- केंद्र से हिरासत में लिए गए अन्य नेताओं को रिहा करने की मांग
- केंद्रशासित प्रदेश में इंटरनेट सुविधाओं को बहाल करने की अपील की
- हिरासत से रिहा होने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का बयान
डिजिटल डेस्क, श्रीनगर। हिरासत से रिहा होने के बाद मंगलवार को जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का बयान सामने आया है। उमर अब्दुल्ला ने केंद्र से हिरासत में लिए गए नेताओं को रिहा करने और केंद्रशासित प्रदेश में इंटरनेट सुविधाओं को बहाल करने की अपील की।
आज बहुत ही अलग दुनिया
232 दिनों में पहली बार ट्वीट करते हुए, उमर ने कहा: "5 अगस्त 2019 से आज बहुत ही अलग दुनिया है।" उन्होंने अपनी रिहाई के सरकारी आदेश और अपनी तस्वीर को अटैच किया। वहीं उमर ने मीडिया से बात करते हुए उमर ने कहा कि इन कठिन परिस्थितियों में महबूबा मुफ्ती और अन्य सभी राजनीतिक और गैर-राजनीतिक नेताओं को रिहा किया जाना चाहिए। इस दौरान उन्होंने कहा कि मैंने सोचा था कि मैं अपनी शर्तों पर ही बात करूंगा लेकिन कोरोना वायरस से हमें एकजुट होकर लड़ना होगा, इस वजह से मैं आपके सामने अपनी बात रखने के लिए आया हूं।
5 अगस्त को लिया गया था हिरासत में
बता दें कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद 5 अगस्त को उमर को हिरासत में ले लिया गया था। इसकी अवधि पूरी होने के बाद पांच फरवरी को उन पर पब्लिक सेफ्टी एक्ट (PSA) लगाया गया था और उनकी हिरासत को बढ़ा दिया गया था। अब जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने अब्दुल्ला के खिलाफ लगाए गए पब्लिक सेफ्टी एक्ट को वापस ले लिया है और उनके रिहाई के आदेश जारी कर दिए हैं। उमर पर आरोप था कि उन्होंने अपने फेसबुक पोस्ट के जरिए लोगों को भड़काने का काम किया था। उनके पिता व नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष डॉ. फारूक अब्दुल्ला को पिछले हफ्ते 13 मार्च को रिहा किया गया था।
इन लोगों पर भी लगाया गया था PSA
उमर अब्दुल्ला और फारूख अब्दुल्ला के अलावा जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के खिलाफ भी पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) को लागू किया था। दोनों की हिरासत बढ़ाए जाने के लिए ये एक्ट लागू किया गया था। इसके अलावा प्रशासन ने पूर्व आईएएस अधिकारी और जम्मू-कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट (JKPM) के प्रमुख शाह फैसल, नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) के महासचिव अली मोहम्मद सागर और PDP नेता सरताज मदनी के खिलाफ भी PSA लगाया था।
क्या है PSA?
1990 के दशक की शुरुआत में जब राज्य में उग्रवाद भड़का तो पब्लिक सेफ्टी एक्ट (PSA) लाया गया था। PSA के तहत हिरासत की एक आधिकारिक समिति समय समय पर समीक्षा करती है और इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। PSA सरकार को 18 साल से ऊपर के किसी भी व्यक्ति को तीन महीने तक बिना मुकदमा चलाए रखने की अनुमति देता है। 2011 से पहले 16 साल से ऊपर के किसी भी व्यक्ति पर PSA लगाया जा सकता था।