अफगान सरकार के गठन के साथ पाकिस्तान अब वैश्विक प्रासंगिकता के लिए बेकरार
अफगानिस्तान अफगान सरकार के गठन के साथ पाकिस्तान अब वैश्विक प्रासंगिकता के लिए बेकरार
- अफगान सरकार के गठन के साथ पाकिस्तान अब वैश्विक प्रासंगिकता के लिए बेकरार
डिजिटल डेस्क, पेशावर। अफगानिस्तान में वर्तमान घटनाक्रम में पाकिस्तान की भूमिका, जहां अफगान तालिबान ने अशरफ गनी सरकार को हटा दिया है और सभी विदेशी सैनिकों को बाहर निकालना सुनिश्चित किया है, अमेरिका और अफगान तालिबान के बीच दोहा में ऐतिहासिक शांति समझौते से लेकर वर्तमान परि²श्य तक महत्वपूर्ण रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रशासन ने हालांकि दोहा समझौते के बाद पाकिस्तान को खास महत्व नहीं दिया है और इसने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ एक भी टेलीफोन बातचीत करने से भी परहेज किया है। वहीं दूसरी ओर, इस्लामाबाद ने अफगानिस्तान में आगामी भविष्य के विकास में धीरे-धीरे और चालाकी से अपने क्षेत्रीय महत्व और वैश्विक प्रासंगिकता को पुन: प्राप्त कर लिया है और वह युद्धग्रस्त देश में प्रमुख भूमिका निभाने वाले खिलाड़ी के तौर पर उभरा है।
फिलहाल पाकिस्तान अमेरिका, ब्रिटेन, संयुक्त अरब अमीरात, तुर्की, जर्मनी, रूस, चीन और अन्य देशों के साथ अफगानिस्तान में सरकार के गठन के माध्यम से भविष्य की विकास प्रक्रिया की योजना बनाने, चर्चा करने और वैश्विक संस्थाओं के माध्यम से मानवीय सहायता और अन्य देशों के साथ सक्रिय परामर्श कर रहा है। सोवियत युद्ध के बाद से तालिबान के साथ पाकिस्तान के ऐतिहासिक संबंधों ने तालिबान को अमेरिका के साथ टेबल वार्ता में सुविधा प्रदान करने, मजबूर करने और यहां तक कि प्रभावित करने के लिए इसे अत्यंत प्रासंगिक और महत्वपूर्ण बना दिया है। अब अफगानिस्तान में तालिबान सरकार के आने और मानवीय संकट, स्वास्थ्य संकट, खाद्य संकट, जल संकट जैसे गंभीर खतरों के करीब आने के साथ, विद्रोहियों को भी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से मदद के लिए पुकारने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान (आईईए) के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से देश में बिगड़ते मानवीय संकट से निपटने और प्रबंधन के लिए सहायता और आपूर्ति के साथ मदद करने का आह्वान किया है, जो जल्द ही एक व्यापक मानव आपदा में बदल सकता है। जैसा कि वैश्विक दानदाता और देश सहायता के साथ अफगानिस्तान तक पहुंचने के तरीकों की ओर देखते हैं, पाकिस्तान सबसे अच्छा व्यवहार्य विकल्प प्रतीत होता है, क्योंकि तोरखम सीमा के माध्यम से पाकिस्तान से अफगानिस्तान तक भूमि मार्ग ने लंबे समय तक लगातार आपूर्ति के लिए सबसे सस्ते मार्ग के रूप में काम किया है। पाकिस्तान की तोरखम सीमा कम से कम दो दशकों तक नाटो आपूर्ति का मुख्य रहा है।
इसके अलावा, तालिबान के तहत नई सरकार की स्थापना की घोषणा से कुछ दिन पहले पाकिस्तान की शीर्ष जासूसी एजेंसी इंटर-सर्विस इंटेलिजेंस (आईएसआई) के प्रमुख फैज हमीद की अफगानिस्तान यात्रा ने भी देश के तालिबान के साथ मौजूदा घनिष्ठ संबंधों और प्रतीकात्मक प्रासंगिकता की पुष्टि की है। पाकिस्तान का कहना है कि वह एक समावेशी सरकार के गठन के माध्यम से अफगानिस्तान में स्थिरता चाहता है। लेकिन पश्चिमी दुनिया के लिए, पाकिस्तान अफगानिस्तान में अपने गुप्त लेकिन सक्रिय पैंतरेबाजी और रणनीतिक गेमप्ले के माध्यम से एक किंग मेकर के रूप में उभरा है।
(ग्राउंड जीरो से हमजा अमीर की रिपोर्ट)
(आईएएनएस)