क्या तालिबान की पंजशीर घाटी पर कब्जा करने की धमकी एक छलावा है?
Afghanistan क्या तालिबान की पंजशीर घाटी पर कब्जा करने की धमकी एक छलावा है?
- क्या तालिबान की पंजशीर घाटी पर कब्जा करने की धमकी एक छलावा है?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। तालिबान ने रविवार को घोषणा की कि उसके सैकड़ों लड़ाके पंजशीर घाटी पर हमला करने जा रहे हैं, जो अहमद मसूद के नेतृत्व में उनके शासन के खिलाफ प्रतिरोध का केंद्र है। आंदोलन ने अपने अरबी ट्विटर अकाउंट पर लिखा, स्थानीय राज्य के अधिकारियों द्वारा इसे शांतिपूर्वक सौंपने से इनकार करने के बाद इस्लामिक अमीरात के सैकड़ों मुजाहिदीन इसे नियंत्रित करने के लिए पंजशीर राज्य की ओर बढ़ रहे हैं।
तालिबान ने बेशक 15 अगस्त को काबुल पर कब्जा करने के साथ ही देशभर में अपना प्रभुत्व स्थापित करने का दावा किया है, मगर अभी तक पंजशीर घाटी पर उसका नियंत्रण नहीं हो पाया है। तालिबान के लिए अपने युद्ध कौशल के लिए जाने जाने वाले पंजशीरियों को खदेड़ना काफी मुश्किल होने वाला है, जो कि तालिबान से भिड़ने के लिए तैयार है। पंजशीर घाटी पर हमला करने के मामले में तालिबान के लिए कुछ ऐसी बाधाएं हैं, जो उसकी लड़ाई को कठिन बना सकती हैं।
सबसे पहले तो पंजशीरी अत्यधिक प्रेरित सेनानी हैं। यहां के लड़ाकों के लिए विख्यात अहमद शाह मसूद प्रेरणाोत हैं। मसूद वह व्यक्ति थे, जिसने 80 के दशक में सोवियत विरोधी जिहाद में अपने योगदान के कारण पूर्व सोवियत संघ को धकेलने या नीचे लाने में मदद की थी। वह आज भी तालिबान विरोधी और खासतौर पर यहां के लोगों के एक प्रेरणादायक प्रतीक बने हुए हैं। अभी भी यहां के लोगों को 9 सितंबर 2001 को तालिबान द्वारा आश्रय दिए गए अल-कायदा द्वारा मसूद की विश्वासघाती हत्या की स्मृति है और उन्हें यह बात काफी चुभती भी है, इसलिए उनके दिल और दिमाग पर बदले की भावनाएं भी हावी रहती हैं। यही बदले की आग उनके लिए एक ऑक्सीजन की तरह है, जो एक अत्यधिक प्रेरित लड़ाकू बल को तालिबान को सबक सिखाने के लिए प्रोत्साहित करती है।
दूसरी बात यह है कि पंजशीरी लोगों में एक बात को ठान लेने की और इसे पूरा करने के लिए व्याप्त एकजुटता है, ज्यादातर ताजिक जातीयता, जो उन्हें एक स्पष्ट पहचान, उद्देश्य और एक आम ऐतिहासिक विरासत देता है-सभी एक दूसरे के साथ तालिबान के खिलाफ अपने बंधन को मजबूत करते हैं, जिसका नेतृत्व ज्यादातर पश्तून आदिवासियों द्वारा किया जाता है।
तीसरी खास बात यह है कि पंजशीरियों का नेतृत्व भी एकजुट है। अहमद मसूद शहीद अहमद शाह मसूद (उनके समर्थक उन्हें शहीद कहते हैं) के बेटे हैं। सामान्य रक्तरेखा या ब्लड रिलेशन प्रतिरोध को निरंतरता प्रदान करने में बहुत मदद करती है। नेतृत्व के अन्य रैंकों में, पूर्व उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह शामिल हैं, जो नवोदित प्रतिरोध के रैली प्रतीक के रूप में उभरे हैं। प्रतिरोध रैंक के अन्य लोगों में पूर्व रक्षा मंत्री बिस्मिल्लाह मोहम्मदी भी शामिल हैं। दो अन्य नाम युवा लड़ाकों हैबतुल्लाह अलीजई और सामी सादात के भी हैं, जिन्हें अपदस्थ और देश छोड़कर भाग चुके राष्ट्रपति अशरफ गनी द्वारा शीर्ष जनरलों के रूप में नियुक्त किया गया था, तालिबान के साथ लड़ाई शुरू होने की स्थिति में सबसे आगे रहने वालों में गिना जा सकता है।
चौथा प्रमुख बिंदु यह है कि तालिबान को पंजशीर घाटी के अत्यंत कठिन इलाके से निपटना होगा, जो लंबी तक गुरिल्ला युद्ध के लिए आदर्श है। रूस और ईरान ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि वे तालिबान के साथ बातचीत के लिए तैयार हैं, लेकिन अफगानिस्तान में एक राजनीतिक परिवर्तन अभी भी प्रगति पर है। अंत में यह तभी संभव हो सकता है जब पंजशीरी जमीन पर तालिबान के खिलाफ एक ठोस जवाबी ताकत के रूप में उभरे, जो एक नए और अधिक समान-संवाद के लिए दरवाजा खोल दे, जिससे एक स्थायी सुलह हो सके।
एएफपी ने पंजशीर के एक अधिकारी के हवाले से अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि पंजशीर घाटी में, अहमद मसूद ने लगभग 9,000 सदस्यों की एक लड़ाकू सेना को इकट्ठा किया है। इससे पहले, अल अरबिया टेलीविजन स्टेशन के साथ एक साक्षात्कार में, अहमद मसूद ने चरमपंथी समूह तालिबान को पंजशीर घाटी का नियंत्रण सौंपने और आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया था, लेकिन उन्होंने बातचीत के लिए अपनी तत्परता व्यक्त की थी।
मसूद ने यह भी स्पष्ट तौर पर कहा है कि वह पंजशीर घाटी का नियंत्रण छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। अल अरबिया के अनुसार, तालिबान ने मसूद को काबुल के उत्तर में स्थित पंजशीर घाटी को छोड़ने के लिए चार घंटे का अल्टीमेटम दिया था।
(यह आलेख इंडिया नैरेटिव डॉट कॉम के साथ एक व्यवस्था के तहत लिया गया है)
इंडिया नैरेटिव
(आईएएनएस)