संवाद व संप्रेषण की परंपरा: युवा पीढ़ी रामचरित मानस का गहन अध्ययन करे : कुलपति प्रो. सुरेश
- साहित्य के स्त्रोत हैं राम : प्रो. संजीव शर्मा
- पत्रकारिता विश्वविद्यालय में 'रामाख्यान' का समापन
- भरतमुनि शोधपीठ के तत्वाधान में आयोजित हुआ व्याख्यान
डिजिटल डेस्क,भोपाल। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में तीन दिवसीय "रामाख्यान" के समापन अवसर पर रामाख्यान में संचार के सूत्र विषय पर महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो.(डॉ.) संजीव कुमार शर्मा ने अपने विचार व्यक्त किए। भरतमुनि शोधपीठ के तत्वाधान में आयोजित इस व्याख्यान की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. (डॉ.) के.जी. सुरेश ने की ।
प्रो. सुरेश ने कहा कि श्रीरामचरित मानस जीवन की मार्गदर्शिका बन गई है । उन्होंने कहा कि रामाख्यान ने हमारी सोच एवं नजरिए को बदल दिया है । कुलपति प्रो. सुरेश ने कहा कि विक्रमशिला, तक्षशिला एवं नालंदा जैसे विश्वविद्यालय के कारण ही भारत विश्व गुरु था और इसकी एक अलग ही पहचान थी। उन्होंने कहा कि ये भवन नहीं भावना है, इसीलिए हमारे विश्वविद्यालय के भवनों के नाम विक्रमशिला, तक्षशिला एवं नालंदा के नाम पर रखे गए हैं । उन्होंने युवा पीढ़ी को रामचरित मानस का गहन अध्ययन करने की बात कही। साथ ही कहा कि हमें कब,कहां, कैसे और क्या बोलना है, ये सीखना बहुत जरूरी है ।
महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने समाज विज्ञान को संचार का एक रुप बताया। उन्होंने कहा कि भारत में प्रश्न पूछने की परंपरा रही है। उन्होंने कहा कि संवाद, संप्रेषण की परंपरा जिज्ञासाओं से शुरू हुई । प्रो. शर्मा ने शिव-पार्वती, राम-जटायु संवाद आदि कई उदाहरण दिए । उन्होंने कहा कि तुलसीदास जी संस्कृत के मर्मज्ञ थे, लेकिन उन्होंने अवधि में श्रीरामचरित मानस लिखी । प्रो.शर्मा ने कहा कि हमें भाषा के प्रति सजग होना चाहिए । उन्होंने रामचरित की प्रंशषा की तो वहीं राम को साहित्य का स्त्रोत बताया।
व्याख्यान का संचालन एवं संयोजन प्रो. गिरीश उपाध्याय ने किया, जबकि आभार प्रदर्शन जनसंचार विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. आरती सारंग ने किया । व्याख्यान में विवि. के कुलसचिव प्रो. डॉ अविनाश वाजपेयी, विभागाध्यक्ष, शिक्षक, अधिकारी, कर्मचारी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे ।