Coronavirus Pandemic: दुनिया के सामने आया चीन का सच, संक्रमण से लेकर मौत तक का हर आंकड़ा झूठा
Coronavirus Pandemic: दुनिया के सामने आया चीन का सच, संक्रमण से लेकर मौत तक का हर आंकड़ा झूठा
डिजिटल डेस्क, बीजिंग। चीन से फैलने वाला कोरोनावायरस पूरी दुनिया के लिए अभिशाप बन गया है। इसके कारण दुनिया भर में लगभग 60 हजार लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। लेकिन चीन, जिसने इस महामारी को जन्म दिया, अभी भी दुनिया से वास्तविकता छिपा रहा है। कोरोनावायरस के बारे में सबसे पहले जानकारी देने वाली चीनी डॉक्टर आई फेन के अचानक गायब हो जाने से ये दावा और भी ज्यादा पुख्ता हो गया है। इस अलावा और भी कई ऐसी बाते सामने आई है जिनसे पता चलता कि चीन कोरोना से हुई मौतों के बारे में झूठ बोल रहा है, कोरोना पर नियंत्रण के बारे में झूठ बोल रहा है और कोरोना के आस-पास उसके सिस्टम ने जो झूठ गढ़े अब उनको छिपाने के लिए झूठ बोल रहा है।
पहला आधार
डॉक्टर आई फेन वुहान सेंट्रल हॉस्पिटल के इमरजेंसी वार्ड की डायरेक्टर हैं जहां कोरोना का पहला मामला सामने आया था। वह पहली डॉक्टर है जिन्होंने कोरोनावायरस के शुरुआती मरीजों के टेस्ट का ऑर्डर दिया था। लेकिन अब ये डॉक्टर एक स्टेट-रन मैगजीन को इंटरव्यू देने के बाद से गायब है। यह इंटरव्यू चीनी सरकार ने इंटरनेट से भी हटा दिया है। इंटरव्यू में, उन्होंने विस्तृत जानकारी दी थी कि कैसे चीनी अधिकारियों ने घातक कोरोनावायरस के बारे में जानकारी छिपाने की कोशिश की थी। इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि कैसे चीन को दिसंबर में ही इस वायरस के बारे में पता चल गया था लेकिन उसने इसे रोकने के लिए कुछ नहीं किया।
डॉ. आई फेन ने इंटरव्यू में बताया कि उनके अस्पताल में कुछ ऐसे मरीज थे जिनमें फ्लू जैसे लक्षण थे, लेकिन इन पर दवाईयां असर नहीं कर रही थी। ऐसे में उन्होंने इन मरीजों पर कुछ टेस्ट किए। जब टेस्ट की रिपोर्ट आई तो वो हैरान रह गईं। टेस्ट रिपोर्ट में सार्स कोरोनावायरस की पुष्टि हुई थी। उन्होंने इस रिपोर्ट को कंफर्म करने के लिए कई बार पढ़ा। जिसके बाद इसकी एक कॉपी उन्होंने अपने साथी डॉक्टरों के साथ शेयर की। जल्द ही ये रिपोर्ट वुहान मेडिकल सर्किल में फैल गई। दूसरे डॉक्टरों ने भी इस रहस्यमई बीमारी के बारे में बात करना शुरू कर दिया। इसमें से एक डॉक्टर थे ली वेलिआंग, जिनकी फरवरी में कोरोनावायरस के संक्रमण के चलते मौत हो गई थी। वेलियांग को कोरोनावायरस का व्हिसिल ब्लोअर भी कहा जाता है। व्हिसिल ब्लोअर इसलिए क्योंकि उन्होंने डॉ. फेन से मिली इस रिपोर्ट को दुनिया के सामने लाया था।
इसके बाद से ही चीन कोरोनावायरस की जानकारियों को छिपाने में जुट गया। चीनी अथॉरिटीज ने डॉक्टर ली वेलिआंग पर भ्रामक जानकारी फैलाने का आरोप लगाते हुए उन्हें हिरासत में ले लिया। कुछ दिनों बाद चीनी पुलिस डॉक्टर आई फेन तक पहुंच गई और उन्हें किसी से कुछ भी न कहने की चेतावनी दी गई। अस्पताल ने भी उन्हें कहा कि वह इस जानकारी को न फैलाए। भ्रामक जानकारी फैलाने का आरोप लगाते हुए दो दिन बाद उन्हें अस्पताल की डिसीप्लिनरी इन्सपेक्शन कमेटी के सामने बुलाया गया। इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि वह इस वायरस के ह्यूमन टू ह्यूमन ट्रांसमिशन के बारे में जानती थी लेकिन उनकी बात किसी ने नहीं सुनी। उनकी रिपोर्ट पर कार्रवाई करने की जगह अस्पताल भी चीनी सरकार के साथ मिल गया और सभी को इस वायरस से जुड़ी तस्वीरें और मैसेज को किसी के भी साथ शेयर करने से मना कर दिया गया। इस इंटरव्यू के बाद से ही डॉ. फेन गायब है। किसी को नहीं मालूम की वह अचानक कहा चली गईं।
