Neuro-Ocular Syndrome: क्या है न्यूरो-ऑकुलर सिंड्रोम जिससे अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स हैं परेशान? जानें इसके लक्षण
- सुनीता विलियम्स स्पेस में फंसी
- न्यूरो-ऑकुलर सिंड्रोम का हैं शिकार
- जानें क्यों होता है ये सिंड्रोम?
डिजिटल डेस्क, भोपाल। अमेरिका की एस्ट्रोनॉट सुनीता विलियम्स इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के दौरे पर गई थीं लेकिन स्पेसक्राफ्ट में तकनीकी खराबी के चलते अबतक स्पेस में ही फंसी हुई हैं। न्यूज रिपोर्ट के मुताबिक, बहुत लंबे समय से स्पेस में रहने की वजह से विलियम्स को न्यूरो-ऑक्यूलर सिंड्रोम का सामना करना पड़ रहा है। अब आप सोच रहे होंगे आखिर ये कौन सी बीमारी है और इसमें क्या होता है? तो चलिए जानते हैं न्यूरो-ऑक्यूलर सिंड्रोम के बारे में। साथ ही, ये किन लोगों को होती है और इसके लक्षण क्या होते हैं?
क्या है न्यूरो-ऑकुलर सिंड्रोम?
अंतरिक्ष में जाने वाले व्यक्ति के अंदर बहुत सारे बदलाव होते हैं। इनसे निपटने के लिए एस्ट्रोनॉट्स को पहले से काफी अच्छी ट्रेनिंग दी जाती है। लेकिन लंबे समय तक नो ग्रेविटी एरिया में रहने से शरीर में बदलाव आना जाहिर है। लंबे समय के लिए अंतरिक्ष में जाने वाले करीब 50 फीसदी अंतरिक्ष यात्रियों और कम समय के लिए अंतरिक्ष में जाने वाले करीब 25 फीसदी अंतरिक्ष यात्रियों की आंखों पर असर पड़ने लगता है। इनकी आईबॉल में कई बदलाव देखने को मिलते हैं। जिसमें उनकी आंखों में स्वेलिंग आ जाती है। आईबॉल चपटा होने लगता है, आंखों की नसों में पानी की मात्रा बढ़ने लगती है और रेटिना में भी बदलवा होने लगता है। इस कंडीशन को न्यूरो-ऑकुलर सिंड्रोम कहते हैं।
क्यों होता है न्युरो-ऑकुलर सिंड्रोम?
अंतरिक्ष में एस्ट्रोनॉट्स अक्सर लेटे हुए रहते हैं और ग्रैविटी भी नहीं होती है। जिसकी वजह से दिमाग में मौजूद पानी सही से फैल नहीं पता तो दिमाग के आस-पास और आंखों के अंदर पानी का दबाव पड़ने लगता है। दरअसल, हमारे स्कल में ब्रेन होता है जिसे सुरक्षित रखने के लिए एक तरल पदार्थ भी मौजूद होता है। इस तरल (Fluid) को CSF कहते हैं। वहीं, ग्रेविटी न होने की वजह से इसका बहाव सही तरीके से नहीं हो पाता है। जिससे आंखों के अंदर CSF का दबाव बढ़ जाता है और आपके आंखों पर जोर पड़ने लगता है। इसी वजह से ऑप्टिक नर्व और ऑप्टिक डिस्क में स्वेलिंग आ जाती है। रेटिना में बदलाव होता है और आईबॉल चपटी हो जाती है।
न्यूरो- ऑकुलर सिंड्रोम के लक्षण
साफ-साफ देखने में दिक्कत होती है।
लगातार सिर में दर्द बना रहता है। समय के साथ यह बढ़ने लगता है।
शरीर की पोजीशन बदलने पर देखने में परेशानी हो सकती है।
आईबॉल की पोजीशन बदलना, आकार और आंखों के पर्दे में कई सारे बदलाव आना।
कई बार ये सारी परेशानियां धरती पर रहने वाले लोगों को भी होती हैं। जब दिमाग के अंदर दबाव बढ़ जाता है तो इसे इडियोपैथिक इंट्राक्रानियल हाईक्रानियल (IIH) कहते हैं।
डिसक्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारी अलग अलग किताब और अध्ययन के आधार पर दी गई है। bhaskarhindi.com यह दावा नहीं करता कि ये जानकारी पूरी तरह सही है। पूरी और सही जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ (डॉक्टर/ अन्य एक्सपर्ट) की सलाह जरूर लें।