विदेश से एमबीबीएस डिग्री लेने वाले भारतीय छात्रों के जीवन का सवाल, मुश्किल में पड़ सकती है उनकी पढ़ाई, व्यापम पीड़ित छात्रों पर भी विचार करे बीजेपी सरकार
संकट में छात्रों का भविष्य विदेश से एमबीबीएस डिग्री लेने वाले भारतीय छात्रों के जीवन का सवाल, मुश्किल में पड़ सकती है उनकी पढ़ाई, व्यापम पीड़ित छात्रों पर भी विचार करे बीजेपी सरकार
- गरीब और अमीर में साफ दिखता हैं फर्क
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। रूस यूक्रेन के बीच जारी युद्ध से पैदा हुएं गंभीर हालातों के बीच देश वापस लौट रहे भारतीय छात्रों के बीच पढ़ाई का संकट मंडराता जा रहा है। जैसे तैसे जीवन को बचा कर अपने वतन वापस लौट रहे छात्रों के लिए पढ़ाई संकट के साथ अब आगे भविष्य को लेकर संकट पैदा होते हुए दिखाई दे रहा है। हालांकि इससे बचने के लिए सरकार ने मंगलवार को नेशनल मेडिकल कमीशन से फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट लाइसेंसिएट रेगुलेशन 2021 के नियम जारी करते हुए कहा कि 18 नवंबर, 2021 के बाद एमबीबीएस करने विदेश गए छात्रों को एक एक साल की दो बार इंटर्नशिप करना होगा। जिनमें एक बार जहां पढ़ाई की वहां, दूसरी भारत में।
आपको बता दें दुनिया के किसी भी देश में की गई एमबीबीएस डिग्री को भारत में तभी वेलिड माना जाता है जब वह भारतीय डिग्री के समतुल्य अवधि की हो। इसकी अवधि 54 महीने होना जरूरी है। विदेश से प्राप्त एमबीबीएस डिग्री डॉक्टर को भारत में पंजीकरण और प्रैक्टिस के लिए या फिर भारत में डॉक्टरी लाइसेंस प्राप्त करने के लिए फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट स्क्रीनिंग टेस्ट को पास करना होता है। हालांकि रूस यूक्रेन युद्ध के बीच वापस लौट रहे एमबीबीएस छात्रों के बाद यह चर्चा तेज हो गई हो गई है कि ये छात्र अपने निजी फायदे के लिए दूसरे देश में पढ़ाई करने गए थे। जिसमें सरकार और समाज का कोई हित नहीं था। लेकिन देश के नागरिकों का जीवने बचाने के उद्देशय के चलते भारत यूक्रेन से हर भारतीय छात्र को निकालने में प्रयासरत है।
अपने निजी हित के लिए विदेशों में डिग्री करने गए धनवान छात्रों के लिए केंद्र सरकार अब देश में कई कॉलेजों मे दाखिला दिलाने की तैयारी में है। इसके लिए केंद्र सरकार अब फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट लाइसेंसिएट रेगुलेशन (एफएमजीएल) अधिनियम में संशोधन करने में जुटी है। यूक्रेन में 6 साल में एमबीबीएस डिग्री होती है उसके बाद 2 साल इंटर्नशिप होती है। ऐसे में पढ़ाई होती है तो हजारों बच्चों का भविष्य संकट में पड़ सकता है। हालांकि विदेश से लौट रहे एमबीबीएस छात्रों को सरकारी कॉलेज में दाखिल नहीं मिल सकता लेकिन निजी डीम्ड कॉलेज में प्रवेश मिलने की उम्मीद है।
सबसे बड़ा सवाल, भगवान नहीं होती कमेटियां
मध्यप्रदेश में व्यापम मामलों की बात करें तो प्रदेश के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों, संचालनालय और व्यापम स्तर पर बनी जांच कमेटियों ने हजारों की तादाद में गरीब छात्रों पर आरोप लगाकर उन्हें पुलिस और कानून के शिकंजे में फंसा दिया जो एक दशक से अधिक समय के बाद भी आज जीवन की जंग लड़ रहे। बीजेपी की जांच और कांग्रेस की कानूनी चाल में फंसे हजारों पीड़ित गरीब छात्रों का भविष्य संकट की ढलान पर खड़ा है। चूंकि विदेशों में पड़ने वाले धनवान छात्रों की तरह इनका सामाजिक राजनीतिक रसूखदार और नेतृत्वकर्ता सरकार पर सवाल और निशाना नहीं साध सकता, इसके लिए ऐसे गरीब पिछड़े छात्रों को हुक्मरानों ने न्याय के लिए न्यायालय की देहरी पर छोड़ दिया है। जबकि जिम्मेदार और समझदार जानते है कि सरकार और सरकार की एजेंसियों से लड़ना जीतना गरीब छात्र के लिए आसान नहीं है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि ऐसे छात्रों के भविष्य का क्या होगा?