तालिबान के कब्जे के बाद भारत के साथ रिश्तों पर कहां कहां होगा असर?
'तालिबानिस्तान' और भारत तालिबान के कब्जे के बाद भारत के साथ रिश्तों पर कहां कहां होगा असर?
- तालिबान के कैसे होंगे भारत से रिश्ते?
डिजिटल डेस्क, दिल्ली। भारत और अफगानिस्तान में हमेशा मित्रवत संबंध रहे। पर अब समीकरण बदल चुके हैं। तालिबान के कब्जे के बाद भारत और तालिबान के बीच रिश्ते कैसे होंगे इस पर सबकी नजरें टिकी हैं। हालांकि भारत फिलहाल वेट एंड वॉच की स्थिति में है। पर इतिहास के पन्ने गवाह हैं कि तालिबान और भारत के बीच हमेशा तल्खी रही है। तल्खी की वाजिब वजहें भी हैं। पर ये तल्खी जारी रही तो दोनों देशों के आपसी रिश्तों पर खासा फर्क पड़ेगा।
इसलिए है रिश्तों में तल्खी!
भारत के अब तक तालिबान के साथ ठीक रिश्ता न होने की बड़ी वजह ये है कि भारत अफगानिस्तान में भारतीय मिशनों पर हुए हमलों के लिए तालिबान को जिम्मेदार मानता हैं। तारीख 24 दिसंबर 1999 को काठमांडू से दिल्ली के लिए उड़े आईसी 814 विमान को हथियारबंद आतंकवादियों ने हाइजैक कर लिया था। इस विमान में 176 यात्री और 15 क्रू मैंबर सवार थे। भारत सरकार ने इन यात्रियों की जान बचाने के लिए तीन आतंकियों मसूद अजहर, उमर शेख और अहमद जरगर को छोड़ा था। यह घटना भी भारत को अच्छी तरह याद हैं। भारत का तालिबान के साथ बात न करने का प्रमुख कारण था कि ऐसा करने से अफगान सरकार से रिश्तों में दरार आ जाती। जो अभी तक काफी मित्रवत रही। लेकिन अब परिस्थियां बदल गयीं हैं।
सच्चाई ये है कि पिछले कुछ सालों में भारत सरकार अफगानिस्तान में कई बड़ी परियोजनाओं में लगभग तीन अरब डॉलर का निवेश कर चुकी है। ईरान का चाबहार बंदरगाह भी ऐसी ही परियोजना है। जो भारत के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। इस बंदरगाह के माध्यम से भारत को मध्य एशिया से जुड़ने का सीधा रास्ता मिल जाएगा। इसमें पाकिस्तान का कोई दखल नहीं होगा। खासकर अफगानिस्तान और रूस से भारत का जुड़ाव और बेहतर होगा। चाबहार के खुलने से भारत, ईरान और अफगानिस्तान के बीच व्यापार को बड़ा सहारा मिलेगा। इस बंदरगाह के जरिए,भारत अब बिना पाकिस्तान गये ही अफगानिस्तान और यूरोप से जुड़ सकेगा। अभी तक भारत को अफगानिस्तान जाने के लिए पाकिस्तान से होकर जाना पड़ता था। लेकिन अब भारत का इसको लेकर क्या रूख होगा? क्योंकि यदि भारत तालिबान पर सख्त होता है तो इतनी बड़ी परियोजना के विकास पर प्रभाव पड़ सकता हैं।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने सोमवार को कहा कि अफगानिस्तान की स्थिति पर उच्च स्तर पर लगातार नजर रखी जा रही है। सरकार अफगानिस्तान में भारतीय नागरिकों और अपने हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सभी कदम उठाएगी। पिछले कुछ दिनों के दौरान काबुल में सुरक्षा स्थिति काफी खराब हो गई है। इसमें तेजी से बदलाव हो रहा है। कई ऐसे अफगान हैं जो पारस्परिक विकास, शैक्षिक और लोगों से लोगों के बीच के संपर्क के प्रयासों को बढ़ावा देने में भारत के सहयोगी रहे हैं।
भारत की आगे की रणनीति क्या होगी?
पाकिस्तान और चीन से भारत के रिश्तों में पहले से खटास है। अगर हमारा "दोस्त" भी उनकी गोद में जा बैठा तो निश्चित ही यह भारत के लिहाज से अच्छा नहीं होगा। फिलहाल, बहुत आशंकाएं और सवाल हैं।
बीबीसी को दिए गए एक इंटरव्यू में शांति मैरियट डिसूजा ने बताया कि भारत इस बात को समझ ले कि अब तालिबान का काबुल पर कब्जा हो गया हैं। ऐसे में भारत के पास के दो रास्ते हैं- या तो भारत अफगानिस्तान में बना रहे या फिर सब कुछ बंद करके 90 के दशक वाले रोल में आ जाए। अब भारत अगर दूसरा रास्ता अपनाता हैं। तो पिछले दो दशक में जो कुछ काम हुआ वो सब खत्म हो जाएगा। शांति मैरियट डिसूज़ा, कौटिल्य स्कूल ऑफ़ पब्लिक पॉलिसी में प्रोफ़ेसर हैं। अफगानिस्तान में उन्होंने काम किया है और उस पर उन्होंने पीएचडी भी की है।
तालिबान के साथ पाकिस्तान और चीन, इस चुनौती से कैसे निपटेगा भारत?
पाकिस्तान और चीन तालिबान को खुलकर समर्थन कर रहें हैं। दोनों ही देश तालिबान के लगातार संपर्क में भी हैं। इस तरह तालिबान के साथ पाकिस्तान और चीन कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं। वैसे तालिबान कहता रहा है कि पहले की तरह वह भारत के साथ संबंध बनाए रखने का इच्छुक है। हाल के कुछ समय में पाकिस्तान और चीन के साथ भारत के संबंध काफी अच्छे नहीं रहे हैं। इन दोनों के साथ "हमारे एक दोस्त" मुल्क का खड़ा हो जाना निश्चित ही भारत के लिए बुरी खबर होगी। भारत कभी नहीं चाहेगा कि वह क्षेत्र में अपने एक सहयोगी को गंवा दे। भारत सहित कई देश तालिबान के अफगानिस्तान की सत्ता पर इतनी जल्दी काबिज होने से चकित हैं।
कश्मीर को लेकर बढ़ी चिंताएं
देश मंत्रालय में पूर्व सचिव अनिल वाधवा के मुताबिक अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा होना भारत के लिए सामरिक दृष्टि से बड़ा "झटका" है। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान के संदर्भ में भारत को फिलहाल "प्रतीक्षा करने और नजर बनाए रखने" की रणनीति पर अमल करना चाहिए। वाधवा के मुताबिक, शुरुआती संकेतों से लगता है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई इस वक्त हक्कानी नेटवर्क के जरिये तालिबान पर नियंत्रण किए हुए है। भारत का आगे का कदम इस बात पर निर्भर करेगा कि तालिबान भविष्य में कैसा संबंध स्थापित करेगा और क्या वह आतंकी हमलों के लिए अफगानिस्तान का उपयोग करेगा?