मंगल ग्रह पर उतरेगा NASA का रोवर, वायुमंडल में एंट्री के बाद 7 मिनट का समय लगेगा, देखें लाइव
मंगल ग्रह पर उतरेगा NASA का रोवर, वायुमंडल में एंट्री के बाद 7 मिनट का समय लगेगा, देखें लाइव
- अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा का मार्स पर्सेवरेंस रोवर की लैंडिंग
- धरती पर नासा वैज्ञानिकों को जानकारी 11 मिनट 22 सेकेंड के बाद मिलेगी
- लैंडिंग में करीब 7 मिनट का समय लगेगा
डिजिटल डेस्क, वॉशिंगटन। अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा का मार्स पर्सेवरेंस रोवर रात 1 से 2 बजे (3:55 p.m. EST) के बीच मंगल ग्रह पर जेजेरो क्रेटर में लैंड करेगा। मंगल ग्रह के वायुमंडल में एंट्री, वहां से रोवर का डिसेंट और उसके बाद लैंडिंग में करीब 7 मिनट का समय लगेगा। मंगल ग्रह पर पर्सेवरेंस की लैंडिंग की हर जानकारी धरती पर नासा वैज्ञानिकों को 11 मिनट 22 सेकेंड के बाद मिलेगी।
इस मिशन में रोवर पत्थर के सैंपल इकट्ठे करेगा जिसे करीब एक दशक में विश्लेषण के लिए पृथ्वी पर वापस लाया जाएगा। जेज़ीरो क्रेटर बोल्डर, चट्टानों, रेत के टीलों से भरा है। यह क्रेटर फ्लोरिडा के लेक ओकीचोबी जितना बड़ा नहीं है। सतह तक पहुंचने के लिए, इस अंतरिक्ष यान को मंगल ग्रह के धुंधले आसमान को पार करना होगा। यह इस मिशन का सबसे रिस्की पार्ट होगा। इसमें करीब सात मिनट का समय लगेगा। यहीं सात मिनट तय करेंगे कि मिशन सफल हुआ या नहीं। हालांकि ब्रांड-न्यू गाइडेंस और पैराशूट-ट्रिगरिंग तकनीक यान को सुरक्षित रखने में मदद करेगी।
पहली बार कैमरे में कैद होगा पैराशूट के साथ नीचे आता रोवर
कैमरे लैंडिंग का कलर वीडियो शूट करेंगे, जबकि माइक्रोफोन साउंड को कैप्चर करेंगे। यह पहली बार होगा जब मंगल ग्रह पर पैराशूट के साथ नीचे आते किसी रोवर का वीडियो हमें देखने को मिलेगा। इसके अलावा रोवर पतले मार्टियन वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड से ऑक्सीजन का उत्पादन करने का भी प्रयास करेगा। इस ऑक्सीजन का उपयोग किसी दिन अंतरिक्ष यात्री के सांस लेने के साथ-साथ रॉकेट प्रोपेलेंट बनाने के लिए किया जा सकता है।
नासा 2024 तक अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर दोबारा भेजना चाहता है और 2030 के दशक में उन्हें वहां से मंगल ग्रह पर भेजना चाहता है। इसके लिए अंतरिक्ष एजेंसी ने परसेवेंस के साथ स्पेससूट सामग्री के सैंपल भी भेजे है, यह देखने के लिए कि वे कठोर मार्टियन इन्वायरमेंट में कितने सफल रहते हैं। नासा इस मिशन पर करीब 3 बिलियन डॉलर खर्च कर रहा है। ये मिशन करीब दो साल तक चलेगा।