपोर्ट दे। अगली सुनवाई 8 हफ्ते बाद होगी। बता दें कि पिछले साल सितंबर में सरकार ने इन कृषि कानूनों को संसद से पास कराया था। 22 से 24 सितंबर के बीच राष्ट्रपति ने इन कानूनों पर मुहर लगा दी थी।
तीनों कृषि कानून
पहला कानून का नाम "कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020" है। दूसरा कानून "कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत अश्वासन और कृषि सेवा करार विधेयक, 2020" है, जिसकी अधिक चर्चा कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के विवाद में समाधान के मौजूदा प्रावधानों के संदर्भ में की जा रही है। तीसरा कानून "आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक, 2020" है। इस कानून के जरिए निजी क्षेत्र को असीमित भंडारण की छूट दी जा रही है। इन तीनों कानूनों के विरोध में किसान 26 नवंबर से सड़कों पर डटे हैं। किसान चाहते हैं कि सरकार इन कानूनों को वापस ले।