दूसरा आधार
इस बीच वुहान शहर में कोरोना वायरस से कितनी मौतें हुईं, इसको लेकर रहस्य गहराता जा रहा है। वुहान के स्थानीय लोगों का मानना है कि चीनी अधिकारियों के दावे के विपरीत यहां पर कई ज्यादा मौते हुई। चीन की एक मीडिया कंपनी कैक्सिन की रिपोर्ट के मुताबिक वुहान प्रांत में कोरोनावायरस से मारे गए लोगों के अस्थि-कलश चीनी अथॉरिटीज ने 30 मार्च से देना शुरू किया। परिवार के लोग घंटों लाइन में लगकर इस अस्थि-कलश को ले रहे हैं। आधिकारीक आंकड़ो के मुताबिक वुहान में लगभग 50 हजार लोगों को कोरोना का संक्रमण हुआ और 2535 लोगों की जान गई। लेकिन जो लोग अस्थि-कलश लेने के लिए आए हैं वो 2535 नहीं है उससे हजारों ज्यादा है।
तीसरा आधार
अमेरिका में वाइट हाउस को सौंपी गईं एक सीक्रेट रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन कोरोनावायरस संकमित लोगों की जो संख्या बता रहा है वो फर्जी है। इससे पहले न्यू यॉर्क टाइम्स ने एक रिपोर्ट में दावा किया था कि खुफिया एजेंसी सीआईए के अधिकारियों ने जनवरी में ही वाइट हाउस से कहा था कि वो कोरोनावायरस से जुड़ी चीन की अंदरूनी जानकारी जुटाए। इसके बाद जनवरी में ही सीआईए ने ट्रंप प्रशासन को जानकारी दी थी कि चीन की ओर से बताई जा रही संख्या पर बिल्कुल भी भरोसा न करें।
चौथा आधार
कैक्सिन में 29 मार्च को भी एक रिपोर्ट छपी थी। इस रिपोर्ट में झेजियांग प्रांत में मिले एक कोरोना के मरीज का जिक्र किया गया था। आशंका थी कि उसे जिस व्यक्ति से कोरोनावायरस का संक्रमण हुआ उसमें कोरोना का कोई भी लक्षण नहीं था। रिपोर्ट में कहा गया था कि बिना लक्षण वाले संक्रमित लोगों से जुड़ा कोई डाटा चीन के पास नहीं है। जबकि अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार कोरना के 25 फीसदी मरीजों में कोरोना वायरस के कोई लक्षण नहीं दिखाई देते।
आइसलैंड में भी कोरोना की जांच कर रही एक कंपनी ने बताया था कि उसके सैंपल में लगभग 50 फीसदी ऐसे थे जिसमें लोगों को कोरना था लेकिन कोरोना का कोई लक्षण नजर नहीं आया। चीन अब तक कोरोना के मरीजों की अधूरी गिनती बता रहा था। ऐसे लोग जो कोरोना पॉजिटिव तो है लेकिन जिनमें लक्षण नहीं दिखे उन्हें आंकड़ों में शामिल नहीं किया गया। अब चीन ने 1 अप्रैल से इसकी गिनती देना शुरू की है। हालांकि अब भी चीन सही आंकड़े बता रहा है या नहीं कुछ कहा नहीं जा सकता।
वायरस के कहर से बच सकती थी दुनिया
23 जनवरी को जब वुहान में लॉकडाउन हुआ तब तक 50 लाख के लगभग लोग शहर से बाहर जा चुके थे। अगर चीन सही समय पर ये इस वायरस को रोकने के कदम उठा लेता तो पूरी दुनिया इस वायरस के कहर से बच सकती थी। संक्रमण क्यों फैलता है, कितनी तेजी से फैलता है, कितने समय में कितने लोग संक्रमित हो सकते हैं। अगर इन सब की ठोस जानकारी चीन दे देता तो दूसरे देश बेहतर तैयारी कर सकते थे। यात्रा प्रतिबंध लगाना, सार्वजनिक जगहों पर लोगों के जमा होने पर पाबंदी। ये फैसले जल्द लिए जा सकते थे।