झारखंड के नतीजों ने बढ़ाईं भाजपा की मुश्किलें, राष्ट्रवादी एजेंडा यहां भी फेल
झारखंड के नतीजों ने बढ़ाईं भाजपा की मुश्किलें, राष्ट्रवादी एजेंडा यहां भी फेल
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। महाराष्ट्र के बाद अब झारखंड में भी भाजपा को मिली हार ने पार्टी नेताओं की चिंता बढ़ा दी है। चुनाव नतीजों ने न केवल भाजपा के राष्ट्रवादी एजेंडे को ढंग से लागू कराने में बाधा खड़ी कर दी है, बल्कि अब उस पर सहयोगी दलों का दबाव भी पहले से कहीं ज्यादा बढ़ेगा। इतना ही नहीं, सोमवार के नतीजों ने बता दिया है कि स्थानीय नेतृत्व उभारने की भाजपा की तमाम कोशिशें भी नाकाम रही है। भाजपा आलाकमान अपनी सहयोगी आजसू को दरकिनार करने के बावजूद झारखंड में अपनी सरकार बनाने को लेकर आश्वस्त नजर आ रहा थी, लेकिन चुनाव परिणामों ने उसका सारा गणित बिगाड़ दिया।
देश में नागरिकता संशोधन कानून लागू होने के बाद यह पहला चुनाव रहा, जिसमें भाजपा को मुंह की खानी पड़ी है और विपक्षी JMM गठबंधन को बहुमत मिला है। ऐसे में अब राष्ट्रवादी एजेंडे को ढंग से लागू कराने की चुनौती भी भाजपा के सामने आ खड़ी हुई है। बता दें कि मोदी सरकार ने तीन तलाक, जम्मू कश्मीर में धारा-370 हटाने और नागरिकता संशोधन कानून लागू करने जैसे कड़े निर्णय ले चुकी है, जिसका लगातार विरोध जारी है तो गृह मंत्री अमित शाह द्वारा देशभर में एनआरसी लागू करने की घोषणा ने माहौल को और गरम कर दिया है। पार्टी की चिंता इसलिए भी बढ़ गई है कि राज्यों में अब मोदी फैक्टर काम नहीं कर रहा है और उसे झटके पर झटके मिल रहे हैं।
सहयोगी दलों का दबाव और बढ़ेगा
सियासी जानकारों की मानें तो झारखंड के नतीजों के बाद भाजपा पर उसके सहयोगी दलों का दबाव और बढ़ेगा। खासकर बिहार में जहां अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने हैं। बता दें कि महाराष्ट्र चुनाव के बाद लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान ने अपने तल्ख तेवर दिखाए थे तो हाल ही में जदयू अध्यक्ष व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साफ किया है कि प्रदेश में एनआरसी किसी कीमत पर लागू नहीं होगा। अकाली दल ने भी नागरिकता कानून और NRC पर अपनी नाराजगी से भाजपा को अवगत करा दिया है।
स्थानीय चेहरा उभारने में विफल रही भाजपा
झारखंड के चुनाव नतीजा से साफ है कि भाजपा आलाकमान स्थानीय चेहरा उभारने में नाकाम रहा है। बता दें कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में क्रमश: देवेन्द्र फड़नवीस, मनोहर खट्टर और रघुबर दास को न केवल पूरे 5 साल मुख्यमंत्री बनाए रखा, बल्कि उन्हें पूरी तरह ‘फ्री हैंड’ भी दिया। इतना ही नहीं, इन राज्यों में इनके असंतुष्टों को भी ठिकाने लगाया, परंतु नतीजा सिफर रहा। भाजपा को सहयोगी दलों को ठिकाने लगाने और सरयू राय, एकनाथ खड़से जैसे अपने लड़ाकू नेताओं को दरकिनार करने का नुकसान भी उठाना पड़ा है।