बैठक: विपक्षी दलों की मांग, गरीब परिवारों को छह महीने तक प्रतिमाह 7,500 रुपए दे सरकार
बैठक: विपक्षी दलों की मांग, गरीब परिवारों को छह महीने तक प्रतिमाह 7,500 रुपए दे सरकार
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कोरोना वायरस महामारी के कारण देश में उपजे असाधारण हालात पर विचारों का आदान-प्रदान के लिए 22 पार्टियों के नेताओं ने शुक्रवार को यहां एक बैठक की। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अगुवाई में विपक्षी दलों ने आपस में चर्चा के बाद केंद्र सरकार के सामने 11 मांगें रखी। इनमें से पहले गरीब परिवारों को छह महीने के लिए नकद पैसा दिए जाने की मांग की गई है। इसमें कहा गया है कि आयकर दायरे से बाहर आने वाले सभी परिवारों को छह महीने के लिए 7,500 रुपए दिए जाएं। पार्टियों ने सुझाया है कि सबसे पहले 10,000 रुपए दिए जाएं और इसके बाद 5 महीनों में समान किस्तों में ये राशि मजदूरों के परिवारों तक पहुंचाई जाए।
शुक्रवार को कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के निमंत्रण पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से हुई इस बैठक में केंद्र सरकार के आर्थिक पैकेज को नाकाफी बताया गया और इसकी समीक्षा किए जाने की भी मांग की गई। बैठक में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भी हिस्सा लिया। हालांकि उत्तर प्रदेश के दो बड़े दल समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी इसमें शामिल नहीं हुए।
11 सूत्री मांगों में सभी परिवारों को अगले छह महीनों तक प्रति माह 7,500 रुपये प्रत्यक्ष नकद अंतरण, सभी जरूरतमंदों को हर महीने 10 किलोग्राम मुफ्त अनाज, और सभी प्रवासी मजदूरों को उनके पैतृक स्थान तक पहुंचाने के लिए मुफ्त परिवहन जैसी मांगें शामिल हैं। कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने एक बयान को पढ़ा उन्होंने बताया कि समान विचारधारा वाली पार्टियां मानती हैं कि यह समय केंद्र सरकार के लिए न तो शोमैनशिप में संलिप्त होने का है और न वन-अपमैनशिप में ही। यह समय एक बड़े सामूहिक प्रयास का है।
पक्षी दलों ने केंद्र से की ये मांग
- श्रम कानूनों सहित विभिन्न एकतरफा निर्णयों को वापस लिया जाए।
- संशोधित और व्यापक आर्थिक पैकेज लाया जाए जो सच में राहत दे सके।
- संसद के कामकाज और निरीक्षण को तत्काल प्रभाव से बहाल किया जाए।
- कांग्रेस ने कहा कि केंद्र राज्यों के लिए तत्काल आर्थिक पैकेज उपलब्ध कराए।
- केंद्र प्रवासी मजदूरों का मुफ्त परिवहन सुनिश्चित कराए।
- आयकर के दायरे से बाहर लोगों को सरकार छह महीने तक 7500 रुपये प्रति महीने नकद उपलब्ध कराया जाए।
केंद्र समय पर जिम्मेदारी निभाने में असफल
विपक्षी पार्टियों ने कहा कि भारत सरकार को सभी राजनीतिक दलों से एक व्यवस्थित तरीके से हर हाल में संवाद करना चाहिए। उन्होंने मांग की कि सरकार स्थायी समितियों जैसे संसदीय संस्थानों को सक्रिय करे और राज्यों को उचित वित्तीय मदद दे। विपक्ष ने सभी सार्वजनिक स्वास्थ्य कर्मियों, खासतौर से डॉक्टरों, नर्सो, पैरामेडिक्स के साथ ही पुलिस और सुरक्षा बलों के जवानों, सफाईकर्मियों,और पानी-बिजली की आपूर्ति जैसी आवश्यक सेवाओं से जुड़े लोगों के शानदार प्रयासों की सराहना की।उन्होंने कहा कि समान विचारधारा के दलों ने केंद्र सरकार को हमेशा अपना पूर्ण सहयोग दिया है। लेकिन केंद्र समय पर, प्रभावी और संवेदनशील तरीके से अपनी जिम्मेदारी निभाने में विफल हुआ है।
आर्थिक पैकेज क्रूर मजाक बन गया है: सोनिया
बैठक के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि अर्थव्यवस्था की स्थिति बेहद खराब है। हर बड़े अर्थशास्त्री ने यही सलाह दी है कि राजकीय प्रोत्साहन की तत्काल आवश्यकता है। 12 मई को प्रधानमंत्री की बड़े 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा और वित्त मंत्री द्वारा पांच दिनों तक उसकी जानकारियां देते रहना इस देश के लिए एक क्रूर मजाक बन गया है। सोनिया ने कहा, इस महामारी की असल तस्वीर सैकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा कर रहे लाखों प्रवासी मजदूर और उनके बच्चे बयां कर रहे हैं जो बिना पैसे, भोजन या दवाओं के चल रहे हैं और सिर्फ अपने घर जाना चाहते हैं। सोनिया गांधी ने कहा, प्रवासियों, 13 करोड़ परिवारों की सरकार ने बड़ी क्रूरता से अनदेखी की है।
लॉकडाउन से कोई नतीजा नहीं निकला : राहुल गांधी
राहुल गांधी ने कहा कि लॉकडाउन के दो मकसद थे, बीमारी (कोरोना) को रोकना और इसके प्रसार को रोकना लेकिन संक्रमण बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि आज संक्रमण बढ़ रहा है लेकिन हम लॉकडाउन को हटा रहे हैं। इसका मतलब है कि लॉकडाउन को बिना सोचे समझे लागू किया गया और इसने सही परिणाम नहीं दिया। राहुल ने कहा कि लॉकडाउन ने करोड़ों लोगों को भारी नुकसान पहुंचाया है। लेकिन सरकार उनकी मदद नहीं कर रही है और न ही 7,500 रुपये नकद उनके खातों में डाल रही है। अगर उन्हें राशन नहीं दिया जाता है, अगर प्रवासियों और एमएसएमई कामगारों की मदद नहीं की जाती है तो यह भयावह होगा।उन्होंने कहा कि हम पैकेज को स्वीकार नहीं करते हैं, लोग ऋण नहीं बल्कि सहायता चाहते हैं। हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपनी आवाज उठाएं। यह देश के लिए है, पार्टियों के लिए नहीं। अगर कुछ नहीं किया गया तो करोड़ों लोग गरीबी में धकेल दिया जाएंगे।