जानिए गांधी जी की विरासत को आगे ले जाने वाले संत की कहानी
विनोबा भावे जानिए गांधी जी की विरासत को आगे ले जाने वाले संत की कहानी
- गांधी जी को मानते थे मार्गदर्शक
- नहीं बने राजनैतिक व्यक्ति
- मूल नाम था विनायक नरहरि
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। महात्मा गांधी की सोच को आगे लेकर जाने वाले लोगों की हमेशा से कमी खलती रही है। कुछ ही लोग ऐसे दिखे जिन्होंने इस सोच के साथ आगे बढ़ने का सार्थक प्रयास किया। पर जब बात आचार्य विनोबा भावे की होती है तो यहां गांधीवादी सोच का एक महत्वपूर्ण उदाहरण देखने को मिलता है। वह एक महान स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ-साथ प्रसिद्ध गांधीवादी समाज सुधारक के रूप में भी जाने जाते थे। महाराष्ट्र में हुए भूदान आंदोलन ने उन्हें पूरी दुनिया में एक खास पहचान दिलाई थी। बचपन से ही वह पढ़ाई में होशियार थे, गांधीवादी सोच के साथ उन्होंने आध्यात्म की यात्रा शुरू की वहीं जीवन के अंतिम वर्षों में संत के तौर पर जाने गए और आखिर में समाधि ली, उनका पूरा जीवन एक रोमांचक कहानी के रूप में सामने आता है।
मूल नाम था विनायक नरहरि
विनोबा भावे का जन्म महाराष्ट्र के कोंकण इलाके में स्थित गागोदा गांव में 11 सिंतबर 1895 को हुआ था। चितपाव ब्राह्मण परिवार में जन्में विनोबा भावे का मूल नाम विनायक नरहरि भावे था। विनोबा भावे को पिता से विज्ञान, गणित एक विलक्षण सोच का उपहार मिला था। बताया जाता है कि विनोबा पर उनकी मां का खास प्रभाव था, आध्यात्म के प्रति झुकाव और ईश्वर के लिए आस्था उन्हें अपनी मां से मिला था।
मां को मानते थे पहली आधात्मिक गुरू
बचपन से ही विनोबा भावे अपनी माता के साथ धार्मिक शिक्षा लेने में रूचि रखते थे। वह सभी भाई बहनों में मां के सबसे ज्यादा प्यारें थे और अपनी मां द्वारा किए गए धार्मिक कार्यों में दिल से सहयोग करते थे। मां से उन्हें कई सारे विषयों पर ज्ञान मिला इसमें शामिल थे गुरू रामदास, संत ज्ञानेश्वर, तुकाराम, नामदेव, और शंकराचार्य की कथाएं, रामायण, महाभारत की कहानियां और उपनिषदों के ज्ञान।
गांधी जी को मानते थे मार्गदर्शक
विनोबा भावे इंटर की परीक्षा के लिए गर से निकले, मुंबई जाने वाली ट्रेन में भी बैठे, लेकिन आधे रास्ते में अपने मन की सुनने के बाद दूसरी ट्रेन में बैठ कर आधात्मिक यात्रा पर हिमालय रवाना हो गए। अपनी नई यात्रा के दौरान वह काफी भटके, वह लगातार समाचार पत्रों में गांधीजी के बारे में पढ़कर उनसे प्रेरणा लेते रहें उन्हें लगा गांधी जी ही उनके मार्गदर्शक बन सकते हैं। उस वक्त गांधी जी दक्षिण अफ्रीका से वापस आए थे, विनोबा भावे ने गांधी जी को एक पत्र भेजा जिसमें उनसे मिलने की इच्छा जताई, गांधी जी ने भी जवाब देते हुए आमंत्रण भेज दिया और वह तुरंत अहमदाबाद के लिए निकल गए।
नहीं बने राजनैतिक व्यक्ति
आजादी समय लोग उनहें आचार्य और संत के रूप में देखने लगे थे। कहा जाता है गांधी जी के निधन के बाद भी उन्होंने उनकी विरासत को जिंदा रखा, महाराष्ट्र में 1951 के समय हुए भूदान आंदोलन ने उन्हें दुनिया भर में एक खास पहचान दिला दी। गांधी जी के खास होने के बाद भी विनोबा ने कभी राजनिती में दिलचस्पी नहीं ली। उनके द्वारा सर्वोदय समाज की स्थापना की गई। 15 नवंबर 1982 में उन्होंने अन्न जल को त्याग दिया और समाधि मरण को अपना लिया।