नाटो सम्मेलन: रक्षा खर्च में कटौती से निशाने पर आए प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो, नाटो सदस्यों में अलग-थलग पड़ा कनाडा
- वादे के मुताबिक रक्षा खर्च नहीं कर पाया कनाडा
- ट्रूडो नाटो की बैठक में कनाडा के योगदान पर बात रखेंगे
- अगले 20 वर्षों में सेना पर 73 अरब डॉलर खर्च करेगा कनाडा
डिजिटल डेस्क, वॉशिंगटन। कनाडा नाटो के 32 सदस्य देशों में अलग-थलग पड़ गया है। अमेरिका के एक मीडिया चैनल ने इसकी जानकारी दी। मीडिया चैनल ने दावा करते हुए कहा है कि कनाडा अपने घरेलू रक्षा खर्च को तय सीमा तक खर्च नहीं कर पा रहा है। इसके चलते कनाडा की सेना के कई उपकरण पुराने हो गए हैं और कनाडा की सरकार में अभी रक्षा खर्च प्राथमिकता में भी नहीं है।
नाटो के 32 सदस्य देशों में से 23 देशों ने रक्षा खर्च को लेकर तय लक्ष्यों को हासिल किया है। कनाडा सरकार ने 2024 के अपने बजट में रक्षा खर्च में पाँच सालों में 8.1 अरब अमरीकी डॉलर और 20 सालों में 73 अरब अमरीकी डॉलर खर्च करने की घोषणा की है। इससे कनाडा की रक्षा क्षमताओं को मजबूती मिलेगी।
आपको बता दें राष्ट्रपति जो बाइडेन की अध्यक्षता में नाटो की अहम बैठक वॉशिंगटन में हो रही है। खबरों के मुताबिक यह रिपोर्ट ऐसे समय सामने आई है, जब कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो नाटो की बैठक में शामिल होने के लिए वॉशिंगटन डीसी पहुंचे। कनाडाई प्रधानमंत्री ट्रूडो नाटो की बैठक में कनाडा के योगदान पर बात रखेंगे, जिसमें ऑपरेशन रि-एश्योरेंस भी शामिल है, जो कनाडा की सबसे बड़ी सक्रिय विदेशी सैन्य तैनाती है। साथ ही ट्रूडो यूरो-अटलांटिक क्षेत्र की सुरक्षा, स्थिरता के लिए कनाडा की प्रतिबद्धता भी जाहिर करेंगे।
एक निजी न्यूज चैनल ने अमेरिकी मीडिया की रिपोर्ट के हवाले से लिखा है कि नाटो के 12 संस्थापक सदस्यों में से एक कनाडा ने साल 2014 में रूस के क्रीमिया पर कब्जा करने के बाद सकल घरेलू उत्पाद का 2 प्रतिशत रक्षा पर खर्च करने का वादा किया था। जिसमें कनाडा पीछे छूट गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि नाटो समिट के दौरान बाकी देश कनाडा पर अपने वादे को पूरा करने का दबाव डाल सकते है।
कई न्यूज चैनलों ने रिपोर्ट के हवाले से लिखा है कि पिछले कई वर्षों में, कनाडा 32 सदस्यीय नाटो गठबंधन के बीच अलग-थलग हो गया है। कनाडा घरेलू सैन्य खर्च लक्ष्यों को प्राप्त करने में असफल रहा है, साथ ही नए उपकरणों को फंड देने के लिए तय बेंचमार्क से पीछे छूट गया है। फिलहाल कनाडा के उन लक्ष्यों को हासिल करने की कोई उम्मीद भी नजर नहीं आ रही।