गांधी जयंती: बापू ने भागलपुर में अपने ऑटोग्राफ की कीमत रखी थी पांच रुपये
गांधी जयंती: बापू ने भागलपुर में अपने ऑटोग्राफ की कीमत रखी थी पांच रुपये
डिजिटल डेस्क, पटना। महात्मा गांधी को महात्मा बनाने वाला बिहार का चंपारण ही केवल बापू का कर्मक्षेत्र नहीं था। गांधी बिहार के भागलपुर भी आए थे और लोगों को स्वतंत्रता संग्राम के लिए एकजुट किया था। महात्मा गांधी वर्ष 1934 में यहां आए और भूकंप पीड़ितों की ना केवल मदद की थी, बल्कि पीड़ितों के लिए राशि भी इकट्ठी की थी। इस राशि के लिए उन्होंने अपने ऑटोग्राफ लेने वालों से पांच-पांच रुपये की राशि ली थी और फिर पीड़ितों की मदद के लिए उसे सौंप दिया था।
बापू अप्रैल, मई 1934 में यहां आए थे। बिहार में आए भूकंप और कांग्रेस द्वारा चलाए जा रहे राहत कार्यों को देखने के लिए वे सहरसा से बिहपुर होते हुए भागलपुर पहुंचे थे। भागलपुर आने के बाद गांधी दीपनारायण सिंह के घर ठहरे और लाजपत पार्क में लोगों को संबोधित करते हुए भूकंप पीड़ितों की मदद करने और राहत कार्य में सहयोग करने की अपील की थी।
सभा में स्वयंसेवकों ने झोली फैला लोगों से चंदा एकत्र किया था। गांधीवादी विचारक कुमार कृष्णन बताते हैं कि उस सभा में बहुत से लोग गांधी का ऑटोग्राफ लेना चाहते थे। गांधीजी ने पांच-पांच रुपये लेकर ऑटोग्राफ दिया था और इससे एकत्र राशि पीड़ितों की मदद के लिए सौंप दी थी।
भागलपुर के जिला एवं सत्र न्यायाधीश आर.एस. राय ने अपने सरकारी आवास को दिखाते हुए कहा कि यह जो सरकारी आवास है, वह प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी तथा ब्रिटेन से बैरिस्टर की डिग्री प्राप्त करनेवाले दीप नारायण सिंह की निजी संपत्ति रही है, जो उनकी इच्छानुसार जिला न्यायाधीश का आवास बना।
उन्होंने बताया, विशिष्ट वास्तुकला व बनावट के कारण यह भवन बिहार में अनूठा है और यहां महात्मा गांधी भी ठहर चुके हैं। इस भवन के शिल्प-सौंदर्य और ऐतिहासिक महत्ता के कारण इसे हेरिटेज बिल्डिंग की सूची में शामिल करने के लिए सरकार से पत्राचार भी किया है।
गांधी भागलपुर में सबसे पहले एक छात्र सम्मेलन को संबोधित करने पहुंचे थे। 15 अक्टूबर, 1917 को भागलपुर के कटहलबाड़ी क्षेत्र में बिहारी छात्रों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया था। देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद के निर्देश पर बिहारी छात्रों के संगठन का काम लालूचक के रहने वाले कृष्ण मिश्र को सौंपा गया था। बिहारी छात्रों के सम्मेलन की अध्यक्षता महात्मा गांधी ने की थी। अपने संबोधन में महात्मा गांधी ने कहा था, मुझे अध्यक्ष का पद देकर और हिंदी में व्याख्यान देना और सम्मेलन का काम हिंदी में चलाने की अनुमति देकर आप विद्यार्थियों ने मेरे प्रति अपने प्रेम का परिचय दिया है।
कृष्णन कहते हैं कि इस सम्मेलन में सरोजनी नायडू का भाषण अंग्रेजी से हिंदी अनुदित होकर छपा था। यह सम्मेलन आगे चलकर भारत की राजनीति, विशेषकर स्वतंत्रता संग्राम में राजनीति का कैनवास बना, जिससे घर-घर में स्वतंत्रता संग्राम का शंखनाद करना मुमकिन हो सका।
उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन में प्रसिद्ध गांधीवादी काका कालेलकर ने अपने भाषण को राष्ट्रीय महत्व प्रदान कर राष्ट्रभाषा हिंदी की बुनियाद डाली थी। बाद में इसी कटहलबाड़ी परिसर में मारबाड़ी पाठशाला की स्थापना हुई। इस सम्मेलन मंे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिंदी को जनमानस की भाषा कहा था। कृष्णन कहते हैं कि इसकी चर्चा गांधी वांग्मय सहित कई पुस्तकों में है।
इसके बाद, गांधी यहां 12 दिसंबर 1920 को आए थे। यहां उन्होंने टिल्हा कोठी से एक सभा को संबोधित किया था। भागलपुर में महात्मा गांधी की सभा के आयोजन के लिए एक आयोजन समिति का गठन हुआ था। इसके सदस्य दीप नारायण सिंह, शुभकरण चूड़ीवाला, पंडित मेवालाल झा, गजाधर प्रसाद, श्रीहर नारायण जैन और बोध नारायण मिश्र थे।
स्वतंत्रता सेनानी शुभकरण चूड़ीवाला के पुत्र रामरतन चूड़ीवाला ने बताया कि गांधी जी ने भागलपुर के लोगों को संबोधित करते हुए अपने भाषण में कहा था, शैतान को शैतान जैसे गुणों से नहीं हराया जा सकता। केवल ईश्वर ही शैतान को जीत सकता है, इसलिए शैतान (अंग्रेज) जैसी सरकार को सत्य व न्याय से हराना चाहिए।
इसके बाद गांधी दो अक्टूबर, 1925 को भागलपुर में थे और शिव भवन में कमलेश्वरी सहाय के अतिथि बने थे। इस दिन उन्होनंे अपना जन्मदिन भी यहीं मनाया था। भागलपुर में आज भी चर्चित शिव भवन में तब गांधी ने महिलाओं को संबोधित करते हुए पर्दा का त्याग करने, चरखा चलाने, खादी पहनने, बेटियों को शिक्षित बनाने और विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने की अपील की थी।
कमलेश्वरी सहाय के वंशज और अधिवक्ता राजेश सहाय कहते हैं कि कहा जाता है कि गांधी जी की अपील पर महिलाओं ने पर्दा प्रथा त्याग दिया था। उन्होंने बताया कि गांधी ने इस दौरान बिहार अग्रवाल महासभा के प्रांतीय सम्मेलन को भी संबोधित किया था। सम्मेलन में सेठ जमना लाल बजाज और बनारसी प्रसाद झुनझुनवाला भी थे, जिन्हें बिहार में खादी के प्रचार की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।